संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

बंध-मोक्षवाद

मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह
(17) वर्तमानक्षणग्राहि, ऋजुसूत्रं नयो भवेत्।
शब्दाश्रयास्तु शब्दाद्याः, पर्यायमाश्रिताः नयाः।।
जो वर्तमान क्षणवर्ती पर्याय को ग्रहण करता है, वह ऋजुसूत्र नय है। शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूतµये तीनों शब्दाश्रयी पर्यायाथिक नय हैं।

(18) पूर्वं निक्षिप्यते वस्तु, तन्नये नाधिगम्यते।
प्रमाणेनाऽपि वीक्षा स्याद्, सकलादेशमाश्रिता।।
पहले वस्तु का निक्षेपµपर्याय के अनुरूप बाह्य विन्यास किया जाता है। फिर उसे नय के द्वारा जाना जाता है। प्रमाण के द्वारा होने वाला वस्तु का ज्ञान सकलादेश कहलाता है।

(19) नयदृष्टिरनेकांतः स्याद्वादस्तत्प्रयोगकृत्।
विभज्यवाद इत्येष, सापेक्षो विदुषां मतः।।
वस्तु के एक धर्म-विशेष को जानने वाली नयदृष्टि का नाम है अनेकांत। उसका वचनात्मक प्रयोग स्याद्वाद, विभज्यवाद अथवा सापेक्षवाद है।
पदार्थ अपने में कितने तथ्यों को समेटे हुए हैं, यह जानना सहज नहीं है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी असफल रहे हैं। उसके विराट् दर्शन के सामने वे बौने साबित हुए हैं। भले, वे हार मानें या न मानें किंतु इतना स्पष्ट है कि वे उसकी पूर्ण थाह नहीं पा सकते। उसकी थाह पाने का एक ही मार्ग है कि हमारे पास पूर्ण ज्ञान हो। पूर्ण ज्ञान-कैवल्य ज्ञान में वस्तु का संपूर्ण रूप प्रतिभासित हो सकता है। आत्मद्रष्टाओं ने उसे जाना है, लेकिन उसके अनंत धर्मों को प्रतिपादन में वे भी समर्थ नहीं हुए हैं। इसका कारण बहुत स्पष्ट है कि वाणी सीमित है, शब्द सीमित है वह वस्तु में स्थित अनंत धर्मों का प्रतिपादन नहीं कर सकता है।
प्रत्येक द्रव्य अपने में अनंत विरोधी-अविरोधी धर्मोंµस्वभावों को लिए हुए हैं। उसमें सामान्य धर्म भी है और विशेष भी, वह नित्य भी है, अनित्य भी है। वह शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। वह है भी और नहीं भी है। इस प्रकार उसमें अनंत धर्मµस्वभाव हैं। लेकिन ये सब सापेक्षदृष्टि से यथार्थ हैं। जिस दृष्टि से ‘सत्’ है उस दृष्टि से असत् नहीं है, जिस दृष्टि से असत् है उस दृष्टि से सत् नहीं है। सत् की दृष्टि से सत् है और असत् की दृष्टि से असत् हैं। इसी प्रकार सामान्य-विशेष, नित्य-अनित्य, भेद-अभेद आदि जिज्ञासाओं का शमन किया जा सकता है। वृक्षत्व धर्म की अपेक्षा से सभी वृक्ष समान हैं, चेतन धर्म की अपेक्षा सभी जीव समान हैं, अचेतनत्व की दृष्टि से समस्त जड़ पदार्थ समान हैं। नीम, बबुल, आम, पीपल, बरगद आदि भेदों की दृष्टि से विशेष भी हैं। लेकिन दोनों धर्म हैं एक ही द्रव्य-पदार्थ में। एक व्यक्ति पिता है, पुत्र है, पति है, भाई है, चाचा है, दादा है, नाना है आदि। कितने विरोधी दिखलाई देने वाले बिंदु एक में उपलब्ध हैं। यदि यहाँ अपेक्षा को ध्यान में न रखें तो उलझन आ सकती है और अपेक्षा रखकर चला जाए तो कहीं उलझन नहीं है।

(क्रमशः)