संबोधि

स्वाध्याय

संबोधि

बंध-मोक्षवाद

मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह
(34) प×चमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
सूर्यचन्द्रमसोरेव, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

पाँच मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि ज्योतिष्क देवों के इंद्र-चाँद और सूरज के सुखों को लाँघ जाता है।

(35) षाण्मासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
सौधर्मेशानदेवानां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

छह मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि सौधर्म और ईशान देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(36) सप्तमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
सनत्कुमारमाहेन्द्र-तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

सात मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(37) अष्टमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
ब्रह्मलान्तकदेवानां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

आठ मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि ब्रह्म और लान्तक देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(38) नवमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
महाशुक्र-सहòार-तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

नौ मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि महाशुक्र और सहòार देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(39) दशमासिकपर्याय, आत्मध्यानरतो यतिः।
आनतादच्युतं यावत्, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

दस मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(40) एकादशमासगत, आत्मध्यानरतो यतिः।
ग्रैवेयकाणां देवानां, तेजोलेश्यां व्यतिव्रजेत्।।

ग्यारह मास का दीक्षित आत्म-लीन मुनि नव ग्रैवेयक देवों के सुखों को लाँघ जाता है।

(क्रमशः)