निष्काम भाव से पवित्र सेवा करने वाला स्वयं को लाभान्वित कर लेता है: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

निष्काम भाव से पवित्र सेवा करने वाला स्वयं को लाभान्वित कर लेता है: आचार्यश्री महाश्रमण

बायतू की धरा पर 159वें मर्यादा महोत्सव का भव्य शुभारंभ

बायतू, 26 जनवरी, 2023
तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु द्वारा माघ शुक्ला सप्तमी वि0सं0 1859 के लिखित मर्यादा पत्र के आधार पर मर्यादा महोत्सव का आयोजन किया जाता है। यह आचार्य भिक्षु द्वारा लिखित तो था परंतु इसको मर्यादा महोत्सव का स्वरूप चतुर्थ आचार्य श्रीमद्जयाचार्य ने बालोतरा में प्रदान किया। इस बार मर्यादा महोत्सव के शुभारंभ पर गणतंत्र दिवस का संयोग भी है जो भारत के संविधान से संबंधित है। मर्यादा पालन में सतत जागरूक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चतुर्विध धर्मसंघ को पावन दिशा-निर्देश, पावन पाथेय प्रदान करते हुए मंगल स्मरण के साथ त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव के शुभारंभ की घोषणा की एवं मर्यादा पत्र की स्थापना की। संघीय घोष व शासन गीत ‘भीखणजी स्वामी भारी मर्यादा बांधी संघ में’ का संगान हुआ।
परमसेवी परम आचार्यप्रवर पावन ने फरमाया कि आज जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के मर्यादा महोत्सव शंृखला में 159वाँ मर्यादा महोत्सव शुरू हुआ है। इसमें सेवा के बारे में प्रस्तुतियाँ और नियुक्तियाँ की जाती हैं। सेवा जीवन और आत्मा की पूँजी होती है। जो निष्काम भाव से पवित्र सेवा करता है, वह स्वयं को लाभान्वित कर लेता है। वैयावच्य द्वारा तीर्थंकर नाम गौत्र का बंध कर सकता है। हमारे धर्म की सुंदरता का एक अंग सेवा है। हमारे साधु-साध्वियाँ अनेक रूपों में सेवा करते हैं एवं सेवा के लिए समर्पित रहते हैं। विभिन्न संदर्भों में सेवा देखी जा सकती है। उनमें परिचर्यात्मक सेवाप्रमुख है। व्यवस्थागत सेवा का अपना महत्त्व है। प्रकृति, विकृति और संस्कृति ये तीन शब्द हैं। सेवा अच्छी तरह कर दी वह प्रवृति है। जिम्मेवारी से सेवा न करना विकृति है और बिना सेवा के आदेश के सेवा करना संस्कृति है। हमारे धर्मसंघ में प्रकृति और संस्कृति विशेष रहे, विकृति न आ पाए। समणियाँ भी सेवा करती हैं। सेवा की भावना हमारे भीतर तक चली जाए। साधु-साध्वियों ने सेवा के लिए अर्ज की है।
अनेक साधु-साध्वियों ने तीन साल की सेवा कर अपना कर्जा उतार दिया है। कईयों ने तो उससे ज्यादा सेवा भी की है। हमें सेवा के प्रति यथौचित्य जागरूक रहना चाहिए। अगले कार्यकाल के लिए सेवा केंद्रों की सेवा की घोषणा करते हुए फरमाया कि लाडनूं साध्वी सेवाकेंद्र का दायित्व साध्वी लक्ष्यप्रभा जी बीदासर समाधि केंद्र का दायित्व साध्वी रचनाश्री जी, श्रीडूंगरगढ़ सेवा केंद्र का दायित्व साध्वी संपूर्णयशा जी, गंगाशहर साध्वी सेवा केंद्र में सेवा देने के लिए साध्वी शशिरेखा जी और साध्वी ललितकला जी का ग्रुप संयुक्त रूप से दायित्व संभाले। साधु सेवा केंद्र, छापर के लिए मुनि विजयकुमार जी जैन विश्व भारती सेवा केंद्र के लिए मुनि रणजीत कुमार जी के सिंघाड़े को सेवा देने के लिए नियुक्त करता हूँ। उपसेवा केंद्र हिसार में सेवा देने के लिए साध्वी शुभप्रभा जी के सिंघाड़े को नियुक्त करता हूँ। जैन विश्व भारती तो एक तरह से महा-आश्रम है। सभी वृद्ध साधु-साध्वियों को चित्त समाधि मिले।
