मनुष्य जन्म दुर्लभ, करें सदुपयोग: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मनुष्य जन्म दुर्लभ, करें सदुपयोग: आचार्यश्री महाश्रमण

अरणियाली, 3 फरवरी, 2023
साधना के श्लाका पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः सिणधरी से 15 किलोमीटर का विहार कर अरणियाली के राजकीय बालिका उच्च विद्यालय में पधारे। परम पावन ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि यह मानुषत्व या मनुष्य-जन्म दुर्लभ है, प्राणियों को लंबे काल तक भी नहीं मिलता है। कर्म का विपाक गाढ़ होता है, इसलिए यह मनुष्य जन्म नहीं मिलता है। इसलिए समय-मात्र भी प्रमाद मत करो। वर्तमान में यह दुर्लभ मानव जन्म प्राप्त है। इस दुर्लभ उपलब्धता का हमें बढ़िया उपयोग करना चाहिए। एक जन्म के बाद दोबारा कैसे मिलेगा, यह विचारणीय है। मिल भी सकता है, नहीं भी मिले। प्राप्त अवसर को खो देना एक भूल हो सकती है। इस मानव जन्म का अच्छा उपयोग करने के लिए गृहस्थ जीवन में रहते हुए आत्मस्थ रहे। सभी साधु तो नहीं बन सकते हैं, पर मध्यस्थ और तटस्थ रह सकते हैं।
गृहस्थ जीवन में धर्म की चेतना बनाए रखें तो वह भी कल्याण का उपाय बन सकता है। मनुष्य जन्म एक प्रकार का वृक्ष है। इसमें फल लगें तो उसकी उपयोगिता अच्छी हो सकती है। अच्छे, स्वादिष्ट और शरीर को पोषण देने वाले फल हों। किम्पाक-फल की तरह नुकसान करने वाले फल न हों। आचार्य सोमप्रभ जी सूरी ने बताया कि मनुष्य रूपी वृक्ष के फल रूप में जिनेंद्र पूजा हो। वीतराग प्रभु का नाम स्मरण करें। दूसरा फल हैµसद्गुरु की पर्युपासना करो। प्राणियों के प्रति दया रखो। शुभ पात्र-सुपात्र में साधु जो त्यागी है, उनको दान दो। गुणों के प्रति अनुराग हो, गुण पूजा के स्थान हैं। आगम आर्षवाणी को सुनो। ये छः फल बताए हैं, इन्हें लगाने का प्रयास करना चाहिए। मनुष्य रूपी वृक्ष में ये छः फल फलित हों।
अच्छी और सच्ची बात, चीज और शिक्षा जहाँ कहीं से मिले उसे ग्रहण करना चाहिए। ये मानव जीवन मिला है, यह ऐसे ही व्यर्थ न चला जाए। कुछ विशेष करें। स्थायी कोई नहीं है, सब राही हैं और राही को आगे जाना है। जीवन ऐसा जीएँ कि आगे भी अच्छा रह सके। वर्तमान में जो सुख-सुविधा मिल रही है, यह तो पूर्व की पुण्याई है। आगे के लिए भी कुछ तैयार करें। आत्मा मोक्ष को प्राप्त करे, इस दृष्टि से हम ध्यान दें।
संत लोग धर्म की बात बताते हैं, यात्रा प्रवचन करते हैं। त्यागी साधु की बात का सम्मान हो सकता है। गृहस्थ में रहकर भी साधु जैसा जीवन हो तो कल्याण हो सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में विद्यालय के प्रिंसिपल माधाराम ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा विद्यालय परिवार का सम्मान किया गया। कर्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जहाँ आपदा होती है, वहाँ कोई एक-दूसरे को सताता नहीं है।