चित्त में संयम साधना की भावना रहे: आचार्यश्री महाश्रमण
खैरवा, 13 दिसंबर, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी 12 किलोमीटर का विहार कर खैरवा पधारे। मंगल प्रवचन में प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमें मानव जीवन प्राप्त है और 84 लाख जीव योनियों में मनुष्य जन्म बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। संज्ञी मनुष्य के मन होता है। ये चित्त और मन बदलता रहता है। भाव भी बदल जाते हैं। कभी यह शांत, ऋजु और संतोष में रहता है, तो कभी ये गुस्सा, वक्र और लोभ में भी परिवर्तित हो जाता है। भीतर में अहिंसा, अच्छाई का बीज भीतर में होता है, तो हिंसा और बुराई के संस्कार भी भीतर में होते हैं। मन कभी सद्भावना में रहता है, तो दुर्भाव में भी चला जाता है।
आदमी को चाहिए कि हिंसा के संस्कार कमजोर पड़ें, अहिंसा के संस्कार उजागर हों। बुराईयाँ छूटे, अच्छाईयाँ जीवन में आएँ। दुर्भाव की दुर्गति हो, सद्भावना और सद्गति के भाव उजागर हो जाएँ। असद् से सद् की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमृत्व की ओर प्रस्थान धर्म की साधना के द्वारा हो सकता है। संत पुरुष जो धर्म का प्रकाश फैलाने वाले होते हैं। आज हम खैरवा आए हैं, जो परम पूजनीय आचार्य भिक्षु की कर्मभूमि रहा है। तेरापंथ का पुराना श्रद्धा का क्षेत्र है। यहाँ उनके अनेक चातुर्मास हुए हैं। समय-समय की बातें हैं। आचार्य भिक्षु ने ग्रंथों के माध्यम से बहुत ज्ञान प्रदान करने का प्रयास किया था।
संत तो शांति और सद्भावना में रहें। चित्त दुश्चित्त बन सकता है तो सुचित्त भी बन सकता है। चित्त में संयम-साधना की भावना रहे। आचार्य भिक्षु ने लंबा जीवन जीया था। वे कितना परिश्रम करते थे। उनका अपना बौद्धिक बल और श्रद्धा का बल था। वे आचार कुशल थे। एक व्यक्तित्व में कितनी बातें थीं। खैरवा क्षेत्र तो खैर का खूँटा है। खैरवा में सद्भावना, अहिंसा, नैतिकता और नशामुक्ति गाँव के लोगों में रहे। सबमें शांति रहे। यहाँ के लोगों के प्रति मंगलकामना है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि महान व्यक्तियों की सन्निधि दुर्लभ होती है। मनुष्य जन्म दुर्लभ है, तो उससे दुर्लभ है महान व्यक्तियों का संग-सान्निध्य। बिरले लोग होते हैं, जिन्हें महान व्यक्तियों का सान्निध्य उपलब्ध होता है। आचार्यप्रवर जहाँ पधारते हैं, वहाँ के लोगों के घर खुल जाते हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में पारसमल खांटेड़, तेममं गीत, दलपत कोठारी, शैतान सिंह ने अपनी भावना रखी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।