उपासक श्रेणी भी सेवा करती है। कई-कई उपासक तो अपना बहुत समय ज्ञानात्मक-साधनात्मक कार्यों के लिए नियोजित करते हैं। संयम का भी विकास होता रहे। ज्ञान-प्रेरणा में समय नियोजित करें। कहीं संथारे के समय संथारा करने वाले को सहयोग कर सकते हैं। पर्युषण ही नहीं बारह महीने ही सेवा देने का ध्यान रखें। धार्मिक सेवा का अच्छा लाभ ले सकते हैं। सेवा लेने वाले सोचें जितना हो सके कम सेवा लें। सेवाग्राही और सेवादायी का जोड़ा है। श्रावक समाज में भी अनेक रूपों में सेवा दी जा सकती है। चित्त समाधि का मौका मिलता रहे। व्यवस्थापक सेवा में भी समय लगाना होता है। धैर्य के साथ काम करना भी एक सेवा है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी भी बहुत सेवा दे रहे हैं। इनका योगदान मुझे मिल रहा है।
आचार्यप्रवर ने आगे फरमाया कि हमारे शरीर में कितने अंग कार्य करते हैं, तब जीवन की गाड़ी चलती है, इसी तरह हमारे धर्मसंघ में भी बहुतों का योगदान है। मैंने नियुक्तियाँ कर दीं। सेवा वे करेंगे। मिलाजुला काम होता है। कम-ज्यादा हो सकता है, बहुतों के योगदान से कार्य संपन्न होता है। साधु-साध्वियाँ हमारे हाथ हैं, तो श्रावक-श्राविकाएँ हमारे पैर हैं। हम खूब सेवा में आगे बढ़ते रहें, सेवा भावना पुष्ट रहे। स्वास्थ्य का सब ध्यान रखें। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित जयतिथि पत्रक एवं मित्र परिषद कोलकाता द्वारा तिथि दर्पण भी पूज्यप्रवर को समर्पित किया गया। परमार्थ की चेतना को जगाने का माध्यम है सेवा - साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ में एक यूनिक पर्व है-मर्यादा महोत्सव। यह संपूर्ण जैन समाज का आकर्षण बना हुआ है। पूज्यप्रवर विशिष्ट घोषणाएँ करवाते हैं। यह घोषणा सुषोघ घंटा है। साधु-साध्वियाँ जागृत हो जाते हैं। सेवा परमार्थ की चेतना को जगाने का एक सशक्त माध्यम है। जिस संघ में सेवा होती है, उस संघ में एकता स्थापित हो जाती है। तेरापंथ धर्मसंघ में दीक्षित साधु-साध्वी सेवा के विषय में निश्चिंत रहते हैं। आचार्य सेवा के लिए प्रेरित करते हैं। सेवा को महत्त्व देते हैं। सेवा हमें निर्जरा के परम लक्ष्य से करनी है। मुनि कुमार श्रमण जी एवं साध्वी मुदितयशा जी ने सेवा के महत्त्व को समझाते हुए साधु-साध्वियों की ओर से पूज्यप्रवर के भी चरणों में सेवा की अर्ज की। उपासक श्रेणी द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति दी गई।
पूज्यप्रवर के स्वागत में बायतू मर्यादा महोत्सव समिति द्वारा मर्यादा पत्र का प्रारूप पूज्यप्रवर के करकमलों में अर्पित किया गया। तेरापंथ सभाध्यक्ष राकेश जैन, प्रमोद भंसाली, तेयुप अध्यक्ष महेंद्र चोपड़ा, महेश्वरी समाज से भंवरलाल टाबरी, अंशुल छाजेड़, अर्चना बुरड़, नरेश नाहटा, नैनमल कोठारी, रौनक बुरड़, कानराज बालड़ परिवार ने गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ समाज एवं कन्या मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी द्वारा किया गया।