अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

धर्म बोध
तप धर्म

प्रश्न 16 ः प्रायश्चित किसे कहते हैं, उसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर ः दोष विशुद्धि के लिए जो प्रयत्न किया जाता है, उसे प्रायश्चित कहते हैं। उसके दस प्रकार हैंµ
(1) आलोचना µ गुरु के समक्ष अपने दोषों को निवेदित करना।
(2) प्रतिक्रमण µ कृत पाप से निवृत्त होने के लिए ‘मिच्छामि दुक्कड़ं’ कहना।
(3) तदुभय µ आलोचना व प्रतिक्रमण दोनों करना।
(4) विवेक µ समागत अप्रासुक आहार आदि का उत्सर्ग करना।
(5) व्युत्सर्ग µ चतुर्विंशतिस्तव के साथ कायोत्सर्ग करना।
(6) तप µ अनशन, ऊनोदरी आदि करना।
(7) छेद µ संयम (चारित्र) को कम करना।
(8) मूल µ नई दीक्षा लेना।
(9) अनवस्थापना µ तपपूर्वक नई दीक्षा लेना।
(10) पारांचिक µ अवहेलनापूर्वक नई दीक्षा लेना।

प्रश्न 17 ः विनय किसे कहते हैं, उसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर ः कर्मों का अपनयन और बड़ों का बहुमान विनय है। किसी की अवहेलना-आशातना न करना भी विनय है। उसके सात प्रकार हैंµ
(1) ज्ञान, (2) दर्शन, (3) चारित्र, (4) मन, (5) वचन, (6) काय (शरीर), (7) लोकोपचारµअनुशासन व शिष्टाचार का पालन।
प्रथम तीन का बहुमान करना अगले तीन की कुशल-प्रवृत्ति करना।

प्रश्न 18 ः वैयावृत्त्य किसे कहते हैं, उसके कितने प्रकार हैं?
उत्तर ः सहयोग की भावना से निरवद्य सेवा कार्य में जुड़ना वैयावृत्त्य है। उसके दस प्रकार हैंµ
(1) आचार्य का र्वयावृत्त्य, (2) उपाध्याय का वैयावृत्त्य, (3) स्थविर का वैयावृत्त्य, (4) तपस्वी का वैयावृत्त्य, (5) ग्लान (रुग्ण) का वैयावृत्त्य, (6) शैक्ष (नवदीक्षित) का वैयावृत्त्य, (7) कुल (मुनि समूह) का वैयावृत्त्य, (8) गण (कुल समूह) का वैयावृत्त्य, (9) संघ (गण समूह) का वैयावृत्त्य, (10) साधर्मिक का वैयावृत्त्य।
(क्रमशः)