संसार सागर को पार करने के लिए संवर और निर्जर की साधना हो पुष्ट : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संसार सागर को पार करने के लिए संवर और निर्जर की साधना हो पुष्ट : आचार्यश्री महाश्रमण

सोजत रोड, 5 दिसंबर, 2022
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः बगड़ी से 7 किलोमीटर विहार कर सोजत रोड स्थित तेरापंथ भवन पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि भवसागर को तरने की बात आती है। यह संसार जन्म-मरण की परंपरा, 84 लाख जीव योनियों का यह जगत, यह एक सागर-अरणव है। इस सागर को तरने की इच्छा है, तो नौका चाहिए। यह शरीर, मनुष्य जीवन नौका है। ये जीव भाविक है। जो महर्षि है, वे इस नौका के द्वारा यात्रा करके इस संसार समुद्र का पार पा सकते हैं, तर सकते हैं। इस मानव जीवन रूपी नौका में अगर छिद्र है, वो नौका तो डुबोने वाली हो सकती है। आश्रव छिद्र होते हैं। ये जीवन में है, तो कर्म रूपी पानी आ जाएगा और नौका डुबोने वाली बन जाएगी। इस आश्रव रूपी छिद्र को बंद करें।
नौका को आगे चलाने के लिए तपस्या करें तो कर्म झड़ते जाएँगे। यह संसार समुद्र तिरण हो जाएगा। संवर और निर्जरा की साधना पुष्ट होगी तो संसार सागर पार हो जाएगा। संवर और निर्जरा में ज्यादा महत्त्वपूर्ण संवर है। संवर हर किसी जीव के नहीं होता। सिर्फ थोड़ा संवर संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय व संज्ञी मनुष्य के ही होता है और किसी के नहीं होता। निर्जरा तो मिथ्यात्वी के भी हो सकती है, पर संवर दुर्लभ है। मानव जीवन में धर्म की विशेष साधना हो सकती है। जब तक शरीर की सक्षमता है, जो करना हो सो कर लो। अक्षमता होने पर कठिनाई हो सकती है। बुढ़ापा, बीमारी, अक्षमता के कारण है। इंद्रियाँ कमजोर पड़ जाने से भी अक्षमता आ सकती है। इसलिए क्षण भर भी प्रमाद मत करो। आचार्य भिक्षु भी अंतिम समय तक पुरुषार्थ करते थे। उनके जीवन से हम प्रेरणा लेने का प्रयास कर सकते हैं।
तेरापंथ को मारवाड़ के बहुत अवदान हैं। आचार्य भिक्षु, जयाचार्य और गुरुदेव तुलसी यहाँ से हुए हैं। इस भूमि में हमारा विचरण संक्षेप में हो रहा है। सन् 1991 में मैंने सिवांची-मालानी की यात्रा कर गुरुदेव तुलसी के यहाँ दर्शन किए थे। हम इस शरीर की सक्षमता का अच्छा उपयोग करें। धर्म की आराधना में उपयोग करते रहें, यह अपेक्षा है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि कांठा प्रदेश की यात्रा में पूज्यप्रवर का सोजत में आगमन हुआ है। भारतीय साहित्य में दो शब्द महत्त्वपूर्ण हैं-गुरु और परमात्मा। दोनों का महत्त्व है। आत्मा का साक्षात्कार तभी होता है, जब गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। गुरुकृपा से ही व्यक्ति विकास कर सकता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सभाध्यक्ष संपतराज परमार, तेरापंथ महिला मंडल, स्थानकवासी संघ से खुशाल सुंदेचा, मूर्तिपूजक संघ से अमृत गुगलिया, व्यवस्था समिति से विमल सोनी, सरपंच लक्ष्मी देवी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।