अध्यात्म की साधना का प्रमुख लक्ष्य हो मोक्ष प्राप्ति: आचार्यश्री महाश्रमण
मारवाड़ जंक्शन, 11 दिसंबर, 2022
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः 13 किलोमीटर का विहार कर राणावास से मारवाड़ जंक्शन पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पावन ने फरमाया कि धार्मिक साहित्य में मोक्ष की बात आती है। सर्वकर्मों से युक्त हो जाना और शाश्वत सुखों को प्राप्त कर लेना, लोक के ऊपरी भाग में आत्मा का स्थित हो जाना यह मोक्ष की बात है। अध्यात्म की साधना का प्रमुख लक्ष्य मोक्ष ही होना चाहिए। हमारी आत्मा अनंत काल से जन्म-मरण करती आ रही है। इस जन्म-मरण की शंृखला का विच्छेद हो जाना-बंध हो जाना तभी संभव है, जब आत्मा मोक्ष को प्राप्त हो जाती है। इस बात के प्रवक्ता तीर्थंकर होते हैं। कितने-कितने भव्य जीव सन्मार्ग पर स्थित हो जाते हैं।
तीर्थंकर अध्यात्म के अधिकृत प्रवक्ता होते हैं। जैन शासन में सृष्टि में बीस तीर्थंकर तो हमेशा विद्यमान रहते हैं। ज्यादा से ज्यादा 170 तीर्थंकर एक साथ हो सकते हैं। वर्तमान में यहाँ तीर्थंकर तो उपलब्ध नहीं है। आचार्य तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं। आचार्य आगम के वेत्ता होते हैं। आगमों में जो तत्त्व है, उसको नवनीत के रूप में उपाध्याय-आचार्य आदि परोस सकते हैं। जो चंड है, आक्रोधशील है, ऐसे आदमी को मोक्ष नहीं मिलता है। गुस्सा भी एक कमजोरी है। आदमी क्षमाशील बने। जिसके पास क्षमा की तलवार है, दुर्जन उसका क्या बिगाड़ेगा? क्षमा वीरस्य भूषणं। सक्षमता होने पर भी क्षमा को रखना बड़ी बात होती है। जैन शासन में पर्युषण क्षमा का पर्व है। जो जागृत है, वो वीर हो जाता है। प्रभु महावीर ने कितना क्षमा का भाव रखा था।
जिसके मन में अहिंसा प्रतिष्ठित हो जाती है, उसके पास आने वाला व्यक्ति भी बैर-भाव से मुक्त बन सकता है। हमारे जीवन में क्षमा का भाव रहे। उपशम से गुस्से को परास्त करने का प्रयास करें। मानव जीवन दुर्लभ है। इस जीवन में हम धर्म की आराधना-साधना करें। हम अच्छी साधना करते हुए मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ें, यह काम्य है। आज मारवाड़ जंक्शन आए हैं। जिनेंद्र-अर्हत का जाप करते रहें। जैन-अजैन सभी में धर्म की भावना रहे। यहाँ से हमारे धर्मसंघ में साध्वियाँ भी हैं। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरु को हम कल्पवृक्ष के रूप में देख रहे हैं। गुरु के पास जो मनोकामना लेकर जाता है, वो पूरी हो जाती है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना-स्वागत में गणपत मरलेचा, सकल संघ गीत से पारसमल भंडारी (जिनेंद्र विहार से), तेममं, हरखचंद पोरवाल, साध्वी अनंतप्रभा जी, साध्वी लक्ष्यप्रभा जी, प्रकाश भंडारी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
प्रकाश भंडारी ने अपनी मातुश्री उकी देवी भंडारी की स्मृति में पुस्तक ‘मातृ-छाया’ पूज्यप्रवर को अर्पित की। पूज्यप्रवर ने महाश्रमण एक्सप्रेस में उल्लेखित त्याग के संकल्प करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।