आचार्य मघवागणी का सौभाग्य था कि उन्हें कालूगणी जैसा शिष्य मिला : आचार्यश्री महाश्रामण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आचार्य मघवागणी का सौभाग्य था कि उन्हें कालूगणी जैसा शिष्य मिला : आचार्यश्री महाश्रामण

अष्टम आचार्य पूज्य कालूगणी अभिवंदना सप्ताह का शुभारंभ

ताल छापर, 17 अक्टूबर, 2022
कालूगणी अभिवंदना सप्ताह की शुरुआत। पूज्य कालूगणी के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है कि आदमी जीवन जीता है और एक जीवन के बाद संसारी अवस्था में दूसरा जन्म भी प्राप्त हो जाता है। अगले जीवन का निर्धारण वर्तमान जीवन में हो जाता है।
भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि भंते! आयुष्य का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? उत्तर दिया गया आयुष्य का बंध छः प्रकार का प्रज्ञप्त हैµ(1) जाति नाम, यानी इंद्रियों के आधार पर एक इंद्रिय से लेकर पाँच इंद्रिय जाति वाले जीव। (2) गति नामµचारों गति का निर्धारण। (3) स्थिति नाम। (4) अवगाहना नाम। (5) प्रदेश नाम। (6) अनुभाग नाम। ये छः प्रकार आयुष्य बंध के हैं। इनके बंध के बाद जीव आगे जन्म लेता है। यह सारा कर्म बंध के आधार पर होता है। एक दिन आयुष्य पूरा भी हो जाता है।
परमपूज्य मघवागणी के शिष्य परमपूज्य कालूगणी थे। मघवागणी द्वारा दीक्षित शिक्षित थे। छापर चतुर्मास स्थल पूज्य कालूगणी की जन्मभूमि है। कालूगणी अभिवंदना सप्ताह का आज प्रथम दिन है। आचार्यों का मानो भाग्य ही होता है कि उन्हें अच्छे शिष्यों की प्राप्ति होती है। मघवागणी को भी कालूगणी जैसे शिष्य मिले। कोई-कोई पुत्र पिता से भी आगे बढ़ जाने वाला हो जाता है। पिता के लिए भी यह गौरव की बात है। जैसे घड़े से पैदा हुए अत्र सत्यस्थ ऋषि समुद्र के जल को पी गए। गुरु के सामने तो शिष्य शिष्य ही रहता है।
पूज्य कालूगणी मघवागणी की प्रतिकृति थे। पर थोड़े से भिन्न रूप में भी रहे हैं। कालूगणी ऐसे आचार्य थे, जिन्होंने तीन-तीन आचार्यों के शासनकाल में अपना मुनित्व व्यतीत किया। पूज्य डालगणी भी तीन आचार्यों के शासन में मुनि रूप में रहे थे, बाकी और आचार्य नहीं। कालूगणी के जीवन का एक विभाग है, उनका गार्हस्थ्य जीवन। दूसरा विभाग हैµमघवागणी और कालूगणी, तीसरा विभाग हैµमाणकगणी और कालूगणी और चौथा विभाग हैµडालगणी और कालूगणी, पाँचवाँ विभाग उनके स्वयं के जीवन का है। कालूगणी संस्कृत भाषा के वेत्ता थे, उन्होंने संस्कृत भाषा को आत्मसात् करने का प्रयास किया था। उनके शिष्य भी संस्कृत भाषा में आगे बढ़े थे। हम मघवागणी और कालूगणी से प्रेरणा का आदान करते रहें, आगे बढ़ते रहें।
मुनि पृथ्वीराज जी ‘जसोल’, साध्वी विमलप्रज्ञाश्री जी, साध्वी सुषमा कुमारी जी, मुनि विकास कुमार जी ने अपने श्रद्धा भाव पूज्य कालूगणी के प्रति अभिव्यक्त किए। ज्ञानशाला, छापर ने भी अपनी प्रस्तुति दी। अलका बैद, कुसुम बैद ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।