अष्टमाचार्य श्रीमद् कालूगणी का 87वाँ स्वर्गवास दिवस

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अष्टमाचार्य श्रीमद् कालूगणी का 87वाँ स्वर्गवास दिवस

रोहिणी, दिल्ली।
साध्वी डॉ कुंदनरेखा जी के सान्निध्य में अष्टमाचार्य श्रीमद् कालूगणी का 87वाँ स्वर्गवास दिवस त्यागमय चेतना के द्वारा मनाया गया। इस अवसर पर साध्वी कुंदनरेखा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य कालूगणी एक ऐसे आचार्य थे, जिन्होंने धर्मसंघ में शिक्षा को विस्तार दिया। संस्कृत और प्राकृत भाषा का अत्यधिक महत्त्व बढ़ाया यही कारण है कि तेरापंथ संघ का अपना व्याकरण है ‘भिक्षुशब्दानुशासनम्’ आचार्य कालूगणी ऐसे प्रतिष्ठित आचार्य हैं, जिन्होंने दो-दो आचार्यों को संघ को सौंपा आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ।
साध्वी सौभाग्ययशा जी ने कहा कि कालूगणी का कर्तृत्व, व्यक्तित्व और नेतृत्व तीनों ही विलक्षण थे। माँ को अपने आने की सूचना देने वाले इन महान महापुरुष का संपूर्ण जीवन प्रेरक है। जिस कोण से भी देखें, सभी तरफ वाणी की मधुरता, अध्यात्म का अमृतरस, समता का समंदर एवं उपशांत कषाय की शीतल निर्झरणी के रूप में निहारा जा सकता है। माँ के आँचल में पला यह बालक महान बनेगा, आचार्य बनेगा, यह उद्घोषणा तो पहले ही हो चुकी थी, इससे पता चला है कि बालक के पाँव पालने में ही पहचाने जा सकते हैं। साध्वी सौभाग्ययशा द्वारा मंगलाचरण किया गया। सभाध्यक्ष विजय जैन, महामंत्री राजेंद्र सिंघी, इंद्रा सुराणा, प्रवीण सिंघी, कुसुम खटेड़ आदि पदाधिकारी की सहभागिता भी रही।