अहंकार और आलस्य हमारे शत्रु के समान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अहंकार और आलस्य हमारे शत्रु के समान: आचार्यश्री महाश्रमण

चावंडिया कलां, 2 दिसंबर, 2022
जैन एकता के प्रतीक आचार्यश्री महाश्रमण जी पावन धाम जैतारण से 12 किलोमीटर विहार कर चावंडिया के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय परिसर में पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे शरीर में पाँच इंद्रियाँ जो ज्ञानेन्द्रियाँ हैं तथा पाँच कर्मेन्द्रियाँ भी हैं। कान, चक्षु, नासिका, रसन और स्पर्शन ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। हाथ-पाँव आदि पाँच कर्मेन्द्रियाँ हैं। इन इन्द्रियों से हमारा कार्य भी होता है और ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान भी मिलता है। हाथ-पाँव हमारे चार नौकर के समान हैं, जो हमारा काम करते हैं। इनमें न तो अहंकार और न आलस्य आडे़ आए। तीन कारण से आदमी अपना काम करने से इतराता है-अहंकार, आलस्य और व्यस्तता।
आलस्य बड़ा शत्रु है, तो परिश्रम बड़ा मित्र है। परिश्रम करने वाला व्यक्ति दुःख और मानसिक पीड़ा से बच सकता है। व्यस्तता या असक्षमता से कभी दूसरों से काम कराना पड़ सकता है, पर आलस्य या अहंकार वश दूसरों से काम न करवाएँ। ये चार नौकर सक्षम और मजबूत रहें। यह एक प्रसंग से समझाया कि काम न करने वाला कभी बड़ा नहीं होता है। जीवन में अच्छे संस्कार हों। स्थानीय विद्यार्थियों को अहिंसा यात्रा के संकल्प स्वीकार करवाए।
आचार्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे एक मुनि अनिकेत कुमार जी महाराष्ट्र से राजस्थान आ रहे थे। अचानक उनकी शारीरिक स्थिति बिगड़ी और उनका देहावसान हो गया। उनके संसारपक्षीय पुत्र मुनि भी उनके साथ थे। उनकी संसारपक्षीय पत्नी व दो पुत्रियाँ भी साध्वियाँ हैं। संसारपक्षीय पारिवारिक जन भी आज यहाँ दर्शनार्थ आए हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय की बालिकाओं ने गीत की प्रस्तुति दी। शिक्षक ओमप्रकाश, कर्णसिंह ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। बायतू व्यवस्था समिति द्वारा विद्यालय परिवार का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।