धर्म की साधना करने का साधन है शरीर: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्म की साधना करने का साधन है शरीर: आचार्यश्री महाश्रमण

करुणानिधान करुणा बरसाते हुए

ताल छापर, 14 अक्टूबर, 2022
महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र में प्रश्नोत्तर के माध्यम से बताया गया है कि करण चार प्रकार के होते हैं-मन, वचन, काय और कर्म करण। करण शब्द हमसे बहुत परिचित भी है। करण यानि करना, कराना या अनुमोदन करना। योग यानि मन, वचन और काय। यहाँ भगवती सूत्र में मन, वचन, काय को करण कहा गया है। करण शब्द का शाब्दिक अर्थ है-साधन। जिसके द्वारा कुछ किया जाए। कार्य की सिद्धि में जो सहायक साधन होता है, वह करण कहलाता है। करण का अर्थ जीव वीर्य भी कहा गया है। योग, करण प्रवृत्ति के साधन हैं। इनके द्वारा हम क्या करते हैं, वो विशेष महत्त्वपूर्ण है।
मन से चिंतन स्मृति और कल्पना की जा सकती है। असत् से हम सत् की ओर आगे बढ़ें। अचिंतन की दिशा में भी हमारी गति हो। चिंता नहीं चिंतन करो। चिंता और चिता दो शब्द हैं। दोनों में सिर्फ एक बिंदु का फर्क है, चिता तो निर्जीव को जलाती है, पर चिंता तो सजीव आदमी को जला देती है। व्यक्ति शोक की अग्नि में जल जाता है। अच्छे संकल्पों वाला मन हो। वाणी भी हमारा विचार संप्रेषण का साधन है। आदमी झूठ और कपट वचन न बोले। शरीर से भी स्व-पर कल्याण सेवा की जा सकती है। धर्म की साधना का साधन भी शरीर बन सकता है। कर्मवाद के संदर्भ में आठ करणों की बात आती है। कर्मों की दस अवस्थाएँ हैं, उनमें सत्ता और उदय को करण नहीं कहा जाता है। सत्ता-उदय में हमारा पुरुषार्थ नहीं होता है।
मन, वचन और काय ये प्रवृत्ति के तीन साधन हैं, ये पाप करण न बनें। सत् शुभ करण रहे। शुभकरण दस्साणी गुरुदेव तुलसी के अंतरंग श्रावक थे। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन किया। 17 अक्टूबर से 23 अक्टूबर तक पूज्यप्रवर द्वारा घोषित कालूगणी अभिवंदना सप्ताह का आयोजन होने जा रहा है। इसके अलग-अलग विषय रखे गए हैं। पूज्यप्रवर ने मुमुक्षु मुदित की दीक्षा 8 दिसंबर को सिरियारी में प्रदान कराने की घोषणा करवाई। मुमुक्षु मुदित व मुमुक्षु शुभम को साधु प्रतिक्रमण सीखने की आज्ञा पूज्यप्रवर ने प्रदान करवाई। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।