संघ एक साधन और मूल साध्य है आत्मकल्याण: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संघ एक साधन और मूल साध्य है आत्मकल्याण: आचार्यश्री महाश्रमण

बायतू में हुआ 159वें मर्यादा महोत्सव का भव्य आयोजन

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चतुर्विध धर्मसंघ को पढ़ाया मर्यादा और सुसंस्कार का पाठ

बायतू, 28 जनवरी, 2023
माघ शुक्ला सप्तमी-159वें मर्यादा महोत्सव का मुख्य दिवस। हमारे आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु ने अपना अंतिम मर्यादा का लिखत वि0सं0 1859 माघ शुक्ला सप्तमी को ही लिखा था। उसी मर्यादा के लिखत के आधार पर प्रज्ञापुरुष जयाचार्य ने आज के दिन वि0सं0 1921 को बालोतरा में मर्यादा महोत्सव के रूप में स्थापित कर धर्मसंघ में एक महोत्सव को प्रतिष्ठापित किया था, जो लगभग प्रतिवर्ष हमारे पूर्वाचार्यों व वर्तमान आचार्यश्री द्वारा निरंतर आयोजित किया जा रहा है। पूर्व में आज का दिन माघ महोत्सव के रूप में जाना जाता था। आज ही के दिन बहिर्विहारी चारित्रात्माओं के आगामी चातुर्मास की घोषणा पूज्यप्रवर द्वारा की जाती है।
मर्यादा के महाशिखर आचार्यश्री महाश्रमण जी के द्वारा अर्हत् वाणी के मंगल स्मरण से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मुनि दिनेश कुमार जी ने संघीय घोषों का समुच्चारण किया। ‘भीखणजी स्वामी भारी मर्यादा बांधी संघ में’ गीत का सुमधुर संगान किया गया। करुणा के महासागर आचार्यप्रवर ने अपने श्रीमुख से अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि आज हम धर्मशासन के संदर्भ में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 159वें मर्यादा महोत्सव का मुख्य समारोह आयोजित कर रहे हैं। हमारा धर्म शासन जैन शासन का ही एक अंग है। 262 वर्ष पूर्व हमारे धर्मसंघ का शुभारंभ हुआ था। हमारे धर्मसंघ के प्रथम आचार्य परम पूजनीय आचार्य भिक्षु हुए। वे हमारे परमपिता जनक हैं। उन्होंने मानो धर्म क्रांति की थी। जहाँ क्रांति होती है वहाँ विरोध भी हो सकता है। पर आचार्य भिक्षु में प्रबल मनोबल था और वे आगे बढ़ते रहे। मैं उनके चारित्र बल को नमन करता हूँ।
आचार्य भिक्षु द्वारा आज के दिन ही मर्यादा पत्र निर्मित किया गया जो हमारे लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पूज्यप्रवर ने इस मर्यादा पत्र के दर्शन करवाए। यह पत्र हमारे लिए गण-छत्र है। आचार्य भिक्षु की उत्तराधिकार परंपरा चली। उनमें डालगणी विलक्षण आचार्य हुए। आचार्य तुलसी ने तो महाप्रज्ञ जी को अपना उत्तराधिकार सौंपते हुए स्वयं के करकमलों से आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था। हमारे धर्मसंघ में वैचारिक एकता है। हमारे धर्मसंघ का सिद्धांत एक है। आचारिक एकता एक है। हमारे धर्मसंघ में आचार्य भी एक ही होता है। संविधान-मर्यादाओं की एकता है। यह एकता का चतुष्ट्य है जो अपने आपमें विलक्षण है। ये एकता का प्रारूप दो सौ से अधिक वर्षों से प्रवर्धमान है, उसे आगे बढ़ाने में हमारा सतत् योगदान रहे। हमारे धर्मसंघ में सर्वोपरी स्थान आचार्य का है। आचार्य को हमारे यहाँ एक श्रद्धा के केंद्र के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। आचार्य और शासन में शासन बड़ा है। आचार्यश्री शासन के सदस्य होते हैं। इसलिए संघ सर्वोपरी है। आचार्य को अधिकार प्राप्त है। साधु-साध्वियों को आचार्य की आज्ञा लाँघने का त्याग है। हमारे संघ में व्यवस्था-तंत्र भी सुंदर है। इस शासन में अहंकार और ममकार का भी सबको त्याग है।
हमारे धर्मसंघ में लगभग 700 चारित्रात्माएँ हैं। समण श्रेणी व श्रावक-श्राविकाएँ हैं, सबका एक लक्ष्य आत्मकल्याण का है। संघ एक साधन है, साध्य आत्मकल्याण है। आत्मकल्याण-यथार्थ बड़ा है, संघ सहायक बनता है। हमने धर्मसंघ को धर्म सहायक के रूप में स्वीकार कर रखा है। हम संघ और संघपति के प्रति समर्पित रहें। संघ की सेवा करते रहें। आचार्य की आज्ञा के प्रति भी सम्मान और समर्पण का भाव रहे। हम महाव्रतों-रूपी हीरों की सुरक्षा करते रहें, ये अनमोल हीरे हैं। सबसे लुटेरा मोहनीय कर्म है, इस लुटेरे से सावधान रहें। मर्यादा निष्ठा रहे। धर्मसंघ का मूल अध्यात्म है। हम अध्यात्म के प्राण तत्त्व को सत्राण बनाते रहें तो धर्मसंघ साधना में सहयोगी है। हम पवित्र भावों से धर्मसंघ में साधना करते रहें।
