प्रेक्षाध्यान कार्यशाला संपन्न
उत्तर कोलकाता।
मुनि जिनेश कुमार जी के सान्निध्य में प्रेक्षावाहिनी के सदस्यों द्वारा प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन ओसवाल भवन मध्य उत्तर कोलकाता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार जी ने कहा कि शरीर का विकास खानपान से होता है। मन का उल्लासमान-सम्मान से होता है, बुद्धि का प्रकाश ज्ञान-विज्ञान से होता है, आत्मा का आभास ध्यान समाधान से होता है।
ध्यान ज्योति व प्रकाश की साधना है। स्वभाव परिवर्तन तनावमुक्ति मानसिक स्वास्थ्य की साधना है। मुनिश्री ने आगे कहा कि जिस प्रकार शरीर में मस्तिष्क का वृक्ष के मूल में जड़ का मूल्य है उसी प्रकार धर्म साधना में ध्यान का मूल्य है। ध्यान कर्म निर्जरा व आत्मशोधन की प्रक्रिया है। ध्यान के द्वारा अनेक शक्तियों को उद्घाटित किया जा सकता है। ध्यान को आभ्यंतर तप कहा है। ध्यान का अर्थ है किसी एक वस्तु पर मन को केंद्रित करना, आत्मा से रमण करना। जागरूकता का नाम ध्यान है। ध्यान में एक ध्यान हैµप्रेक्षाध्यान। प्रेक्षाध्यान आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के उर्वरा मस्तिष्क की देन है। मुनि कुणाल कुमार जी ने सुमधुर गीत प्रस्तुत किया। प्रेक्षावाहिनी के सदस्यों ने प्रेक्षाध्यान गीत का संगान किया। इससे पूर्व प्रेक्षाध्यान के प्रयोग प्रशिक्षक राकेश सिंघी, मनीषा नाहटा। मंगलभावना लक्ष्मी लता बैद ने कराया। आभार ज्ञापन अरुण नाहटा ने किया।