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संबोधि
बंध-मोक्षवाद
मिथ्या-सम्यग्-ज्ञान-मीमांसा
भगवान् प्राह
(19) अकामं नाम बालानां, मरणं जायते मुहुः।
पण्डितानां सकामं तु, अल्पादल्पं सकृद् भवेत्।।
बालµअसंयमी जीवों का बार-बार अकाम-मरण होता है। पंडितµसंयमी जीवों का सकाम-मरण होता है और वह अधिक बार नहीं होताµकम से कम एक बार और उत्कृष्टतः पंद्रह बार होता है, फिर वह मुक्त हो जाता है।
(20) पतित्वा पर्वताद् वृक्षात्, प्रविश्य ज्वलने जले।
म्रियते मूढचेतोभिः, अप्रशस्तमिदं भवेत्।।
मूढ चेतना वाले लोग पर्वत या वृक्ष से नीचे गिरकर, अग्नि या जल में प्रवेश कर मरते हैं, वह अप्रशस्तमरण-अकाममरण कहलाता है।
(21) ब्रह्मचर्यस्य रक्षायै, कुर्यात् प्राणविसर्जनम्।
प्रशस्तं मरणं प्राहुः, रागद्वेषाऽप्रवर्तनात्।।
ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए प्राणों का विसर्जन करना प्रशस्त मरणµसकाममरण कहलाता है, क्योंकि वहाँ राग-द्वेष की प्रवृत्ति नहीं होती।
आत्महत्या प्रशस्त नहीं है। उसके पीछे जो हेतु है उसमें जिजीविषा का भाव प्रधान है। जिन कारणों से आत्महत्या की जाती है, उनकी पूर्ति हो जाने पर वह रुक सकती है। आत्महत्या की ओर व्यकित तभी अग्रसर होता है जब उसके स्वाभिमान पर चोट आती है, कोई भयंकर विपत्ति आ जाती है, गहरा आघात लगता है, जो चाहता है वह प्राप्त नहीं होता हैµआदि। इन सबके मूल में राग-द्वेष प्रमुख हैं। किंतु जहाँ इनमें से कोई करण उपस्थित न हो, व्यक्ति अपने नश्वर शरीर को अनुपयोगी मान राग-द्वेष से विमुक्त अवस्था में शरीर को छोड़ने का उपक्रम करता है, वह आत्महत्या नहीं है। आत्महत्या आवेश में होती है। आवेश या आवेग समाप्त हो जाने के बाद आप उसे मरने के लिए कहेंगे तो वह तैयार नहीं होगा। किंतु स्वेच्छापूर्वक शरीर के विसर्जन में कोई आवेश या आवेग नहीं है। मृत्यु चाहे आज आए या कल, उसे आप सर्वदा शांत और प्रसन्न पाएँगे। मृत्यु उसके लिए भयावह नहीं है और न पीड़ा का कारण है।
(22) यस्य कि×िचद् व्रतं नास्ति, स जनो बाल उच्यते।
व्रताव्रतं भवेद् यस्य, स प्रोक्तो बालपण्डितः।।
जिसमें कुछ भी व्रत नहीं होता, वह मनुष्य ‘बाल’ कहलाता है। जिसके व्रत-अव्रतµदोनों होते हैंµपूर्ण व्रत भी नहीं होता और पूर्ण अव्रत भी नहीं होता, वह ‘बाल-पंडित’ कहलाता है।
(23) पंडितः स भवेत् प्राज्ञो, यस्य सर्वव्रतं भवेत्।
सुप्तः सुप्तश्च जाग्रच्य, जाग्रदुक्तिविधानतः।।
जिसके पूर्ण व्रत होता है वह प्राज्ञ पुरुष ‘पंडित’ कहलाता है। पूर्वोक्त रीति के अनुसार पुरुषों के तीन प्रकार होते हैंµ(1) सुप्त, (2) सुप्त-जागृत, (3) जागृत। अव्रती को सुप्त, व्रताव्रती को सुप्त-जागृत और सर्वव्रती को जागृत कहा जाता है।
(क्रमशः)