ज्ञानशाला समाज का संस्कार देने वाला उपक्रम है। उपासक श्रेणी भी हमारी अच्छी गतिविधि है। अच्छी श्रेणी समाज की बन गई है, इसका भी विकास होता रहे। मुमुक्षु गतिविधि भी बहुत बढ़िया है। इनकी भी संख्या वृद्धि हो एवं अच्छा प्रशिक्षण चलता रहे। श्रावकों का श्रावक्त्व भी पुष्ट रहे। शनिवार की सामायिक, सुमंगल साधना से श्रावक्त्व को निखारा जा सकता है। हमारे धर्मसंघ में अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान जैसी लोक-कल्याणकारी गतिविधियाँ भी चल रही हैं। साहित्य भी कितना सृजित हो रहा है। कल्याण परिषद् भी समाज की दृष्टि से सर्वोपरी निर्णायक मंच है। विकास परिषद् भी है। साधु-साध्वी संघ में बहुश्रुत परिषद् भी है। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का भी स्मरण किया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी वर्तमान में सेवाएँ दे रही हैं। साध्वीवर्या व मुख्य मुनि भी व्यवस्था तंत्र से जुड़े हुए हैं। अच्छा विकास होता रहे। सेवा देते रहें।
समणियाँ भी विभिन्न रूप में सेवा दे रही हैं। गृहत्यागी संन्यासी है। हमारे साधु-साध्वियों में अच्छी साधना चलती रहे। प्रमाद से वंचित रहें। हमें अपने संयम का ध्यान रखना चाहिए। सबके साता रहें। आचार्यप्रवर ने मर्यादाओं के संबंध में फरमाया कि चारित्रात्माओं को संयम करने, प्रमाद से बचने और साधन के उपयोग में जागरूकता और प्रयोग की एक वार्षिक रिपोर्ट बनाकर गुरुकुल में भेजने की प्रेरणा भी प्रदान की। आचार्यश्री ने बैनर-पोस्टर में आचार्य के साथ अन्य चारित्रात्माओं के फोटो न लगाने, जुलूस में किसी भी प्रकार के बैंड-बाजे का प्रयोग न करने की प्रेरणा भी श्रावक समाज को प्रदान की।
मुंबई में चातुर्मासिक प्रवेश के बाद आषाढ़ शुक्ला-11, 29 जून को दीक्षा समारोह करने का भाव है। समणी दीक्षा भी देने का भी भाव है। चार मुमुक्षु बहनों को समणी दीक्षा देने की घोषणा करवाई। समणी विनीतप्रज्ञा जी, समणी जगतप्रज्ञा जी का श्रेणी आरोहण करने का फरमाया। मुमुक्षु विपुल को भी मुनि दीक्षा देने का भाव है। मुंबई चातुर्मासिक प्रवेश 28 जून को प्रातः 9 बजकर 9 मिनट पर हो सकेगा। 28 नवंबर को चातुर्मास संपन्न कर वहाँ से विहार करना है। पूज्यप्रवर ने मर्यादा पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने मर्यादा महोत्सव पर स्वरचित गीत का सुमधुर संगान करवाया। साधु-साध्वियों ने लेख पत्र का वाचन किया। इस मर्यादा महोत्सव में 46 संत, 85 साध्वियों एवं 41 समणियों की उपस्थिति है। श्रावकों को श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन करवाया।
पूज्यप्रवर ने आगामी वर्ष के चारित्रात्माओं के चातुर्मासों की घोषणा करवाई। समणियों के भी केंद्र फरमाए। पूज्यप्रवर ने पट्ट से उतरकर संघगान के साथ त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव के कार्यक्रम की संपन्नता की घोषणा की।
मर्यादाएँ हमारे लिए रक्षा कवच - साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक यशस्वी धर्मसंघ है। इसके आद्यप्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु का व्यक्तित्व और कर्तृत्व विलक्षण था। कुछ विरले महापुरुष ऐसे होते हैं, जो नए पथ का निर्माण करते हैं। आचार्य भिक्षु द्वारा लिखत मर्यादा का पत्र हमारे लिए छत्र बन गया। मर्यादाएँ हमारी धरोहर बन गई हैं। तेरापंथ धर्मसंघ समुद्र के समान मर्यादा में रहता है। साधुत्व तेरह नियम के रूप में तेरह करोड़ की संपत्ति है। जीवन को व्यवस्थित करने के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया गया। मर्यादाएँ दो प्रकार की होती हैंµशास्त्रीय मर्यादाएँ एवं संघीय मर्यादाएँ। मर्यादाएँ हमारे लिए रक्षा कवच बन जाती हैं।
तेरापंथ की आचार्य परंपरा मर्यादा के प्रति जागरूक रही है। हमारा धर्मसंघ प्रबुद्ध साधु-साध्वियों का संघ है। आचार्य साधु-साध्वियों की सारणा-वारणा करते हैं। करणीय कार्यों की प्रेरणा देते रहते
हैं। प्रेरणा के साथ प्रोत्साहन भी प्रदान करवाते हैं। तो अकरणीय कार्यों का निषेध भी करते हैं। वर्तमान आचार्य पूर्वाचार्यों को बहुमान देते हैं, तभी आज हमारा संघ चिरंजीवी है। कार्यक्रम के प्रारंभ में साधुवृंद, साध्वीवृंद एवं समणीवृंद द्वारा सामूहिक गीत की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।