मंगलमय शासनमाता में निहित थी मंगल शक्तियाँ

मंगलमय शासनमाता में निहित थी मंगल शक्तियाँ

शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की पुण्यतिथि पर विशेष
मंगलमय शासनमाता में निहित थी मंगल शक्तियाँ

विश्व की सत्ता, विश्व का अधिष्ठान तथा विश्व की जटिल संरचना में पुण्य भूमि भारत ऐसा देश है, जहाँ छः ऋतुओं के अनुपम विलास की छटा है, अमृतोपम मधुरजल धारिणी कल-कल नादिनी गंगा भी प्रवाहित है, उत्तुंग धवलशिखर से नभोमंडल का स्पर्श कराने वाला हिमालय है। विश्व के अन्य देश जहाँ भोगभूमि के रूप में ख्यात है वहीं भारत भूमि त्याग, वैराग्य की आधारशिला रही है। जहाँ महापुरुषों की दिव्य अलौकिक ऊर्जा अंधेरी निशा को प्रखर करती हुई चेतना को सतत् प्रकाशित करती है। पुरुष के प्रधानत्व में नारी शक्ति ने साधन की। अंतः चंद्रिका से चंद्रित होकर संसार में शीतलता, शांति, आनंद की दिव्य दृष्टि करते हुए अपनी प्रज्ञा से परमात्म तत्त्व का प्रकाश फैलाया है उसमें तेरापंथ की अष्टम साध्वीप्रमुखा ‘शासनमाता’ का नाम निग्रह की तपस्या, पौरुष का प्रतीक है, जिन्होंने अपने आचरण से जीवन के शाश्वत मूल्य को परिभाषित किया, स्वयं अपने में रहते हुए गुरु के संदेश को हृदयंगम किया गुरु इंगित में निहित अर्थ एवं आज्ञा की शक्ति से सब पर मधुर अनुशासन किया। मधुर स्नेह की आलोक यात्रा से सबको आलोक का वरण करवाया। समुद्र तल से लेकर आकाश तक फैला स्नेह का बंधन ही सबको गतिशील रखता है, स्नेह के इस बंधन में विराग का चिराग प्रतिबिंबित होता था। गति केवल पाँवों की नहीं होती आँखों की भी होती है। आँख मनुष्य के लिए उपहार है परंतु बिना दर्पण की सहायता से एक आँख दूसरी आँख को नहीं देख सकती। असाधारण साध्वीप्रमुखाश्री जी की मंगल शक्तियाँ दर्पण बनकर बाह्य जगत के साथ अंत जगत का भी अवबोध कराती। असाधारणता के शिखर तक पहुँचाने वाली मंगल शक्तियाँ थीं।
शब्द शक्तिµशब्दों की नाट्यशाला में भाव दृश्य का जीवंत अभिनय था, रंग विन्यास के साथ साज-सज्जा भी थी, शब्दों की काया का निरूपण सिर्फ स्थूल परिक्रमा है। सूक्ष्म से साक्षात्कार कराने वाले महाश्रमणी जी हर खंड में अखंड पूर्णता का एहसास कराने वाले थे, जैसे टूटा हुआ दर्पण खंड-खंड हो जाने पर भी अपने प्रतिबिंबित होने के गुण को खंडित नहीं होने देता वैसे ही शासनमाता का हर शब्द टूटे हुए मन को जोड़ देता है। गहराई युक्त विचारों में शांति, सद्भावना, प्रेम का संदेश मिलता है तथा श्रेय के सृजन का संकल्प गतिशील बन जाता है।
कल्पनाशक्तिµकवि जिस वस्तु को देखता है उसी का यथावत् वर्णन नहीं कर देता यदि वह कर दे तो काव्य और फोटोग्राफी में अंतर ही नहीं रहता। कवि वस्तु को देखकर अपनी कल्पना के अनुसार वर्णन करता है। काव्य अनुबंध की अनोखी दृष्टि शासनमाता के कवित्व का सहज परिचय करवाती थी। कल्पनाशील कल्पनाएँ यथार्थ का संदेश देती, जिस असाधारण कवियत्री ने शिल्प एवं संवेदना से लोकमानस को तृप्ति का अनुपान करवाया। विचारों की गहराई, साहित्य की सुषमा, दर्शन का सत्व काव्य को जीवंत बनाए हुए हैं। हजारों पन्नों की छाती पर अपनी कलम से नृत्य करवाया। काव्य साहित्य भले ही गीत हो या गज़ल, कविता हो या कहानी, गद्य हो या पद्य रसात्मकता एवं रचनात्मकता के साथ सौंदर्य बोध कराता है। विराट को वामन में समेटने की अद्भुत कला थी।
आकर्षण शक्तिµमन की निर्दोषता और पवित्रता नैसर्गिक रूप से स्पष्ट झलकती थी। भेद मुक्त मन मूर्छा से मुक्त होने के कारण सहज सौंदर्य का अवबोध कराता। आकर्षण शक्ति का मुख्य कारण गुण सौंदर्य एवं विद्या सौंदर्य था। हर घट की भित्ति पर चमकते हुए जन-जन की जिह्वा एवं हृदय में समाए हुए थे। अवगुण के चक्रव्यूह में नितांत अकेले रहते। सूने नीड़ एवं रिक्त दीप में स्नेह क्षण प्रदान करके सदाचार और दुराचार सत्य और असत्य के बीच अस्मिता एवं अस्तित्व को कायम रखते हुए संस्कार के सुविशाल क्षितिज की प्रतीति कराते। शांति एवं शीतलता से मंडित आभामंडल इतना सशक्त था कि चुंबकीय आकर्षण शक्ति से सबको अपनी ओर खींच लेता। फूलों भरे हर मन की संवेदना को सहलाकर काँटों की चुभन झेलकर पीड़ित नहीं होते थे क्योंकि सहनशक्ति नैसर्गिक रूप से वरदान में प्राप्त उपहार थी।
सहनशक्तिµसहनशक्ति आत्मबल का मापदंड बनती है, आत्मा का भूषण है, आत्मदीप बनकर प्रतिपल प्रकाश में जीते रहने का दृढ़ संकल्प है जो अंतःकरण के अंधेरे को दूर करती है तथा समभाव और तटस्थवृत्ति को उजागर करती है। मध्यस्थता की मंगल मूर्त किसी के कठोर व्यवहार से, प्रतिकूल आचरण से, दुर्वचनों के प्रहार से रंग मात्र भी विचलित नहीं होते थे। सहनशीलता को जीवन के हर प्रभाव के साथ जोड़ लिया, हर परिवेश में उसका स्वागत किया। कठोर संघर्षमय जीवन जीकर उपलब्धियों को प्राप्त किया। सहनशक्ति के विरल पलों में स्खलनाएँ शेष ही नहीं रही। चेतना का कुल कगार देख लेने की उदाम लालसा से हर पल आज्ञा इंगित की अनुपालन में लालायित रहते। आस्था अदृश्य संबल प्रदान करती रही। निरंकुश इच्छाएँ चित्त की चंचलता स्वतः निष्फल हो गई। ऐसी महाशक्तियों की दायिनी शासनमाता ने शक्तियों के प्रवाह से झीनी-झीनी नीरवता का पान मानवता को खूब कराया, उस विचार सिंधु से निकले अमृततत्त्व से हम भी अंतः स्थल की गहराई में उतरने का प्रयास करें तभी आदर्शमय जीवन की पोथी के कुछ अक्षरों को पढ़कर जीवन को गढ़ सकते हैं।