सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलने का करें प्रयास: आचार्यश्री महाश्रमण

बड़ी खाटू, 19 नवंबर, 2022
मनुष्य को मनुष्यता का अनुभव कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः छोटी खाटू से विहार कर बड़ी खाटू पधारे। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्न होता है कि सत्य क्या है? यथार्थ क्या है? हम दुनिया में जी रहे हैं, दुनिया को देख भी रहे हैं। जितनी दुनिया हम देख पा रहे हैं वह उतनी ही है या और भी है। इस सृष्टि में कितनी चीजें हैं। सूर्य, चंद्रमा कितने हैं। कितने प्राणी दुनिया में हैं। ये वनस्पति, पानी भी सजीव है। वायु, अग्नि व मिट्टी सजीव हो सकती है। देव जगत कितना विशाल है। नरक में नारकीय जीव कितने हैं। वीतराग हैं, उन्होंने जो प्रवेदित कर दिया है, वो सत्य है, निशंक है।
आदमी सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलने का प्रयास करे। ये दोनों जीवन में आ जाएँ। सत्य और प्रिय बोलें, शब्द के साथ हमारे भाव अच्छे हों। अध्ययन के द्वारा हम सच्चाई को प्राप्त कर सकते हैं। साफ-साफ कहने वाले हो तो साफ-साफ सुनने का भी प्रयास करें। सिर्फ दूसरों के दोष न देखें, अच्छाई भी देखें। जीवन को भीतर की आँखों से देखने का प्रयास करें। झूठा आरोप न लगाएँ। आत्मा का अतिन्द्रिय ज्ञान जाग जाए तो फिर हम बिन किताब पढ़े सच्चाइयों से रूबरू हो सकते हैं। इंद्रियों के आधार पर भी सच्चाई जान सकते हैं। बच्चे सच्चे भी हों और अच्छे भी हों तो जीवन अच्छा जिया जा सकता है। आज बड़ी खाटू आए हैं। पहले भी आना हुआ है। यहाँ की जनता में धार्मिक भावना रहे। अहिंसा यात्रा के तीन सूत्रों को समझाकर स्वीकार करवाया। सभी इन संकल्पों को पालने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि पूज्यप्रवर ऐसे विरले व्यक्तित्व हैं, जो मनीषी भी हैं और हितैषी भी हैं। जो विद्वान होते हैं, उनकी चेतना जागृत रहती है। पूज्यप्रवर लेखक भी हैं और वक्ता भी। मैं आपको साहित्यकार के रूप में देख रही हूँ। प्रमुखाश्री जी ने विद्यार्थियों को अच्छी जीवनशैली के गुर समझाए। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में बरमेचा-कोठारी परिवार की बहनों ने गीत से, चंदनबाला, रामकुमार टेलर, अभिलाषा, राजश्री कोठारी, इंद्र कोठारी, रणजीत गुर्जर (स्कूल से) ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।