मनुष्य भव का उपयोग केवल धन संपदा नहीं धर्म संपदा बढ़ाने में करें

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मनुष्य भव का उपयोग केवल धन संपदा नहीं धर्म संपदा बढ़ाने में करें

सूरत।
मुनि उदित कुमार जी ने वाटर हिल्स रेजिडेंसी वेसू में धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य भव दुर्लभ है। अनेकों भवों की पुण्याई का उदय होता है तब मनुष्य भव मिलता है। एक बार मनुष्य भव प्राप्त होने के बाद पुनः कब मनुष्य भव प्राप्त होगा यह कुछ निश्चित नहीं है। मनुष्य भव ही एक ऐसा भव है, जिसमें व्यक्ति पूर्व संचित कर्मों का क्षय कर सकता है। अतः मनुष्य भव में जो समय मिला है वह अमूल्य है उसका सदुपयोग करना चाहिए। मुनिश्री ने आगे कहा कि भगवान महावीर का यह कथन अति मूल्यवान है। इसका अर्थ है जो क्षण को पहचानता है वह पंडित है। वास्तव में जो वर्षों तक विद्याभ्यास करता है, बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ प्राप्त कर लेता है वह पंडित नहीं है लेकिन जो समय का मूल्य समझकर उसका सदुपयोग कर लेता है वह पंडित है, समझदार है।
मुनिश्री ने कहा कि तीन प्रकार के मनुष्य होते हैं-प्रथम प्रकार के मनुष्य वे होते हैं जो गलत रास्ते पर जाकर अपनी धन-संपदा को बर्बाद कर देते हें। दूसरे प्रकार के मनुष्य अपनी धन-संपदा जितनी है उसे सुरक्षित रखते हैं। न कम करते हैं न बढ़ाते हैं। तीसरे मनुष्य होते हैं जो अपनी धन-संपदा को अपने पुरुषार्थ से अनेक गुना बढ़ा देते हैं। इनमें से जो मनुष्य अपनी धन-संपदा में वृद्धि कर लेते हैं उसे समझदार मनुष्य माना जाता है। उसी प्रकार धर्म-संपदा में भी जो व्यक्ति त्याग-तपस्या, सेवा-सत्संग, स्वाध्याय द्वारा अपनी धर्म संपदा को वृद्धिंगत कर लेते हैं उन्हें समझदार मनुष्य माना जाता है।