अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

धर्म बोध
भाव धर्म

प्रश्न 5 : क्या भावयुक्त व भावशून्य की गई क्रिया के प्रायश्चित में अंतर रहता है?
उत्तर : भावयुक्त व भावशून्य की गई असत् क्रिया के प्रायश्चित में बहुत अंतर रहता है। तीव्र परिणाम में कोई असत् क्रिया घटित हुई हो, तो उसका उत्कृष्ट प्रायश्चित नई दीक्षा ग्रहण करने तक आ सकता है। मंद परिणाम में कोई असत् क्रिया हो जाती है, तो उसका प्रायश्चित्त हल्का होता है।

प्रश्न 6 : भावों की उत्कृष्ट निर्मलता और मलिनता के लिए क्या मजबूत संहनन अपेक्षित रहता है?
उत्तर : भावों की उत्कृष्ट निर्मलता के लिए सर्वाधिक मजबूत वज्रऋषभनाराच संहनन की अपेक्षा रहती है। इसी संहनन वाला मोक्षगामी हो सकता है। उत्कृष्ट मलिनता अर्थात् सातवीं नरक तक ले जाने में भी यही संहनन उत्तरदायी है।

प्रश्न 7 : क्या श्रेणी आरोहण के समय भावों की ही प्रधानता रहती है?
उत्तर : श्रेणी आरोहण के समय भावों की ही प्रधानता रहती है, वचन और काया की क्रिया भी साथ में हो सकती है।

प्रश्न 8 : क्या चक्रवर्ती भरत को अपने महल में केवल ज्ञान की उपलब्धि भावों से हुई?
उत्तर : चक्रवर्ती भरत ने अपने महल में अनित्य अनुप्रेक्षा की, जिससे भावों में चारित्र आया और श्रेणी आरोहण करते हुए केवल ज्ञान की भूमिका तक पहुँच गए। उनके केवल प्राप्ति में भावों की ही मुख्यता रही। माता मरुदेवी की भी मुक्ति भाव-निर्मलता से हुई। वह प्रथम गुणस्थान से सातवें, फिर श्रेणी चढ़ते हुए तेरहवें गुणस्थान में सर्वज्ञ बनीं, तत्क्षण योग निरुद्ध कर सिद्ध, बुद्ध व मुक्त बनीं।

प्रश्न 9 : मोक्ष-मार्ग में भाव को अतिरिक्त महत्त्व क्यों दिया गया है?
उत्तर : मोक्ष मार्ग की आराधना में भाव (शुभ) का बहुत महत्त्व है। किसी भी धार्मिक क्रिया की गुणवत्ता तभी बढ़ती है जब उसके साथ भाव जुड़ा होता है। भाव शून्य क्रिया द्रव्य क्रिया होती है, अत: वह अल्प फलदायिनी ही बनकर रह जाती है। भाव से जुड़ी क्रिया असाधारण फल देने वाली होती है।
(क्रमश:)