भगवान ऋषभ के पारणे से जुड़ा है - अक्षय तृतीया पर्व
मुनि कमल कुमार
संसार में विभिन्न प्रकार के पर्व मनाए जाते हैं। हर पर्व का अपना इतिहास है। हमें गौरव की अनुभूति होती है कि जैन धर्म में भी कई पर्व मनाए जाते हैं। उनमें एक पर्व है-अक्षय तृतीया। इस दिन आदिनाथ भगवान ने तेरह महीने दस दिन की चौविहार तपस्या का पारणा अपने प्रपौत्र श्रेयांस कुमार के हाथों से शुद्ध प्रासुक इक्षु रस से किया। तब से ही वैसाख शुक्ला तृतीया को शुभ माना जाने लगा। इस दिन राजस्थान में विवाह, गृह प्रवेश, संस्थानों का शुभारंभ आदि मांगलिक कार्य बहुत शुभ माने जाते हैं। घर-घर में इक्षुरस के अभाव में इमली का पानक और खीचड़ा बनाते हैं, घरों में पानी के लिए नए घड़े डाले जाते हैं, बच्चे युवक ही नहीं प्रौढ़ और वृद्ध भी पतंग उड़ाते हुए नजर आते हैं। वहीं भगवान के तप का आंशिक अनुसरण ही कहा जा सकता है कि भगवान आदिनाथ दीक्षा कल्याणक अथवा चैत्र कृष्ण अष्टमी से एक दिन छोड़कर एक दिन का उपवास करने वाले पारणा अर्थात् तप की संपूर्ति करते हैं। भगवान ने तो चैत्र कृष्ण अष्टमी से लेकर वैसाख शुक्ला द्वितीया तक पानी तक ग्रहण नहीं किया। वे अनंत बली थे परंतु वर्तमान में एक दिन छोड़कर एक दिन भी चौविहार तप करने वाले कम नजर आते हैं। अक्सर लोग उपवास भी चौविहार कम कर पाते हैं। इसलिए इसे आंशिक अनुसरण कहना अनुपयुक्त नहीं लगता। वर्तमान युग भौतिक युग कहलाता है। दिन में दो-तीन बार खाने वाले लोग ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं। कई इससे भी ज्यादा बार खाते-पीते रहते हैं। इसलिए वर्तमान में नाना प्रकार की बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। आजकल हम देखते हैं कि इतने डॉक्टर और चिकित्सालय बढ़ते जा रहे हैं फिर भी कई घंटे नहीं कई-कई दिन पहले डॉक्टरों से समय लेना पड़ता है तब कहीं जाकर रोग का सम्यक् उपचार हो पाता है। जो भाई-बहन तपस्या के साथ जप, ध्यान और कायोत्सर्ग के साथ सामायिक-स्वाध्याय का क्रम बना लेते हैं वे वर्तमान युग में हर तरह से स्वस्थ मस्त नजर आते हैं। परंतु जो केवल खाने-पीने में ही लगे रहते हैं, वे नाना प्रकार की व्याधियों से ग्रस्त नजर आते हैं। स्वस्थ जीवन के लिए तपस्या आध्यात्मिक औषध है, जिससे तन-मन के विकार समाप्त हो जाते हैं। जो तपस्या में जप, ध्यान, मौन एवं स्वाध्याय का आलंबन नहीं लेते वे आभ्यंतर तप का आनंद नहीं ले सकते। तीर्थंकरों के जो केवल्य ज्ञान होता है, उसमें ध्यान का बहुत बड़ा आलंबन होता है। ध्यान से व्यक्ति एकाग्रचित्त हो जाता है। चित्त की एकाग्रता व्यक्तित्व विकास का बहुत बड़ा साधन है। इन वर्षों में जगह-जगह ध्यान का स्वर सुनाई दे रहा है। वर्तमान की सरकार भी ध्यान और योग के कार्यक्रम को बढ़ावा दे रही हैं। यह सब शुभ भविष्य का ही सूचक है। हमारे जितने भी तीर्थंकर हुए हैं उन्होंने ध्यान और योग से अपने आपको भावित किया था इसलिए वे आत्मस्थ, स्वस्थ और सदा मस्त रहें। जो व्यक्ति आत्मस्थ बन जाता है वह सब प्रकार के भयों से, रोगों से एवं तनावों से मुक्त हो जाता है।
अक्षय तृतीया हमारे लिए भाग्योदय का सूचक बनें। इस वर्ष अक्षय तृतीया का भव्य कार्यक्रम गुजरात के प्रसिद्ध शहर सूरत में महातपस्वी शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में आयोजित होने जा रहा है और सुनने में आया है कि लगभग 1100 व्यक्तियों के वर्षीतप का पारणा श्रीचरणों में होने वाला है। यह वर्ष पूज्य गुरुदेव के 50वें दीक्षा दिवस के रूप में आ रहा है। हमें अपनी शक्ति के अनुसार वर्षीतप नहीं हो सके तो बारह महीने रात्रि भोजन का त्याग करके मनाना चाहिए। ताकि हम भगवान आदिनाथ और वर्तमान के तीर्थंकर कहूँ तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी, जिन्होंने अपने सुश्रम और सुचिंतन से जन-जन को जीने की कला सिखाई। ऐसे पूज्यप्रवर आचार्यश्री महाश्रमण जी जिन्हें शत-शत बार नमन कर अपनी श्रद्धा समर्पित करता हूँ। हमें दीर्घकाल तक पूज्यप्रवर का मार्गदर्शन मिलता रहे, जिससे हम भी आत्म-कल्याण के साथ जन-कल्याण और संघ प्रभावना में अपने आपको नियोजित करते रहें।