क्षमापना दिवस पर
खामेमि सव्व जीवे, सव्वे जीवा खमंतु में,
मित्ती मे सव्व भूएसु, वेरं मज्झ न केणई।।
मैत्री का यह मंत्र सुनहरा, आओ मिल जुल क्षमा करें,
मनोमलिनता दूर हटादें, कुंदन बनकर हम निखरें।। स्थायीपद।।
आत्म तुल्य समझें हम सबको कोई नहीं पराया है,
वसुधा ही परिवार हमारा संतों ने बतलाया है,
करुणा का बादल बन बरसें, मनुज मात्र की पीर हरें, मनोमलिनता।।1।।
जो झुकते औरों के आगे दूजे खुद झुक जाते हैं,
अपनी पकड़ छोड़ते हैं जो सबको निजी बनाते हैं,
क्षमाशील बन बिना नांव के भव सागर को शीघ्र तरें, मनोमलिनता।।2।।
बढ़ती-चढ़ती लख औरों की ईर्ष्या-द्वेष नहीं लाएँ,
वैर विरोध करे यदि कोई वहाँ उपेक्षा दिखलाएँ,
सद्गुण सुमनों की मनमोहक महक धरा पर नित बिखरे, मनोमलिनता।।3।।
स्थानकवासी-तेरापंथी शाखाएँ सब जुदा-जुदा,
(और दिगंबर-मूर्तिपूजक शाखाएँ सब जुदा-जुदा)
महावीर की हैं संतानें मूल रहा है एक सदा,
‘विजय’ परस्पर मिलें प्रेम से, मानवता का घाव भरें, मनोमलिनता।।4।।
लय: क्या कहना ऐसे लोगों का---