व्यवहारिक काल के आधार पर कर्मस्थिति-भवस्थिति जान सकते हैंः आचार्यश्री महाश्रामण
ताल छापर, 12 अक्टूबर, 2022
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि मनुष्य लोक की तरह समय का मापन नरक में हो सकता है क्या? कहा गया कि यह अर्थ संगत नहीं है। क्योंकि मनुष्य लोक से बाहर ऐसी व्यवस्था नहीं है। हमारी सृष्टि में दो प्रकार के क्षेत्र हैं-समय क्षेत्र और समयातीत क्षेत्र। समय क्षेत्र या मनुष्य क्षेत्र अढ़ाई द्वीप कहलाता है। नरक लोक, देवलोक और अढ़ाई द्वीप के बाहर के क्षेत्र समयातीत क्षेत्र है। वहाँ समय का प्रभाव नहीं होता। अढ़ाई द्वीप के बाहर सूर्य-चंद्रमा स्थिर है। मनुष्य लोक के आधार पर ही नरक-देवगति आदि की आयुष्य कालगणना की जाती है।
काल दो प्रकार का होता है-नैश्चयिक और व्यावहारिक। नैश्चयिक का लक्षण है वर्तना। आवलिका, वर्ष आदि व्यावहारिक काल है। इस काल के चक्र में कितने लोग आए और चले गए। व्यावहारिक काल के आधार पर ही हम कर्मस्थिति-भवस्थिति को जान सकते हैं। समय तो बीतता है। आज कार्तिक कृष्णा तृतीया हमारे छठे आचार्य माणकगणी का महाप्रयाण दिवस है। माणकगणी के शासन में धर्मसंघ को लगभग पाँच वर्ष से भी कम समय में रहने का अवसर मिला। आचार्यश्री माणकगणी और आचार्यश्री तुलसी में समानता है कि दोनों का युवाचार्य काल 3 दिन का ही रहा। माणकगणी धर्मसंघ में कुछ नवीनता लाना चाहते थे, पर काल का प्रभाव से वो कार्य नहीं कर सके। आचार्य तुलसी ने तो धर्मसंघ में नवीनता ला दी। मैं उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि इस दुनिया में अच्छाई और बुराई दोनों का स्थान है। पर साधारणतया बुराई की तरफ आकर्षण रहता है। सम्यक् दृष्टि के लिए आवश्यक है सही दृष्टिकोण का निर्माण होना। विषयों में मूर्च्छा सम्यक्दृष्टि के लिए बाधक तत्त्व है। सम्यक्त्व का दूसरा लक्षण है-संवेग। यानी मोक्ष प्राप्त करने की उत्कंठा। सम्यक् व्यक्ति सच्चाई को जानता है कि जन्म, जरा, रोग और मृत्यु दुःख है। संसार दुःख बहुल है। वो संसार से मुक्त होना चाहता है। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का विवेचन किया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि तीर्थंकर मोक्ष का मार्ग बताने वाले हैं, पर चलना हमें ही पड़ेगा।