अनासक्ति की चेतना के विकास करने का महापर्व है - पर्युषण

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अनासक्ति की चेतना के विकास करने का महापर्व है - पर्युषण

जाटाबास।
शासनश्री साध्वी कुंथुश्री जी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन के प्रांगण में पर्युषण महापर्व के आठ दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन संपन्न हुआ। पर्युषण महापर्व का शुभारंभ नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से हुआ। खाद्य संयम दिवस: इस अवसर पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि पर्युषण पर्व महान व अलौकिक पर्व है। यह बाहर से भीतर आने का पर्व, वासना से उपासना की ओर, आसक्ति से अनासक्ति की चेतना के विकास करने का पर्व है। जैन धर्म में इस महापर्व का विशेष महत्त्व है। भोजन हमारे जीवन निर्माण का पहला तत्त्व है। यह हमारे व्यक्तित्व का घटक है। वृत्तियों का निर्माता है। विकास का पहला द्वार है। भोजन का उद्देश्य आत्महित होना चाहिए। साध्वी कंचनरेखा जी ने खाद्य संयम पर विचारों की प्रस्तुति दी। साध्वीवृंद ने गीतिका का संगान कर जयाचार्य निर्वाण दिवस पर अपनी भावांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन सुमंगलाश्री जी ने किया।
स्वाध्याय दिवस: पर्युषण महापर्व का दूसरा दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ पर साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि आत्मा के विषय में अनुप्रेक्षा, चिंतन-मनन करना स्वाध्याय है। मर्यादापूर्वक अध्ययन करना स्वाध्याय है। स्वाध्याय से ज्ञान का विकास होता है, नए-नए रत्न प्राप्त होते हैं। स्वाध्याय से जहाँ ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण होता है वहीं मानसिक संबल प्राप्त होता है। साध्वीश्री जी ने स्वाध्याय के पाँच प्रकारों का विवेचन करते हुए प्रतिदिन स्वाध्याय करने की प्रेरणा उपस्थित जनसमुदाय को दी। साध्वी सुलभयशा जी ने कहा कि स्वाध्याय अंधकार से प्रकाश की ओर प्रस्थान करता है। स्वाध्याय से भीतर का कचरा निकलता है और आत्मदर्शन का मार्ग प्रशस्त होता है। सामायिक दिवस: सामायिक दिवस पर तेयुप के तत्त्वावधान में अभिनव सामायिक के अवसर पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि भगवान महावीर से पूछा गया-भंते! सामायिक क्या है? सामायिक का अर्थ क्या है? तो भगवान ने कहा-सामायिक का अर्थ है-समता की साधना, आत्मा में रहना।
सामायिक से भाव शुद्धि, चित्त समाधि, कषाय की मंदता, मन की एकाग्रता, तनाव मुक्ति, इंद्रियाँ अंतर्मुखी एवं कर्मजा शक्ति का विकास होता है। तेयुप के तत्त्वावधान में समायोजित अभिनव सामायिक का प्रयोग करवाया। साध्वी शिक्षाप्रभा जी ने सामायिक विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन तेयुप अध्यक्ष मितेश जैन ने किया। आभार ज्ञापन तेयुप मंत्री विनोद सुराणा ने किया। वाणी संयम दिवस: इस अवसर पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि भगवान महावीर से पूछा गया-भंते! वाणी संयम से क्या प्राप्त होता है। भगवान ने कहा-वाणी संयम से निर्विचारिता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अंतर्मुखी बनता है और उसके भीतर की शक्ति जाग्रत होती है। साध्वीश्री जी ने गीतिका का संगान किया। साध्वी संबोधयशा जी ने ‘वाणी संयम दिवस’ पर विचार व्यक्त किए। मंगलाचरण साध्वी सुलभयशा जी एवं साध्वी शिक्षाप्रभा जी ने सुमधुर गीत के संगान से किया। संचालन साध्वी सुमंगलाश्री जी ने किया। अभिलाषा बांठिया ने गीतों का संगान कर पूरी परिषद को भाव-विभोर कर दिया।
