अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

धर्म बोध
तप धर्म

प्रश्न 30 : तपस्वियों का सम्मान क्या उनकी उज्ज्वलता को मंद नहीं करता?
उत्तर : तपस्वियों का अभिनंदन तप का अभिनंदन है। इससे लोगों में तप का प्रभाव बढ़ता है। साथ ही अभिनंदन तपस्वियों के लिए एक खतरा भी है। तपस्या के साथ लेन-देन करना एक प्रकार से उसे बेचना है। फल की आकांक्षा से की जाने वाली तपस्या वास्तविक तपस्या नहीं है।

भाव धर्म

प्रश्न 1 : भाव किसे कहते हैं?
उत्तर : कर्मों के संयोग या वियोग से होने वाली आत्मा की अवस्था को भाव कहते हैं।

प्रश्न 2 : क्या परिणाम विशेष को भाव कहते हैं?
उत्तर : परिणाम विशेष को भी भाव कहते हैं। यह मनोयोग से संबंधित परिणाम है। अध्यवसाय, लेश्या व योग के समन्वित रूप को ही भाव कहते हैं। व्यवहार में मोक्ष के चार मार्गों में भाव का भी उल्लेख है। वह यही परिणाम विशेष भाव है।

प्रश्न 3 : क्या भाव शुभ, अशुभ दोनों हैं?
उत्तर : भाव शुभ-अशुभ दोनों होते हैं। शुभ भावों में संलग्न जीव मोक्ष का उत्कृष्ट सुख पा सकता है, अशुभ भावों में लगा जीवन सातवीं नरक तक का उत्कृष्ट दु:ख भी पा लेता है। जैन व्याख्या ग्रंथों में प्रसन्नचंद राजर्षि का उल्लेख मिलता है। उनके जीवन में ऐसा प्रसंग बना कि अंतर्मुहूर्त समय में जब अशुभ भाव व अध्यवसाय की तीव्रता बढ़ी, तो उन्होंने सातवीं नरक तक के योग्य कर्म पुद्गलों के दलित बाँध लिए। जब अशुभ से शुभ की ओर तीव्रता से प्रयाण किया तो सातवीं नरक तक के उन कर्म दलिकों को तोड़ते हुए उसी अंतर्मुहूर्त समय में सर्वज्ञ बन गए। सचमुच भावों का खेल अजीब है।

प्रश्न 4 : भाव शून्य क्रिया कहाँ होती है?
उत्तर : अमनस्क जीवों की क्रिया भाव शून्य होती है। उन जीवों में अध्यवसाय तो होता है, किंतु मनोयोग न होने से जो क्रिया होती है, उसमें भावों का अभाव रहता है। ऐसी क्रिया में लाभ-हानि दोनों न्यूनतम होती है।

(क्रमश:)