ज्ञाान प्राप्ति का उत्कृष्ट माध्यम है स्वाध्याय: आचार्यश्री महाश्रमण
सिणधरी (बाड़मेर), 2 फरवरी, 2023
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः कड़कती ठंड में डंडाली से 9 किलोमीटर का विहार कर सिणधरी के नवकार स्कूल में पधारे। महायोगी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान प्राप्ति का एक सामान्य उपाय है-स्वाध्याय। श्रुत, मनन-प्रश्न आदि करने से ज्ञान का विकास हो सकता है। स्वाध्याय करने में कुछ बाधाएँ भी होती हैं। जैसे एक बाधा है-नींद की बहुलता। नींद को बहुमान देना। अपेक्षानुसार नींद ली जा सकती है। दूसरी बाधा है-मनोरंजन में ज्यादा रस लेना। अनावश्यक बातें करना एवं विषयों में रस लेना। इनसे ज्ञान प्राप्ति के इच्छुक को बचना चाहिए।
स्वाध्याय के पाँच प्रकार बताए गए हैं-वंचना, अध्यापन करना और कराना। अध्यापन से ज्ञान की परंपरा अविच्छिन्न रह सकती है। आगे से आगे बढ़ाने से ज्ञान की परंपरा अनवरत रह सकती है। पढ़ाया न जाए या पढ़ने वाला न मिले तो ज्ञान का लोप हो सकता है। पढ़ने वाला योग्य हो तो ज्ञान उसके पास जाए। पढ़ने वाले में पात्रता हो तो ज्ञान उसे दिया जा सकता है और वो ग्रहण भी कर सकता है। अपात्र हो तो गड़बड़ी हो सकती है। जब स्थूलीभद्र स्वामी में थोड़ा अहंकार आ गया तो भद्रबाहु स्वामी ने दस पूर्वों का ज्ञान तो अर्थसहित दे दिया परंतु चार पूर्वों का ज्ञान अर्थ सहित नहीं दिया। मानो ताला दे दिया पर चाबी नहीं दी। विद्यार्थी में ज्ञान लेने की पात्रता होनी चाहिए। भद्रबाहु के बाद चौदह पूर्वधारी नहीं हुए।
विद्यालय-महाविद्यालय में ज्ञान की परंपरा अविच्छन्न चल रही है। आज नवकार विद्यालय में आए हैं। यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थी नवकार मंत्र को स्मरण करते रहें। ज्ञानदाता और ज्ञान के प्रति विनय-सम्मान का भाव हो। साथ में बुद्धि अच्छी हो तो विद्यार्थी आगे बढ़ सकता है। मुनि जीतमल जी मुनि हेमराज जी से ज्ञान ग्रहण कर श्रुतधर बन गए थे। ‘भगवती’ जैसे राजस्थानी ग्रंथों की रचना कर दी।
विद्यालय में विद्यार्थियों में ज्ञान विकास के साथ अच्छे संस्कारों का भी विकास हो। ज्ञान प्राप्ति के लिए परिश्रम करना पड़ता है। कंठस्थ ज्ञान हो। ज्ञान को कंठस्थ बनाने के लिए चितारते रहो। नहीं पलटने से पान सड़ जाता है, घोड़ा अड़ जाता है। विद्या विस्मृत हो जाती है एवं रोटी अंगारों पर जल जाती है। स्वाध्याय का फेरा चलते रहना चाहिए। स्वाध्याय ज्ञान प्राप्ति का अच्छा माध्यम है। अनुप्रेक्षा भी करो और पृच्छना भी करो। साथ में धर्म कथा भी करो। हम स्वाध्यायशील बनने का और बने रहने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर के स्वागत में तपागच्छ संघ से भैरूलाल हरणेशा, खरतरगच्छ संघ से सोहनलाल मंडोवरा एवं ललित देसाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।