संस्मरण बना जो अमूल्य धरोहर
साध्वी सिद्धांतप्रभा
जिनके स्मरण मात्र से मस्तिष्क श्रद्धा से नम हो जाता है। जिनकी स्मृति चित्त को प्रसन्नता प्रदान करती है, जिनकी नेहिल दृष्टि ने कितनों के जीवन को निखारा जिनके कुशल नेतृत्व में साध्वी समाज नित नई ऊँचाइयों को छूता रहा, जिनकी मनमोहक मुद्रा सबके दिलों को आकर्षित करती थी। जिनका ममतामयी साया हर व्यक्ति की थकान को दूर कर देता था। ऐसा था शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का करिश्माई व्यक्तित्व।
शासनमाता की नेहिल नजरों का आस्वाद बाल-वृद्ध, विबुद्य-अबुद्ध सभी करते थे। मैंने भी अपने जीवन में कई बार निकट सन्निधि को सुनहरे पन्नों का आनंद जिया था। ई0 सन् 2018 का प्रसंग है। मर्यादा महोत्सव के दौरान हम समणियाँ गुरु सेवा में पहुँची। शासनमाता का मनोनयन दिवस मर्यादा महोत्सव से कुछ दिन पूर्व ही आता था। हम साध्वीप्रमुखा के दर्शनार्थ पहुँची।
शुभकामनाओं सहित वंदना कर लौटने लगी। साध्वीप्रमुखाश्री जी के हाथ का ईशारा मेरी तरफ देख, मैं रुक गई। मैंने सोचाµमैं तो छोटी समणी हूँ। मुझे क्या कहेंगे? मेरे से क्या बात करेंगे। एक साधक के लिए बड़ों का ईशारा भी आदेश बन जाता है। मैं सहमती हुई साध्वीप्रमुखा के पास गई। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने पूछाµलाडनूं में क्या किया? किस विषय का अध्ययन किया, स्वाध्याय कितना करती हो? सभी प्रश्नों को मैंने उत्तरित किया। आपश्री ने मुझे कुछ प्रेरणा पाथेय दिया। मैं उन पलों को याद करती हूँ तो मेरा सिर श्रद्धा से प्रणत हो जाता है। मैं अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे उनके साध्वीप्रमुखा काल में दीक्षित होने (वाले अंतिम हतवनच की साध्वियों में एक) का अवसर प्राप्त हुआ। साध्वी दीक्षा लेने के बाद लगभग 15-20 दिन का निकट सान्निध्य मुझे प्राप्त हुआ जो मेरे जीवन की अमूल्य धरोहर बन गया।