जिसमें महान प्रज्ञा विकसित हो गई हो वो व्यक्ति महाप्रज्ञा हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
चाड़वास, 6 नवंबर, 2022
परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चाड़वासियों पर विशेष कृपा बरसाते हुए दिवस प्रवास हेतु छापर से चाड़वास पधारे। छापर चातुर्मास में पूज्यप्रवर ने एक दिन फरमाया था कि चातुर्मास के अंतर्गत एक दिन चाड़वास परसने का भाव है। महान व्यक्तित्व के धनी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे लिए प्रज्ञा का बहुत महत्त्व है। परम आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य-गुरु हुए हैं। हम उनके जीवन पर ध्यान दें तो ऐसा लगता है कि उनमें प्रज्ञा या प्रतिभा का अच्छा प्राकट्य था। वे कैसे अपनी बात को प्रस्तुत कर देते थे। यह उनके जीवन के एक प्रसंग से समझाया।
आज शुक्ला त्रयोदशी है। आचार्य भिक्षु का जन्म और महाप्रयाण भी शुक्ला त्रयोदशी को ही हुआ था। उनकी आचार्य परंपरा आगे बढ़ी। उनमें आठवें आचार्यश्री कालूगणी हुए जो छापर से संबंधित हैं। छापर में चातुर्मास का क्रम चल रहा है, बीच में हमारा चाड़वास भी आना हुआ है। कालूगणी द्वारा दीक्षित आचार्यश्री तुलसी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी हुए हैं। आचार्य तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी लंबे समय तक दोनों साथ-साथ रहे हुए हैं, जो विशेष बात है। मुनि नथमलजी एक मानीजते दार्शनिक संत थे। आचार्यश्री तुलसी ने आज ही के दिन गंगाशहर में मुनि नथमल जी को महाप्रज्ञ अलंकरण से अलंकृत किया था। जो गरिमापूर्ण अलंकरण है।
जिसमें महान प्रज्ञा विकसित हो गई हो, वो व्यक्ति महाप्रज्ञ हो सकता है। अलंकरण जैसा व्यक्तित्व हो तो अलंकरण की सार्थकता हो सकती है। राजलदेसर में 2035 के मर्यादा महोत्सव के समय मुनि नथमल जी टमकोर को गुरुदेव तुलसी ने अपना उत्तराधिकारी बनाया था और नाम बदलकर युवाचार्य महाप्रज्ञ कर दिया था। कई वर्षों तक आचार्य-युवाचार्य साथ-साथ रहे, फिर गणाधिपति व आचार्य साथ-साथ रहे थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का एक ही मर्यादा महोत्सव गणाधिपति तुलसी से अलग चाड़वास में हुआ था। मैं उस समय उनके साथ ही यहाँ था। आज दिवस प्रवास के लिए यहाँ आना हुआ है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का महाप्रज्ञ अलंकरण दिवस जीवन-विज्ञान दिवस के रूप में घोषित है।
जीवन-विज्ञान शिक्षण जगत के लिए बहुत उपयोगी है। विद्यार्थियों का ज्ञानात्मकता के साथ भीतरी भावनात्मक विकास हो। नैतिकता का भी विकास हो। साथ में आध्यात्मिकता का भी विकास हो। शारीरिक और बौद्धिक विकास भी आवश्यक है। पर साथ में मानसिक और भावनात्मक विकास भी विद्यार्थी में हो। ऐसा प्रयास होना चाहिए। जीवन-विज्ञान ऐसा प्रयास है, इससे विकास हो सकता है। महाप्राण ध्वनि उनमें से एक है। महाप्राण ध्वनि का सभी को प्रयोग करवाया। आई क्यू के साथ ई क्यू का भी विकास हो। चाड़वास में खूब धार्मिक विकास हो।
‘चाड़वास तेरापंथ के आइने में’ पुस्तक चाड़वासवासियों द्वारा पूज्यप्रवर को लोकार्पण हेतु अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि चाड़वास के मुनि सोहनलाल जी से तत्त्वज्ञान सीखने का मैंने प्रयास किया था। उनके पास भी कुछ समय साथ रहा था। तपस्या के प्रत्याख्यान पूज्यप्रवर ने करवाए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि चाड़वास में प्रवेश करते हुए ही अनेक घटनाएँ स्मृति में आ गई हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के पास गुरु का आशीर्वाद था। महाप्रज्ञ अलंकरण उनके विकास का प्रथम अलंकरण था। उनमें उत्तरोत्तर विनय भाव-गहराई बढ़ती गई। गुरुदेव तुलसी ने उन्हें अपना उत्तराधिकार सौंप दिया। अनेक कार्य उन्होंने गुरुदेव तुलसी के सान्निध्य में पूर्ण किए थे। गुरु की दृष्टि अनुसार वे कार्य करते रहे।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि महापुरुष में साधना की गहराई, आदर्शों की ऊँचाई और परोपकार की भावना रहती है। उनका जीवन निरंतर गतिमान रहता था। ऐसे महापुरुषों में एक हैµयुगप्रधान महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी। चाड़वास में गुरुदेव का चौथी बार पधारना हुआ है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय सभाध्यक्ष बाबूलाल बच्छावत, जुगराज, सरपंच प्रतिनिधि रामदेव गोदारा, महिला मंडल, कन्या मंडल, मोनिका चोरड़िया, कुसमदेवी लुणिया, छत्रसिंह बच्छावत (कवि), विकास मंच, चाड़वास के अध्यक्ष सुरेंद्र चोरड़िया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।