आचार्य भिक्षु, श्राीमज्जयाचार्य और गुरुदेव तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के शताब्दी पुरुष: आचार्यश्राी महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्य भिक्षु, श्राीमज्जयाचार्य और गुरुदेव तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के शताब्दी पुरुष: आचार्यश्राी महाश्रमण

ताल छापर, 8 अक्टूबर, 2022
महातपस्वी, महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि भगवान गौतम श्रमण भगवान महावीर को वंदन-नमस्कार करते हैं। वंदन करके बोले-भंते! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं अथवा अवस्थित रहते हैं? गौतम! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, अवस्थित हैं, यह उत्तर दिया गया।
हमारी दुनिया में अनंत जीव हैं। अनंत काल से एक भी जीव की संख्या बढ़ी नहीं और न ही घटी। जितने जीव अनंत काल पहले थे, उतने ही आज हैं, और अनंत काल तक रहेंगे। यह एक लोक स्थिति-मर्यादा हमारी सृष्टि की है। जीव एक समान रूप में रहते हैं। अजीव भी जितने हैं, उतने ही रहते हैं। जीव का अजीव या अजीव का जीव होता नहीं है। प्रश्न है कि जब जीव बढ़ते नहीं तो फिर आबादी की चिंता क्यों हो रही है। मनुष्यों की संख्या तो घट-बढ़ सकती है, पर जीवों की संख्या नहीं बढ़ती।
आज आश्विन शुक्ला चतुर्दशी है। एक महापुरुष बनने वाले शिशु ने आज के दिन जन्म लिया था। आज से 219 वर्ष पहले श्रीमद्जयाचार्य का एक शिशु के रूप में जन्म हुआ था। जयाचार्य हमारे धर्मसंघ के चतुर्थ आचार्य थे। मैं हमारे धर्मसंघ के अतीत के आचार्यों में तीन आचार्यों में समानता देखता हूँ। वे हैं-परम वंदनीय आचार्य भिक्षु, श्रीमद्जयाचार्य और आचार्य तुलसी। पहली समानता तो यह है कि ये तीनों ही आचार्य मारवाड़ से हुए हैं। दूसरी समानता है-आचार्य भिक्षु तेरापंथ की पहली शताब्दी के प्रथम आचार्य, दूसरी शताब्दी के प्रथम आचार्य जयाचार्य और तीसरी शताब्दी के प्रथम आचार्य आचार्यश्री तुलसी हुए हैं।
तीनों हमारे तेरापंथ के शताब्दी पुरुष हो गए। तीसरी समानता है कि तीनों आचार्यों ने ज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में अच्छा सृजन किया है। कितना साहित्य राजस्थानी भाषा में है। तीनों अच्छे साहित्य सृजक थे। चौथी समानता देखें कि हमारे धर्मसंघ में नवीनता को लाने वाले ये तीनों आचार्य हैं। श्रीमद्जयाचार्य एक बाल योगी के रूप में हमारे धर्मसंघ में दीक्षित हुए थे। हमारे छोटे-छोटे संत श्री जयाचार्य जैसे ज्ञानी बने। मैं जयाचार्य को वंदन करता हूँ। आज उनका 220वाँ जन्म दिवस है। हमारा तत्त्वज्ञान-चारित्र बढ़ता रहे। आज चतुर्दशी है। पूज्यप्रवर ने हाजरी-मर्यादाओं का वाचन करते हुए प्रेरणा प्रदान करवाई। साधु-साध्वियों से तत्त्वज्ञान के प्रश्नोत्तर किए। साधुचर्या एवं तेरापंथ के सिद्धांतों को समझाया। कल्याण परिषद व समीक्षा परिषद, चिंतन-मनन के लिए है। इनमें दुराग्रह न हो। विचार रखे जा सकते हैं। दुराग्रह से विकास में बाधा है।
नवयुवकों का शिविर लगा है। नवयुवकों को भी तेरापंथ के सिद्धांतों की जानकारी होनी चाहिए। नवदीक्षित साध्वियों ने साधुओं को वंदना की। मुनि धर्मरुचि जी ने साध्वियों को प्रेरणा प्रदान करवाई।
पूज्यप्रवर ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की सातवीं मासिक पुण्यतिथि पर स्मरण किया। पूज्यप्रवर ने नवयुवक शिविरार्थियों को सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई। साधु-साध्वियों ने लेख पत्र का वाचन किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि नमस्कार महामंत्र का जप एक साधना है। साधना से व्यक्ति का विकास होता है।