अवबोध
धर्म बोध
तप धर्म
प्रश्न 22 ः क्या जैन दर्शन पंचाग्नि तप को मान्यता देता है?
उत्तर ः परिव्राजक, संन्यासी पंचाग्नि तप को तपा करते हैं। यह तप हिंसा प्रधान है। हिंसाजन्य इस तप को अहिंसानिष्ठ जैन दर्शन मान्यता प्रदान नहीं कर सकता।
प्रश्न 23 ः पंचाग्नि तप करने वाले को तीव्र कष्टानुभूति होती है, फिर उसमें निर्जरा (धर्म) क्यों नहीं होती?
उत्तर ः केवल कष्ट सहना जैन साधना का लक्ष्य नहीं है। इसका लक्ष्य है वीतरागता इसके लिए की जाने वाली क्रिया में यदि कष्ट होता है, तो उसे सहना धर्म है। हिंसात्मक प्रवृत्ति से जो कष्टानुभूति होती है, उसमें धर्म व पुण्य कदापि नहीं होता।
प्रश्न 24 ः अज्ञान तप किसे कहते हैं?
उत्तर ः मिथ्यात्वी का तप अज्ञान तप कहलाता है। इसको बाल तप भी कहा जाता है।
प्रश्न 25 ः मिथ्यात्वी व सम्यक्त्वी की तपस्या में क्या अंतर है?
उत्तर ः मिथ्यात्वी व सम्यक्त्वी के तपस्या की निष्पत्ति में अंतर रहता है। मिथ्यात्वी के निर्जरा सम्यक्त्वी से कम होती है। मिथ्यात्वी अवस्था में तामली तापस ने साठ हजार वर्ष तक बेले-बेले तप किया था। कहा जाता है कि यदि इतनी तपस्या सम्यक्त्वयुक्त करे तो सात जीव कर्ममुक्त हो सकते हैं।
(क्रमशः)