विकास के पर्याय थे आचार्यश्री तुलसी

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विकास के पर्याय थे आचार्यश्री तुलसी

कांटाबाजी
मुनि प्रशांत कुमार जी के सान्निध्य में विकास महोत्सव का आयोजन हुआ। मुनि कुमुद कुमार जी ने कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण मानवता के कल्याण में व्यतीत किया। आचार्यश्री तुलसी का जीवन विकास का जीवन था। उन्होंने जागते हुए सपने देखे और उन्हें पूरा किया। जीवन में आने वाले कष्टों एवं बाधाओं को सूझ-बूझ से दूर किया तथा विकास के नए-नए कीर्तिमान स्थापित किए। वे न केवल तेरापंथ के विकास की बात सोचते थे, अपितु समग्र जैन धर्म और मानवता के विकास के लिए कार्य करते थे।
प्रेक्षाध्यान की पद्धति और शिक्षा के क्षेत्र में जीवन-विज्ञान जैसा सुवैज्ञानिक पाठ्यक्रम देश की जनता को दिया। अहिंसा की शक्ति से जनता को परिचित कराया। विसर्जन का सूत्र देकर लोगों में अनासक्त चेतना का निर्माण किया। आचार्यश्री तुलसी क्रांतिकारी विचारक थे। उनके चिंतन में विकास परिलक्षित होता था। विरोधों की परवाह न करते हुए अपनी शक्ति को सकारात्मक कार्यों में लगाए रखा। लगभग एक लाख किलोमीटर की पदयात्रा कर उन्होंने अणुव्रत आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाया। मीडिया प्रभारी अविनाश जैन ने बताया कि सभा अध्यक्ष युवराज जैन, तेयुप से ऋषभ जैन, तेममं से स्मिता जैन, संजय जैन ने वक्तव्य एवं गीत के द्वारा प्रस्तुति दी।