वाणी का अपव्यय करने वाला कर सकता है पाप कर्म का बंधन: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वाणी का अपव्यय करने वाला कर सकता है पाप कर्म का बंधन: आचार्यश्री महाश्रमण

जैतारण के पावन धाम में जैन संप्रदाय की दो धाराओं का सुमधुर आध्यात्मिक मिलन

जैतारण, 1 दिसंबर, 2022
युगप्रधान महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी बांजाकुड़ी से विहार कर जैतारण स्थित स्थानकवासी संप्रदाय के मरुधर केशरी पावन धाम पधारे। आचार्यप्रवर के पदार्पण पर स्थानकवासी संत सुकन मुनि जी ने अपने शिष्यों एवं अनुयायियों के साथ पूज्यप्रवर का भव्य स्वागत अभिनंदन किया। दो संप्रदाय के संतों का यह मिलन जैन एकता और समरसता को नई गति प्रदान कर रहा था। आचार्यप्रवर परिसर में स्थित आचार्य मिश्रीमलजी एवं आचार्य रूपमुनि जी के समाधिस्थल पर भी पधारे। मरुधर केशरी पावन धाम में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि हमारे पास मन की उपलब्धि भी है, वाणी भी हमें प्राप्त है और शरीर भी हमारे साथ है। ये तीन साधन प्रवृत्ति के होते हैं। आदमी मन से स्मृति, कल्पना और चिंतन कर सकता है। वाणी से वह विचारों का आदान-प्रदान करता है। शरीर से अनेक कार्य होते हैं।
भाषा एक ऐसी उपलब्धि है, जिसका अच्छा उपयोग किया जाए तो स्वयं के लिए भी लाभप्रद हो सकता है और दूसरों का भी हित हो सकता है। शास्त्रकार ने सुझाव दिया है कि साधु आदमी मित, परिमित बोले। वाणी का अपव्यय करने वाला कहीं-कहीं पाप कर्म का बंध कर सकता है। असत्य का दोष लग सकता है और आपसी संबंधों में कटुता आ सकती है। वाणी के दो विष-अवगुण होते हैंµबात को लंबा करना और कही गई बात में सार बहुत कम है। धर्म की परंपरा में मौन का अच्छा महत्त्व है पर एक दृष्टि से अनावश्यक न बोलना बड़ा मौन है। दोष रहित भाषा यानी अयथार्थ और कटु बात न कहें। किसी पर झूठा आरोप न लगाएँ। मीठा बोलें। विचारपूर्वक बोलना चाहिए। ये बातें वाणी के साथ जुड़ जाती हैं, तो हमारी भाषा संयमयुक्त और उपयोगी बन सकती है।
जैन शासन के पास ज्ञान का अच्छा खजाना है। स्वाध्याय से निर्जरा का लाभ मिल सकता है। ज्ञान और वैराग्य की वृद्धि हो सकती है। जिन शासन में सूक्ष्म अहिंसा, संयम और तप की बात आती है। भगवान महावीर से जुड़ा जिन शासन है। जिन शासन में जो भिन्न-भिन्न लोग दीक्षित हो गए, वो मानो भाई-भाई हो जाते हैं। आज हमारा जैतारण के पावन धाम में आना हुआ है। प्रवर्तक सुकन मुनि जी महाराज से कई वर्षों बाद मिलना हुआ है। उप-प्रवर्तक अमृत मुनिजी से मेरा ज्यादा परिचय संभवतः नहीं होगा। रूप मुनिजी रजत को तो अनेक बार देखा है। रूप मुनिजी श्रमण संघ के अपने ढंग के व्यक्तित्व थे। अनेक व्यक्तित्व जैन शासन में आते हैं, काम करते हैं और चले जाते हैं। जैन शासन में हमारा मैत्री का भाव परस्पर पवित्र रहे।

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हमारा मिलन दूध और मिश्री के मिलन के समान: समण संघीय प्रवर्तक सुकन मुनिजी

श्रमण संघ के प्रवर्तक सुकन मुनिजी ने कहा कि आज पावन धाम में पावन प्रसंग आप और हम देख रहे हैं। जैतारण जगतारण है। आज हमारे आत्मीय तेरापंथ के महान आचार्य पधारे हैं। सबके साथ इनका स्नेह रहता है। ये महाश्रमण हैं। आचार्यश्री तुलसी गुरु महाराज से यहाँ मिले थे और सारी भ्राँतियाँ दूर हो गई थीं। शंका का समाधान हुआ था। जहाँ भी हम मिलते हैं, साथ रहना होता है। ये तो हमारा ही घर है।
आप यहाँ पधारे, हमें बहुत खुशी है। आपने अहिंसा यात्रा निकाली है। अहिंसा भगवान महावीर का मार्ग है। यह मार्ग गंगा का नीर है। हमारा जीवन भी स्वच्छ रहे। आज दो तटों का मिलन हुआ है। हमारा मिलन दूध और मिश्री के मिलन की तरह हुआ है। संतों का अभिनंदन तो वचनों से होता है। मुनि हितेष जी एवं मुनि परम कुमार जी ने भी अपनी वंदना अभिव्यक्त की।

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हम सब कल्याण का काम करते रहें। पावन धाम अच्छा प्रांगण है। शिव मुनि से तो 2014 में मिलना हुआ था। जैतारण के भी सभी लोग आत्म साधना करते रहें। खूब अच्छा रहे। हमें जैन शासन अध्यात्म का मार्ग मिला है। जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आचार्यप्रवर ने ‘जैन धर्म की जय हो’ गीत का आंशिक संगान किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर परिभ्रमण करते-करते आज जैतारण पावन धाम पधारे हैं। पावन धाम मरूधर केशरी और रूप मुनि की संस्कार-महाप्रयाण भूमि है। आज दो धाराओं का मिलन हुआ है। आचार्य भिक्षु ने मुनि अवस्था में यहाँ चातुर्मास किया था। आगे जैतारण-लारै जैतारण के प्रसंग को समझाया। आचार्यप्रवर ने लंबी यात्राएँ की हैं। अनेक राजनेताओं एवं अनेक धर्म-संप्रदायों के संतों से मिले हैं।
पूज्यप्रवर के स्वागत में तख्तराज छल्लानी, डॉ0 चंचलराज छल्लाणी, विधायक अविनाश गहलोत, पावन धाम से नेमीचंद चोपड़ा, जैतारण संघ के मंत्री महावीर लोढ़ा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। जैतारण महिला मंडल ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।