अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’
धर्म बोध
तप धर्म

प्रश्न 26 : क्या मिथ्यात्वी की तपस्या संसार वृद्धि का कारण है?
उत्तर : संसार वृद्धि मोह कर्म के उदय से होती है और तपस्या मोह कर्म के क्षयोपशम से होती है। यह काया का शुभयोग है। क्षयोपशम से की जाने वाली तपस्या संसार वृद्धि का हेतु कैसे हो सकती है? यह तो आत्म उज्ज्वलता का कारण बनती है।

प्रश्न 27 : तपस्या कितने भाव कितनी आत्मा?
उत्तर : तपस्या भाव-चार-उदय को छोड़कर आत्मा-एक-योग।

प्रश्न 28 : क्या तप के कई प्रकार हैं?
उत्तर : तपस्या करने के 108 प्रकार उपलब्ध होते हैं, जैसेµरोहिणी तप, कनकावली तप, भद्र महाभद्र, प्रतिमा आदि। इनमें तप करने की विविध पद्धतियाँ हैं। रोहिणी तप, सोलिया तप, चूड़ा तप मध्यवर्ती युग में यतिजनों द्वारा प्रतिपादित व विकसित है। पचरंगी, सतरंगी नाम से तपस्या का क्रम तेरापंथ धर्मसंघ में ही अधिक प्रचलित हैं। प्राप्त इतिहास के अनुसार सं0 1925 में जयाचार्य ने जोधपुर में पचरंगी, सतरंगी नामक तपस्या का शुभारंभ किया था। जय सुजश के अनुसार लाडनूं में बहिनों में एक साथ 13 पचरंगियाँ हुई थीं।

प्रश्न 29 : क्या भौतिक अभिसिद्धि के लिए भी तपस्या की जा सकती है?
उत्तर : भौतिक अभिसिद्धि के लिए तपस्या हो सकती है। दस रुपये की वस्तु सौ रुपयों में क्यों नहीं मिलती, किंतु वह वस्तु खरीदने वाला मूर्ख कहलाता है। भौतिक उपलब्धि में तप व जप की प्रधानता होती है, किंतु दस रुपये मूल्य की वस्तु के लिए वह सौ रुपये देने की बात होगी। राजा रावण के बहुरूपिणी विद्या के लिए आठ दिनों की तपस्या करने का उल्लेख मिलता है। वासुदेव श्रीकृष्ण, महामंत्री अभयकुमार तथा चक्रवर्ती आदि ने भी देव-सहयोग के लिए तेले किए थे।

(क्रमश:)