मानवीय एकता का संदेशवाहक पर्व है - होली

मानवीय एकता का संदेशवाहक पर्व है - होली

होली पर्व पर विशेष

मुनि चैतन्यकुमार ‘अमन’

भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है, जिसमें विविध संस्कृति के लोगों का समावेश है। इस देश में विविध प्रकार की भाषाएँ, विविध प्रकार के धार्मिक संगठन, विविध प्रकार के खान-पान, विविध प्रकार के सामाजिक व धार्मिक समारोह तथा विविध प्रकार के पर्व-त्यौहार वर्ष भर आते ही रहते हैं जो कि अपनी-अपनी परम्परा रीति-रिवाज के अनुसार मनाए जाते हैं। किन्तु कुछ ऐसे राष्ट्रीय व सामाजिक पर्व हैं जो सम्पूर्ण भारतीय लोग एकरूपता के साथ मनाते हैं। उन पर्वों में होली, दीपावली, रक्षाबंधन का पर्व अनेकता में एकता का संदेश देते हैं।
होली का पर्व रंगों का पर्व है। यह पर्व रंगों की तरह परस्पर मेलजोल, भाईचारा, मैत्री, मानवीय एकता का पर्व है। मानवीय संदेवनाओं को उजागर करने वाला यह पर्व जनमानस में प्रेम, स्नेह, सौहार्द, सद्भावना का बीज वपन करता है। बसंत ऋतु के आगमन का संदेशवाहक यह पर्व ऋतु परिवर्तन के साथ मानव मन, मस्तिष्क को परिष्कृत कर वातावरण में सुवास और मिठास घोल देता है। रंगों को उमंग के साथ खेलकर मानव तरंगित हो जाता है। रंगों का मानव मन व मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव होता है। रंग जो मानव को शांति, शीतलता व सुकुन प्रदान करने वाले होते हैं तो वे मानव में ऊष्मा पैदा कर उत्तेजित करने वाले भी होते हैं। जीवन धारा को आमूलचूल परिवर्तन करने में रंगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। यद्यपि प्रत्येक रंग का प्रभाव अलग-अलग होता है। रंगों का प्रयोग न केवल मानव जाति बल्कि पशु जगत पर प्रभाव डालता है। शांति स्थापित करना व क्रांति घटित करना रंगों से संभव है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी कलर थैरेपी का विकास हुआ है। जो स्वास्थ्य लाभ में कारगर सिद्ध हुए है। उग्रता, उत्तेजना, शांति और शीतलताµये सब रंगों के प्रयोग से संभव है। अध्यात्म के क्षेत्र में जैन परम्परा में लेश्या के प्रयोग तथा विश्व विश्रुत अनादि निधन महामंत्र नवकार रंगों पर आधारित है जिसका जप व ध्यान का प्रयोग मानव को रंग और केन्द्र पर प्रयोग करवाए जाते हैं तो उसके बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त हुए है। नवकार महामंत्र के पांच पद, पाँच रंग व पाँच केन्द्रों पर प्रयोग करवाए जाते हैं तो मानव वृत्ति में परिवर्तन हो जाता है। उसके क्रोध-लोभ की वृत्ति शांत होने लगती है। विद्यार्थी में मानसिक एकाग्रता, स्मरणशक्ति, ग्रहणशक्ति वृद्धिगत होने लगती है। इस प्रकार अच्छे ढंग से किए गए प्रयोग से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। तो कहा जा सकता है कि होली का पर्व रंगों का पर्व है जिसमें सामाजिक समरसता, पारस्परिक प्रेम उत्पन्न होना चाहिए किन्तु पर्वों के साथ जब विकृतियाँ जुड़ जाती हैं तो कटुता का जहर भी घुल जाता है। वर्तमान में पर्वों के प्रति लोगों के मानस में जो उमंग, उत्साह, हर्ष और उल्लास होना चाहिए वो शनैः-शनैः क्षीण होता जा रहा है। कारण स्पष्ट है पर्व में जुड़ने वाली अनेक प्रकार की विकृतियाँ। आवश्यकता है व्यक्ति प्रकृति और संस्कृति के साथ पर्व से जुड़ने का प्रयास करे तथा उल्लास भावना के साथ पर्व मानए तो संभव है जीवन में मिठास का अहसास तथा विश्वास को बढ़ने का अवसर मिल सकेगा। पर्व के हार्द को समझे और उस तरफ बढ़ने का प्रयास करते रहें।
अंग्रेजी शब्द होली अर्थात् पवित्रता। पर्व पवित्रता का संदेश देते हैं। हमारा तन-तन-चिंतन भावना कार्यशैली सबसे पवित्र हो सबके साथ पवित्र हो ताकि आत्मा भी पवित्र, शुद्ध, बुद्ध और मुक्ति की दिशा में अग्रसर हो सके और हम यथार्थ, पुरुषार्थ के साथ परमार्थ की भावना को विकसित कर सकेंगे। यही काम्य है।