अणुव्रत चेतना दिवस: अणुव्रत दिवस पर साध्वीश्री जी ने अणुव्रत का अर्थ बताते हुए कहा कि चरित्र विकास के लिए किए जाने वाले संकल्प का नाम अणुव्रत है। ‘अणु’ अर्थात् छोटे और व्रत’ अर्थात नियम। छोटे-छोटे नियमों से व्यक्ति संयम के पथ पर अग्रसर हो सकता है। साध्वीश्री जी ने उपस्थित जनमेदिनी को अणुव्रतों के संकल्पों को स्वीकार करने की प्रेरणा दी। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने भगवान ऋषभ के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए अपने विचार व्यक्त किए। साध्वीवृंद ने गीत से मंगलाचरण किया।
जप दिवस: जप दिवस पर साध्वीश्री जी ने कहा कि पर्युषण पर्व पुरुषार्थ का प्रतीक है। धर्म करने में पुरुषार्थ चाहिए। भोगों पर त्याग का अंकुश लगाकर अधिकाधिक समय पर्युषण के दौरान धर्माराधना में लगाना चाहिए। जप साधना मार्ग का एक सोपान है। जप से ज्ञान, दर्शन व चरित्र की प्राप्ति होती है। साध्वी सुमंगलाश्री जी ने भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का विवेचन किया। मंगलाचरण साध्वीवृंद ने गीतिका से किया। ध्यान दिवस: साध्वीश्री जी ने कहा कि एक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करना ध्यान है। आत्मा को आत्मा के द्वारा देखना ध्यान है। मानसिक एकाग्रता का आलंबन ध्यान है। ध्येय व ध्यान का एकाकार होना ही ध्यान की पराकाष्ठा है। ध्यान के चार प्रकारों का विवेचन करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि प्रथम दो ध्यान से जीव सद्गति को प्राप्त करता है और अप्रशस्त ध्यान से दुर्गति प्राप्त होती है। हमें सदैव प्रशस्त ध्यान में रहना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन तरुण समदड़िया ने किया।
संवत्सरी महापर्व: संवत्सरी महापर्व के अवसर पर साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण सभी पर्वों में सर्वोत्तम पर्व है। संवत्सरी का दिन श्लाका का दिन है। जैन इतिहास के अनुसार यह अहिंसा की प्रतिष्ठा का दिन है। यह अध्यात्म का शिरोमणी पर्व है। आध्यात्मिक विकास का पर्व है। मैत्री की पावन गंगा का अवतरण है। विगत वर्ष के पर्यालोचन के साथ आत्म-निरीक्षण का पर्व है। साध्वीश्री जी ने संवत्सरी पर्व का विशद् विवेचन करते हुए भगवान महावीर के जीवन-वृत्त को प्रस्तुत किया।
साध्वी कंचनरेखा जी ने भगवान महावीर के जन्म से लेकर दीक्षा के पूर्व तक के जीवन चरित्र का वाचन किया। साध्वी सुलभयशा जी ने भगवान महावीर की साधना का वर्णन किया। मंगलाचरण तेयुप अध्यक्ष मितेश जैन एवं उनकी पूरी टीम ने किया। क्षमायाचना दिवस: क्षमापना दिवस पर शासनश्री साध्वी कुंथुश्री जी ने कहा कि क्षमा वीरों का भूषण है। कायर व्यक्ति क्षमा की गरिमा से मंडित नहीं हो सकते। क्षमा वही कर सकता है जिसका हृदय विशाल हो, जिसमें सहज सरलता हो। क्षमा वीरत्व की अलंकृत है। मानव गलतियों का पुतला है। चाहे-अनचाहे, ज्ञात-अज्ञात में त्रुटियाँ हो जाती हैं, उसके प्रतिकार के लिए हमारे ऋषि-महार्षियों ने अनुपम अवदान दिया-खमतखामणा। यह शब्द गरिमापूर्ण है। परस्पर मन-मुटाव, आदि दुष्प्रवृत्तियों के शोधन के लिए यह एक अनुपम रसायन व औषधि है। साध्वीश्री जी ने सभी संस्थाओं के पदाधिकारियों, समस्त श्रावक-श्राविका समाज व अन्य सभी बंधुओं से अंतःकरण से खमतखामणा किया। साध्वीवृंद ने भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ खमतखामणा किया। श्रावक समाज ने सभी साध्वीवृंद से सामूहिक रूप से खमतखामणा किया। सभाध्यक्ष पन्नालाल कागोत, तेयुप अध्यक्ष मितेश जैन, महिला मंडल की कार्यकारिणी सदस्य मंजु सुराणा आदि अनेकानेक महानुभावों ने खमतखामणा की भावनाएँ प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन तेयुप अध्यक्ष मितेश जैन ने किया।