अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन

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अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आयोजन

चंडीगढ़।
आज सांप्रदायिक सौहार्द की बहुत ज्यादा जरूरत है। अणुव्रत आंदोलन धार्मिक सद्भावना में विश्वास रखता है। जाति, पंथ, संप्रदाय से ऊपर उठकर सर्वधर्म सद्भावना के वातावरण से हमारा देश और आगे बढ़ सकता है। सांप्रदायिक सौहार्द के संदेश को हम घर-घर तक पहुँचाएँ। यह शब्द मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह की शुरुआत करते हुए सांप्रदायिक सौहार्द दिवस और नवाह्निक आध्यात्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। मुनिश्री ने कहा कि सांप्रदायिक सद्भाव हर देश के लिए आवश्यक है। अगर देश में शांति और सद्भाव है तो ही यह विकसित हो सकता है।
नई पीढ़ी किसी भी समाज या देश के भविष्य का प्रतिबिंब होती है। नई पीढ़ी का सही दिशा में संतुलित विकास हो, यह स्वस्थ समाज रचना के लिए अभिष्ट है। बच्चों के बौद्धिक विकास के साथ-साथ उनके भावात्मक, आध्यात्मिक और शारीरिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है-जीवन-विज्ञान। आइए, बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के निर्माण में हम योगभूत बनें। यह शब्द मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत सप्ताह के दूसरे दिन जीवन-विज्ञान दिवस पर कहे।
मुनिश्री ने कहा कि विज्ञान की मदद से इंसानों ने कई तरह की खोज कर, अपने जीवन को और बेहतर बना लिया है। विज्ञान के जरिए ही आज हम लोगों ने नई तरह की तकनीकों का आविष्कार किया है, वहीं हर रोज ना जाने हम विज्ञान की मदद से बनाई गई कितनी तकनीकों और चीजों का इस्तेमाल करते हैं। मुनिश्री ने कहा कि विज्ञान मानव के लिए वरदान है। मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने अणुव्रत प्रेरणा दिवस पर कहा कि अणुव्रत व्यक्ति सुधार को एक सुखी समृद्ध समाज, देश और विश्व के निर्माण की बुनियाद मानता है। व्यक्ति सुधार के लिए अणुव्रत एक आचार-संहिता प्रस्तुत करता है, जिसे अपनाकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को रूपांतरित कर सकता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि आचार्य तुलसी ने धार्मिकता के साथ नैतिकता की नई सोच देकर अणुव्रत-दर्शन को प्रस्तुत किया। जिसका उद्देश्य था-मानवीय एकता का विकास, सह-अस्तित्व की भावना का विकास, व्यवहार में प्रामाणिकता का विकास, आत्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति का विकास व समाज में सही मानदंडों का विकास।
अणुव्रत सप्ताह के चौथे दिन पर्यावरण शुद्धि दिवस पर मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने कहा कि शुद्ध पर्यावरण के महत्त्व को आज दुनिया जितनी शिद्दत से अनुभव कर रही है, संभवतः मानव इतिहास में कभी नहीं किया होगा। यह इसलिए है क्योंकि मानव ने पर्यावरण को जितना नुकसान पिछली एक सदी में पहुँचाया है, उतना कभी नहीं पहुँचाया। भावी पीढ़ी को पर्यावरण संकट के बढ़ते खतरों से बचाना हमारा अहम दायित्व है। आइए, हम स्वयं पर्यावरण शुद्धि का संकल्प लें और दूसरों को भी जागरूक करें।
मुनिश्री ने आगे कहा कि अणुव्रत के नियमों का पालन करके चरित्र निर्माण किया जा सकता है। जिस देश के नागरिकों का चरित्र अच्छा होता है वह राष्ट्र हमेशा उन्नत रहता है। मुनिश्री ने कहा कि पर्यावरण का संरक्षण करना देश के हर नागरिक का कर्तव्य है। इसके लिए हम सभी ने वन्यजीव और पेड़-पौधे बचाने के लिए मेहनत करनी चाहिए। मुनिश्री ने नशा मुक्ति दिवस पर कहा कि धूम्रपान सामाजिक कोढ है, इस धूम्रपान से प्रतिवर्ष लाखों लोग मरते हैं, वह सेवन करने वाले व्यक्ति को तो नुकसान पहुँचाता ही है, पर इसके धुएँ से सामने वाले व्यक्ति को भी नुकसान होता है। अणुव्रत आंदोलन ने नशा मुक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया है और कर रहा है। अणुव्रत का लक्ष्य है नशा मुक्त समाज और उसी दिशा में समाज निरंतर गतिमान है।
मुनिश्री ने आगे कहा कि हम जानते हैं कि नशा नाश का द्वार है। इसके बावजूद, अमीर हो या गरीब युवा हो या प्रौढ़, आबादी का एक बड़ा हिस्सा नशे के चंगुल में घिरा है। नशे का यह घुन व्यक्ति और समाज दोनों को खोखला किए जा रहा है। इसके बचाव का अमोघ अस्त्र है-संकल्प। संकल्प शक्ति के माध्यम से ही नशे से जंग जीती जा सकती है। हम स्वयं नशामुक्ति के प्रति संकल्पित हों और जन-जन को संकल्पित कराने का प्रयास करें।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठे अनुशासन दिवस पर मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने एक महत्त्वपूर्ण उद्घोष दिया था-‘निज पर शासन, फिर अनुशासन’ अणुव्रत दर्शन के साथ जीवन-विज्ञान और प्रेक्षाध्यान का नियमित अभ्यास हमें स्वयं अपने ऊपर नियंत्रण की कला सिखाता है। व्यक्ति यदि स्वयं पर शासन करना सीख जाए तभी एक अनुशासित व्यक्ति, समाज या देश की कल्पना की जा सकती है। अणुव्रत, जीवन-विज्ञान और प्रेक्षाध्यान की इस त्रिवेणी को जीवन में अपनाने का हम प्रयास करें।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के सातवें दिन अहिंसा दिवस पर मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने कहा कि भारत देश से उठी अहिंसा की आवाज आज विश्व की आवाज बन चुकी है। अहिंसा अणुव्रत की आत्मा है और एक सुखमय, शांतिमय विश्व की कल्पना का आधार भी आज जहाँ दुनिया में हिंसा अपने पैर पसार रही है, अणुव्रत की उपादयेता और भी बढ़ गई है। आवश्यकता है अहिंसा शब्दों से आगे बढ़कर जीवन में उतरे। अहिंसा का सही अर्थ हम स्वयं समझें और जन-जन को अहिंसा में प्रशिक्षित करने के अभियान से जुड़ें। कार्यक्रम का मूल विषय था-‘धर्म का मूल अहिंसा’। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ0 के0के0 शारदा, चेयरमैन खादी सेवा संघ व एडवोकेट विनीत जाखड थे। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथ योग परिषद के पूर्व अध्यक्ष धीरज सेठिया, लुधियाना ने किया। कार्यक्रम में सम्मिलित 80 से ज्यादा श्रावक-श्राविकाओं ने दिन में 2 घंटे के मोबाइल का उपयोग न करने का संकल्प लिया।