पर्युषण महापर्व का आयोजन
चुरू।
साध्वी प्रशमरति जी के सान्निध्य में पर्युषण महापर्व तेरापंथ भवन में मनाया गया। पर्युषण पर्व का प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस मनाया गया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने खाद्य संयम दिवस पर अपने विचार रखते हुए कहा कि जो अपनी रसना पर नियंत्रण नहीं करता वह अनेक रोगों को निमंत्रण देता है। अपेक्षा है हम अपनी रसना पर संयम रखें। छोटे-छोटे प्रयोगों से हम खाद्य संयम का अभ्यास करें। साध्वी अमितयशा जी ने भी खाद्य संयम दिवस पर अपने विचार व्यक्त किए।
साध्वी शांतिप्रभा जी ने सुमधुर गीतिका का संगान किया। साध्वी प्रशमरती जी ने भगवान ऋषभ के जीवन प्रसंग सुनाए। द्वितीय दिवस ‘स्वाध्याय दिवस’ के रूप में मनाया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने स्वाध्याय दिवस पर कहा कि स्वाध्याय जीवन निर्माण का सशक्त माध्यम है। साध्वी अमितयशा जी, साध्वी शांतिप्रभा जी ने गीतिका का संगान किया। पर्युषण पर्व का तीसरा दिन सामायिक दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वी अमितयशा जी ने अभिनव सामायिक का प्रयोग कराया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने सामायिक दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सामायिक समता की साधना का सशक्त माध्यम है। सामायिक करने से आने वाले कर्म रुक जाते हैं। अर्थात् नए कर्मों का बंधन नहीं होता, स्वाध्याय करने से निर्जरा होती है।
चौथा दिवस मौन दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने कहा कि इंसान चाहे तो इस जिह्वा से काम बना सकता है, चाहे तो बिगाड़ सकता है। इंसान को सोचकर बोलना चाहिए। मीठी वाणी जहाँ अमृत का काम करती है वहीं कटु वाणी जहर का काम करती है। साध्वी शांतिप्रभा जी ने गीत का संगान किया। साध्वी अमितयशा जी ने कहा कि वाणी वीणा का काम करे जहर का नहीं। साध्वी प्रशमरति जी ने अधिक से अधिक मौन करने की प्रेरणा प्रदान की।
पर्युषण पर्व का पाँचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने कहा कि अणुव्रत का दर्शन आत्मानुशासन की चेतना को जगाने का दर्शन है। क्योंकि अणुव्रत का विश्वास व्यक्ति के बाहरी परिवेश को बदलने में नहीं, बल्कि आंतरिक चेतना के रूपांतरण में है।
साध्वी अमितयशा जी ने कहा कि जीवन एक मकान है तो चरित्र उसकी बुनियाद है। मनुष्य अणुव्रती बनकर अपने चरित्र के निर्माण का प्रयोग करे। साध्वी शांतिप्रभा जी ने गीत का संगान किया। साध्वी प्रशमरति जी ने अणुव्रत के नियमों को अपनाने की प्रेरणा दी। इस अवसर पर अणुव्रत समिति के अध्यक्ष रचना कोठारी ने अपने विचार व्यक्त किए। पर्युषण पर्व के छठे दिन जप दिवस पर साध्वी अमितयशा जी ने कुछ मिनट सामूहिक जप करवाया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने कहा कि सभी धर्म संप्रदायों में मंत्र साधना की परंपरा रही है, मंत्र साधना के पास मुख्य तीन शक्तियाँ होती हैंµआत्मशक्ति, मंत्रशक्ति एवं इष्टशक्ति। श्रद्धा से अगर अपने इष्ट का स्मरण किया जाता है तो निश्चय ही फलदायी होता है। साध्वी शांतिप्रभा जी ने जप दिवस पर गीत का संगान किया। साध्वी प्रशमरति जी ने जप कब, कैसे, कहाँ करना चाहिए इसकी प्रेरणा दी।
सातवें दिन ध्यान दिवस पर साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने कहा कि स्थिर दीप की लौ के समान मात्र शुभ लक्ष्यों में लीन हो जाना शुभ ध्यान है। साध्वी अमितयशा जी ने कहा कि चिंतनीय विषय में मन को एकाग्र करना ध्यान है। साध्वी शांतिप्रभा जी ने ध्यान दिवस पर गीत का संगान किया। साध्वी प्रशमरति जी ने भगवान महावीर के जीवन-दर्शन के बारे में बताया।
पर्युषण पर्व का आठवाँ दिन ‘संवत्सरी महापर्व’ के रूप में मनाया गया। लगभग 6 घंटे प्रवचन कार्यक्रम चला। साध्वी अमितयशा जी ने अपने उद्गार व्यक्त किए। साध्वी शांतिप्रभा जी ने तेरापंथ के आचार्यों के बारे में बताया। साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों के बारे में बताया। साध्वी प्रशमरति जी ने चंदनबाला 11 गणधर आदि के बारे में विस्तार से बताया। अनेक भाई-बहनों ने अष्ट प्रहरी, छह प्रहरी, चार प्रहरी पौषध किए। पर्युषण काल में अनेकों बहनों ने सायं प्रतिक्रमण में भाग लिया। क्षमायाचनाµसाध्वीश्री जी के सान्निध्य में क्षमायाचना का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें अनेक भाई-बहनों ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए। भरत कोठारी, रचना कोठारी, विनोद लुणिया, मुन्नी देवी कोठारी ने अपने भावों की प्रस्तुति दी। इस अवसर पर साध्वी कारुण्यप्रभा जी ने कहा कि क्षमा वो खुशबू है जो एक फूल उन्हीं हाथों में छोड़ जाती है, जिन हाथों से उसे तोड़ा था। साध्वी प्रशमरति जी ने सबसे क्षमायाचना की। साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया।