ज्ञाान, धन और पद का घमंड नहीं करना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण
जेठंतरी, 30 दिसंबर, 2022
युगदृष्टा आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः समदड़ी से विहार कर लगभग 12 किलोमीटर स्थित जेठंतरी गाँव के राजकीय विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि आदमी के जीवन में कभी अनुकूल स्थिति आ जाती है, तो कभी प्रतिकूल परिस्थिति भी सामने उपस्थित हो जाती है। अनुकूलता-प्रतिकूलता बड़े-बड़े लोगों के जीवन में भी आ सकती है, तो सामान्य के जीवन में भी आ सकती है। प्रतिकूल व्यवहार हो तो कई बार आदमी को गुस्सा भी आ जाता है। यह गुस्सा एक कमजोरी है और हमारा शत्रु भी है। आलस्य भी आदमी का महाशत्रु है। गुस्सा त्याज्य है, इससे दुर्गति होती है। शांति-क्षमाशीलता सुगति का कारण है। गुस्सा प्रेम का, प्रीति का नाश करने वाला है। गुस्से से मन की शांति नष्ट हो सकती है।
कम खाना, गम खाना और नम जाना अच्छी बात है। इसमें व्यक्ति स्वस्थ, मस्त और प्रशस्त रह सकता है। साधु के सामने सभी झुकते हैं और त्याग के सामने सत्ता झुकती है। साधु गुस्सा, अहंकार न करे। साधु तो अकिंचन होते हैं। साधु त्यागी होते हैं। गरीबी अलग चीज है, अकिंचन होना अलग चीज है। पुण्य से पदार्थ मिल सकता है, पर उसका अहंकार न हो, उसके प्रति आसक्ति न हो। ज्ञान का भी अहंकार न हो, यह एक प्रसंग से समझाया कि गुरु के प्रति बहुमान हो। ज्ञान है, तो उसका उपयोग करो। हमें एक अक्षर का ज्ञान देने वाला हमारा गुरु होता है। हमें अपने जीवन में घमंड करने से बचना चाहिए। ज्ञान, धन और पद का घमंड कभी नहीं करना चाहिए। उसका अच्छा उपयोग करें। इससे हम जीवन में गुस्से व घमंड से बच सकते हैं।
आचार्यप्रवर ने जेठंतरी गाँव के लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति के संकल्प समझाकर स्वीकार करवाए। पूज्यप्रवर के स्वागत में उममेद सिंह चंपावत, लूणचंद, प्रेमसिंह राजपुरोहित, सरपंच प्रतिनिधि भंवरसिंह, महिला मंडल जेठंतरी, वरिष्ठ अध्यापक अंबाराम चौधरी, कृष्णा, प्रवीण सालेचा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।