समता की साधना के बगैर अहिंसा धर्म साधना असंभव: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

समता की साधना के बगैर अहिंसा धर्म साधना असंभव: आचार्यश्री महाश्रमण

दानपुरा, 16 जनवरी, 2023
तेरापंथ सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ आज लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर राजकीय माध्यमिक विद्यालय दानपुरा पधारे। परमपूज्य ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि ज्ञानी आदमी के ज्ञान का सार यह है कि वह किसी की हिंसा नहीं करता। अहिंसा समता है, धर्म है। समता धर्म के बिना अहिंसा धर्म सधना मुश्किल या असंभव है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। संसार में अनंत प्राणी हैं, आदमी प्राणियों की हिंसा से जितना संभव हो सके बचने का प्रयास करे। प्राणियों को अपने समान समझो। मैं जीना चाहता हूँ, सुख चाहता हूँ, दुःख नहीं चाहता हूँ तो दूसरे प्राणी भी यही चाहते हैं। मैं आत्मा के कल्याण के लिए दूसरों को दुःख नहीं दूँ।
धर्म का सर्वस्व है कि जो अपने लिए प्रतिकूल है, वो दूसरों के लिए मत करो। जो व्यवहार मैं दूसरों से नहीं चाहता तो तुम भी दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो। दुनिया में हिंसा भी चलती है, युद्ध भी होता है, परंतु शांति के लिए अहिंसा अपेक्षित है। हिंसा के अनेक कारण हैं-लोभ, गुस्सा आदि। आदमी हिंसा में न जाए। मांसाहार न करें। आदमी छलनापूर्वक कोई कार्य न करे। यह एक प्रसंग से समझाया कि कथनी-करणी में अंतर न हो। आस्वाद के लिए हिंसा में न जाएँ।
धन के लिए भी आदमी हिंसा कर सकता है। लक्ष्य रहे कि अनावश्यक हिंसा न हो। किसी भी प्राणी की शांति में बाधा नहीं डालनी चाहिए। हमारे मन में सब प्राणियों के प्रति अहिंसा का भाव रहे। हिंसा करने से पाप कर्म का बंध होता है। मन, वचन व शरीर से भी अहिंसा का भाव हो। गृहस्थ भी जितना हो सके हिंसा से बचने का प्रयास करें। बिना किसी जीव को सताए हमारी सुरक्षा हो सकती है। अहिंसा धर्म है, इसको हम जीवन में पालने का, आत्मसात करने का प्रयास करें।