स्वस्थ समाज का मुख्य आयाम है प्रामाणिकता: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्वस्थ समाज का मुख्य आयाम है प्रामाणिकता: आचार्यश्री महाश्रमण

शाहीबाग, अहमदाबाद, 17 मार्च, 2023
धर्मोपदेशक, धर्मज्ञाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन वाङ्मय में अठारह पाप की प्रवृत्तियाँ बताई गई हैं। ये अठारह प्रवृत्तियाँ पाप का बंध कराने वाली हैं। पाप की प्रवृत्तियों से आदमी बचने का प्रयास करे, यह एक धार्मिकता का कार्य-लक्षण है। आदमी को निडर रहना चाहिए। भयभीतता एक दुर्बलता है। न तो खुद को डरना चाहिए न दूसरों को डराना चाहिए। डरना कमजोरी है, तो डराना भी एक कष्टदान है। कहीं-कहीं सात्त्विक भय या प्रशस्त भय भी उपयोगी हो सकता है। गुरु से डरना सात्त्विक भय है। वो आदमी को गलत काम करने से बचा सकता है।
पापभीरूता यानी पाप से डरना भी अच्छी बात है। अपनी आत्मा को पाप से बचाने का प्रयास करें। अदतादान एक ऐसा पाप है, जिसकी पृष्ठभूमि में लोभ की चेतना प्रभावित है। लोभ या अभावग्रस्तता चोरी का कारण बन सकती है। गृहस्थ चोरी से बचें। ऐसी चेतना की प्रामाणिकता रखनी चाहिए। चोरी नहीं करना और झूठ नहीं बोलना ये दो प्रामाणिकता के आयाम हैं। गृहस्थ का पैसे के साथ संबंध होता है। साधु के पास कोड़ी है, तो साधु कोड़ी का नहीं। गृहस्थ के पास कोड़ी नहीं तो वह कोड़ी का नहीं। काम और अर्थ गृहस्थरूपी रथ के दो पहिए हैं, लेकिन उन पर धर्म और मोक्ष का नियंत्रण रहे। यह गृहस्थी का रथ उत्पथ पर न चला जाए। गृहस्थ प्रामाणिकता और इंद्रिय-संयम रखें। व्यवहार-जगत में भी एक सीमा तक इंद्रिय संयम उपयोगी होता है।
अणुव्रत में भी प्रामाणिकता-नैतिकता की बात बताई गई है। चाहे आदमी किसी भी संप्रदाय के हों, नास्तिक हों या आस्तिक। बच्चों में भी अच्छे संस्कार हों। स्वस्थ समाज का एक आयाम है-प्रामाणिकता।
नव दीक्षित साध्वी राहतप्रभा जी की बड़ी दीक्षा
पूज्यप्रवर ने 10 मार्च को मुमुक्षु राहत को कोबा में मुनि दीक्षा प्रदान कराई थी। आज बड़ी दीक्षा छेदोपस्थापनीय चारित्र प्रदान करते हुए परम पावन से पाँच महाव्रतों और छठा रात्रि विरमण व्रत को खोल-खोलकर विस्तार से समझाते हुए नवदीक्षिता साध्वी राहतप्रभा जी को ग्रहण करवाया। बड़ी दीक्षा से पूर्व नवदीक्षिता साध्वीश्री ने अपने सात दिन के अनुभव बताए। पूज्यप्रवर की सन्निधि में आज प्रेक्षाध्यान शिविर का समापन समारोह आयोजित हुआ। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाते हुए शिविरार्थियों को बताया कि शिविर के बाद भी प्रेक्षाध्यान के प्रयोग निरंतर करते रहें एवं दूसरों को भी लाभान्वित करने का प्रयास करें।
मुनि कुलदीप कुमार जी, मुनि मुकुल कुमार जी, साध्वी सरस्वती जी, साध्वी रिद्धिप्रभा जी, साध्वी आटमप्रभा जी, समणी रोहिणीप्रज्ञा जी ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। पूजयप्रवर ने सभी को आशीर्वचन फरमाया। अहमदाबाद का श्रावक समाज चारित्रात्माओं की स्वास्थ्य संबंधी सेवा में पूर्णतया जागरूक है। डॉ0 धवल एवं स्थानीय सभा के पदाधिकारी जागरूकता से सेवा में तत्पर रहते हैं। पूज्यप्रवर ने सभी को आशीर्वचन फरमाया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थी संकल्प करें कि वे दूसरों को प्रेक्षाध्यान सिखाने का प्रयास करेंगे। आत्मा में अनंत ज्ञान, शक्ति और आनंद है, प्रेक्षाध्यान से हम यह अपने भीतर जागृत कर सकते हैं। चेतना केंद्रों पर चेतना की शक्ति होती है। अंतराय कर्म हल्का होने से शक्ति जागृत होती है। ध्यान से हम ज्ञान-शक्ति को जागृत कर सकते हैं। चेतना का रूपांतरण होने से चिंतन-व्यवहार बदल सकता है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि आदमी मनुष्य जन्म का सम्यग् उपयोग करना चाहता है, तो उसे सम्यग् पायलट गुरु चाहिए। सम्यग् राह हमें गुरु दिखा सकते हैं। अध्यात्म गुरु का प्राप्त होना दुर्लभ बात होती है। पूज्यप्रवर हमें भवसागर से पार पहुँचाने वाले होते हैं। परम पावन का जीवन हम सबके लिए आदर्श है। प्रेक्षाध्यान के शिविरार्थी श्वेता डागा एवं अशोक बरलोटा ने शिविर के अनुभव बताए। स्थानीय सभा के पदाधिकारियों द्वारा 11 संकल्पों के हजारों संकल्प-पत्र पूज्यप्रवर को अर्पित किए गए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।