साधन से नहीं अपितु साधना से मिलता है आत्मिक सुख: आचार्यश्री महाश्रमण
अजीत, 28 दिसंबर, 2022
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ प्रातः लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर अजीत पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हर आदमी सुख पाना चाहता है। सुख भी दो प्रकार का होता है-एक तात्कालिक अनुकूलता या सुविधा के रूप में सुख का होना और दूसरा-आत्मा के भीतर का सुख; जो साधना से मिलने वाला होता है। भीतर के सुख में एक बड़ी बाधा है-बाह्य पदार्थों की कामना। आदमी को कई बार कामना इतना क्रांत कर देती है कि उसे जो चाहिए, मिल गया तो उसे और अधिक की लालसा रहती है। कामना कभी भी पूरी नहीं होती है, तो आदमी दुखी बनता है, कभी मन में गुस्सा भी आ जाता है। जिसने कामनाओं का त्याग कर दिया, वो आदमी काफी सुखी रह सकता है। जिसे परिग्रह, ममत्व और मेह है, वह आदमी दुखी बन सकता है।
एक प्रसंग से समझाया कि परिग्रह कभी अनर्थ का कारण बन सकता है। साधु के जीवन में अपरिग्रह की साधना अच्छी रहे। गृहस्थ को परिग्रह तो चाहिए पर उसके भी इच्छाओं की सीमा हो। अर्थ के अर्जन में ईमानदारी हो। न्याय-नीति से कमाया पैसा शुद्ध होता है। जीवन में प्रामाणिकता रहे। चाहे जितना भी कमा लो, आगे तो कुछ साथ में जाएगा नहीं। अपने धर्म का प्रभाव व कर्म साथ में जाएँगे। आदमी के जीवन में धर्म की साधना हो। वर्तमान में जो भौतिक सुख है, वो तो पिछली पुण्याई भोग रहा है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाएँ तो कल्याण हो सकता है। कषाय से आत्मा-मलिन हो सकती है। सामायिक की साधना करें। हर धर्म का सार है-अहिंसा, संयम और तप। हमेशा जीवन में धार्मिकता रहे।
आज हम अजीत नगर आए हैं। बाहर की मोह-माया हमें जीत न सके, इस रूप में हम अजीत में रहें। ये कामनाएँ, पदार्थ शल्य हैं, जो जीवन में कष्ट पैदा कर सकते हैं। हम भौतिक कामना से हल्के रहें। कुछ गृहस्थ जीवन में साधु जैसे हो जाते हैं। जीवन में साधना बढ़े। अच्छे सद्गुण रहें और गुणों के विकास का प्रयास होता रहे। आदमी को पद या पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए। पद सेवा के लिए है। पद पर आकर सेवा न करें तो उसका जीवन बेकार है, राजनीति तो सेवा का साधन है, पर जीवन में नैतिकता, सद्भावना, नशामुक्ति रहे। संयम-अहिंसा के जीवन जीएँ तो कल्याण की बात हो सकती है। पूज्यवर ने स्थानीय लोगों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्पों को समझाकर संकल्प स्वीकार करवाए।
पूज्यप्रवर के आज साध्वी पावनप्रभा जी एवं साध्वी प्रांजलप्रभा जी ने दर्शन किए। साध्वी पावनप्रभा जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में प्रस्तुत की। साध्वियों ने गीत से पूज्यप्रवर का वर्धापन किया। पूज्यप्रवर ने अपना आशीर्वचन फरमाया। पूज्यप्रवर के स्वागत में श्री जैन संघ के अध्यक्ष विजयराज जीरावला, छगनराज भूरत, ग्राम पंचायत से सुरेंद्र सिंह सारण, पोकरण ठाकुर, नागेंद्र सिंह ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में दो परंपराएँ-वैदिक और श्रमण परंपरा प्रवाहित हैं। श्रमण परंपरा का एक विभाग है-जैन परंपरा। जो लोग जिन भगवान को देव मानते हैं, उनको जैन कहलाया जाने लगा। जैन परंपरा के प्रतिनिधि आज अजीत गाँव में पधारे हैं। जैन धर्म महान इसलिए है कि वह जन-जन का धर्म बना हुआ है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।