
कर्म निर्जरा हो तपस्या का एकमात्र लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण
नून गाँव, 9 फरवरी, 2023
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर अपनी धवल सेना के साथ नूंन ग्राम पधारे। परमपूज्यश्री ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि समाधि के चार प्रकार बताए गए हैंµविनय समाधि, श्रुत समाधि, तपः समाधि और आचार समाधि। ये चार चीजें ऐसी हैं, जिनसे समाधान, शांति, संतोष, तुष्टि, पुष्टि, सुख प्राप्त हो सकता है।
सुविनीत शिष्य सुखी बनता है, अविनीतता दुःख का कारण बन सकती है। संपत्ति-विपत्ति दोनों बहनें हैं। हमारे जीवन में कई बार विपत्तियाँ आ सकती हैं। आपदा-संपदा जीवन में आती रहती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि संपत्ति-विपत्ति सभी बहनें हैं। आदमी दोनों स्थिति में मानसिक समता भाव रखें।
विनय से संपत्ति प्राप्त होती है। दुःख का नाश होता है। ज्ञान से भी समाधि प्राप्त हो सकती है। स्वाध्याय, पठन, चिंतन-मनन करें। स्वाध्याय से सुख प्राप्त हो सकता है। तपस्या से भी समाधि-समाधान प्राप्त हो सकता है। तपस्या के बारह प्रकार हैं। तपस्या से निर्जरा होती है। सारा शुभ योग समाधि है। आचरण भी समाधि है। तपस्या निर्जरा के लिए ही हो। आचार का पालन भी मोक्ष प्राप्ति के लिए हो।
विद्या विनय से शोभित होती है। पांडित्य के साथ विनय हो। जैसा पात्र हो वैसा ज्ञान देना चाहिए। ज्ञान के साथ अहंकार न हो। ज्ञानदाता के साथ विनय का भाव हो। इन चारों समाधि से समाधान प्राप्त हो सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में राजकीय विद्यालय से जगदीश चौधरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा विद्यालय परिवार का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।