मंगल गीत
मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’
प्रोफेसर मुनिवर महेंद्र की यादें हमें सताएँ।
छोड़ अचानक चले गए वो कैसे उन्हें भूलाएँ।
मिलनसार गुणवान महान।
एक अलग उनकी पहचान।।
मुंबई महानगर में वर्षों तक प्रवास किया है।
मुंबई महानगर में देखो अंतिम श्वास लिया है।
है मलाल बस इसी बात का, गुरु दर्शन ना पाए।।
प्रेक्षा प्राध्यापक थे सच्चे आगम अनुसंधानी।
बहुश्रुत परिषद् के संयोजक, ज्ञानी प्रेक्षा ध्यानी।
अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता, क्या-क्या हम बतलाएँ।।
श्री तुलसी महाप्रज्ञ और श्री महाश्रमण गुरुदेवा।
तीन-तीन आचार्यप्रवर की, उन्हें मिली थी सेवा।
सुघड़ साहित्य रचना करके, साहित्यकार कहाए।।
मुनि अजित अभिजीत व जागृत जम्बू सिद्ध मुनिवर।
सेवा की सभी संतों ने, पाया है आशीर्वर।
मुनि महेंद्र ने भी तो इनको, खूब ही लाड़ लड़ाए।।
मुनि श्रेयांस कुमार और चैतन्य ‘अमन’ गुण गाएँ।
विमल विहारी मुनि प्रबोध भी उनकी स्मृति कर पाए।
गंगाणै की तपोभूमि में, मंगल गीत सुनाएँ।।
लय: मांय न मांय---