संबोधि

स्वाध्याय

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बंध-मोक्षवाद

मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह
(15) अप्रमाणं न भु×जीत, न भु×जीताप्यकारणम्।
श्लाघां कुर्वन्न भु×जीत, निन्दन्नपि न चाहरेत्।।

मुनि मात्रा से अधिक न खाए, निष्कारण न खाए, सरस भोजन की सराहना और नीरस भोजन की निंदा करता हुआ न खाए।

इस श्लोक में भोजन करने का विवेक दिया गया है। आयुर्वेद में भी आहार के तीन प्रकार बताए गए हैं-हीनाहार, मिताहार और अति आहार। मिताहार स्वास्थ्य के अनुकूल होता है। हीनाहार और अतिआहार स्वास्थ्य के प्रतिकूल होता है। यद्यपि कुछ व्यक्तियों का विश्वास है कि हीनाहार से पाचन-क्रिया ठीक होती है, पर आयुर्वेद की दृष्टि से वह सही नहीं है जैसा कि कहा गया है-
‘हीन आहर से बल, सौंदर्य और पुष्टता नष्ट होती है। आयुष्य और ओज की हानि होती है। शरीर, मन, बुद्धि और इंद्रिय का विनाश होता है तथा अस्सी प्रकार के वायु रोग उठ खड़े होते हैं।
आयुर्वेद में कहा है-
आहारमग्निः पचति, दोषानाहारवर्जितः।
धातून् क्षीणेषु दोषेषु, जीवितं धातुसंक्षये।।
‘अग्नि आहार को पचाती है। आहार के अभाव में वह दोषों को पचाती है। दोष क्षीण होने पर वह धातु को और धातुओं के क्षीण होने पर वह जीवन को लील जाती है।’
आहार कैसे करें?-स्वास्थ्यविदों ने भोजन करने की कुछ विधियाँ निश्चित की हैं। वे बहुत उपयोगी हैं। उनमें पहली विधि यह है-
(1) तन्मना भुंजीत-आहार करते समय मन आहार में ही रहना चाहिए।
(2) नातिद्रुतमश्नीयात्-बहुत जल्दी-जल्दी नहीं खाना चाहिए।
(3) नातिविलम्बितमश्नीयात्-बहुत धीरे-धीरे नहीं खाना चाहिए।
(4) अजल्पन् अहसन् तन्मना भुजीत-भोजन करते समय न बातचीत करनी चाहिए और न हँसना चाहिए। मन केवल भोजन में रहना चाहिए।
ईर्ष्याभयक्रोधपरिक्षतेन लुब्धेन रुग्दैन्यनिपीडितेन।
प्रद्वेषयुक्तेन च सेव्यमानमन्नं न सम्यक् परिपाकमेति।।
मात्रयाप्यभ्यवहृतं, पथ्यं चान्नं न जीर्यति।
चिन्ताशोकभयक्रोधदुःखशय्याप्रजागरैः।।
-‘भाजन करते समय मन शांत रहना चाहिए। क्योंकि ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, रोग, दीनता, प्रद्वेष, चिंता, शोक, दुःख-शय्या और रात्रि-जागरण-इन अवस्थाओं से प्रभावित व्यक्ति जो खाता है उसका ठीक-ठीक परिपाक नहीं होता। वह यदि पथ्य आहार करता है और युक्त मात्रा में करता है, फिर भी उसका खाया हुआ भोजन उचित रूप में नहीं पचता।’

मेघः प्राह
(16) जायन्ते ये म्रियन्ते ते, मृताः पुनर्भवन्ति च।
तत्र किं जीवनं श्रेयः, श्रेयो वा मरणं भवेत्।।

मेघ बोला-जिनका जन्म होता है, उनकी मृत्यु होती है। जिनकी मृत्यु होती है, उनका पुनः जन्म होता है। ऐसी स्थिति में जीना श्रेय है या मरना?

(क्रमशः)