अहिंसा और अपरिग्रह की साधना धर्म है: आचार्यश्राी महाश्रामण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहिंसा और अपरिग्रह की साधना धर्म है: आचार्यश्राी महाश्रामण

आदर्श विद्या मंदिर स्कूल में आचार्य महाश्रमण प्रकोष्ठ का लोकार्पण

ताल छापर, 6 अक्टूबर, 2022
परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र आगम में प्रश्न किया गया कि भंते! क्या असुर कुमार देव आरंभ और परिग्रह से युक्त होते हैं? उत्तर दिया गयाµगौतम! असुर कुमार देव आरंभ और परिग्रह से युक्त होते हैं, मुक्त नहीं होते हैं। चारों गतियों में आरंभ और परिग्रह हर जीव के होती है। गृहस्थों के तो हर क्रिया में जीव हिंसा होती रहती है। शरीरधारी जीव से हिंसा जुड़ी रहती है। साधु के भी हिंसा हो सकती है। देव और नरक में भी आरंभ और परिग्रह होता है। गार्हस्थ्य में त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा हो जाती है। गृहस्थ के परिग्रह भी होता है। गृहस्थ यह चिंतन करे कि मैं आरंभ और परिग्रह का कितना अल्पीकरण कर सकता हूँ।
गृहस्थ को चौदह नियम रोज चितारने चाहिए। हिंसा और परिग्रह आपस में जुड़े हुए हैं। अहिंसा और अपरिग्रह की साधना धर्म है। साधु और गृहस्थ के जीवन में हिंसा और परिग्रह के विषय में बड़ा अंतर है। साधु तो कंचन-कामिनी के त्यागी होते हैं। दुःखी आदमी के दुखड़े को सुन लेने से उसे कुछ शांति मिल सकती है। साधु अहिंसक होते हैं। वे हिंसा न करते हैं, न करवाते हैं। इसलिए तो सौ वर्ष का गृहस्थ भी नौ वर्ष के साधु को वंदन करता है। साधु अणगार है, वे संयोगों से मुक्त होते हैं। साधु संबंधातीत चेतना से जागृत होते हैं। साधु और गृहस्थ के जीवन में त्याग और संयम का अंतर होता है। गृहस्थ आरंभ और परिग्रह का जितना त्याग कर सकते हैं, करने का प्रयास करें। इससे आत्मा हल्की हो सकती है। पूज्यप्रवर ने कालूयशोविलास के प्रसंगों को विस्तार से व्याख्यायित किया। तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि भगवान महावीर की वाणी से रोहणीय चोर जैसे का जीवन बदल सकता है। मन के परिणाम बदलते हैं तो वीतराग वाणी पर श्रद्धा हो सकती है। जहाँ संयोग है, वहाँ वियोग भी है। हमें दोनों स्थिति में आर्त-ध्यान में नहीं जाना चाहिए। हमारा दृष्टिकोण सम्यक् हो। सम्यक्त्व मोक्ष का द्वार है। प्रातःकाल आचार्यश्री महाश्रमण जी छापर में ही स्थित आदर्श विद्या मंदिर के प्रांगण में पधारे। उक्त विद्या मंदिर में नवनिर्मित आठ कमरे ‘आचार्य महाश्रमण प्रकोष्ठ’ के नाम का लोकार्पण आचार्यश्री के मंगलपाठ से हुआ। कार्यक्रम में राज्यसभा के पूर्व सांसद डॉ0 महेश शर्मा आदि भी उपस्थित थे। इस अवसर पर आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों व अन्य जनता को मंगल पाथेय प्रदान किया। डॉ0 महेश शर्मा तथा महासभा के महामंत्री विनोद बैद ने भी अपना वक्तव्य दिया। तदुपरांत आचार्यश्री कस्बे के अनेक श्रद्धालुओं को अपने दर्शन और मंगल आशीर्वाद से लाभान्वित करते हुए चातुर्मास प्रवास स्थल में पधारे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि गुरु के अभाव में शिष्य भटक सकता है।