उपासना

स्वाध्याय

उपासना

(भाग - एक)

आचार्य तुलसी

श्रमणोपासक कामदेव

श्रावक कामदेव चंपानगरी का निवासी था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। कामदेव एक समृद्ध गृहपति था। उसके यहाँ छः कोटि सोनैया व्यापार में, छः कोटि सोनैया गृह उपकरणों में तथा छः कोटि सोनैया सुरक्षित निधि के रूप में जमीन में थीं। वह व्यापार के साथ-साथ कृषि कर्म भी किया करता था। उसके पास गौओं के छः गोकुल भी थे। प्रत्येक गोकुल में दस हजार गौएँ थीं। भगवान् महावीर के पास उसने और उसकी पत्नी भद्रा ने श्रावक धर्म स्वीकार किया और उसका निरतिचार पालन करने लगा। अवस्था के परिपाक के साथ-साथ गृहस्थी का सारा भार अपने ज्येष्ठ पुत्र को सौंपकर स्वयं धर्म क्रिया में लीन रहने लगा।
एक बार पौषधशाला में बैठा वह पौषध में तल्लीन था। उस समय एक मिथ्यात्वी देव आया। कामदेव को धर्म से विचलित करने के लिए महा भयंकर रौद्र पिशाच का रूप बनाया और फिर उसे मरणांतक उपसर्ग देते हुए कहाµ‘हे नराधम! तू तेरे व्रतों को छोड़। भगवान् महावीर का नाम रटना छोड़। आँख खोलकर मेरी ओर देख। अन्यथा अभी-अभी तलवार से तेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े करता हूँ।’ यों कहकर तलवार का वार किया। पर कामदेव अविचल रहा।
तब क्रुद्ध होकर देव ने हाथी, सिंह, बाघ, सर्प आदि अनेक रूप बना-बनाकर भयंकर कष्ट दिए, पर कामदेव अपने प्रण पर अडोल रहा। तब देव अपने मूल रूप में कामदेव की स्तुति करता हुआ बोलाµ‘कामदेव, तुम्हें धन्य है! तुम्हारी दृढ़ता को धन्य है! देवताओं की परिषद में स्वयं शक्रेन्द्र ने तुम्हारी दृढ़ता की प्रशंसा की थी। मुझे इंद्र की बात पर विश्वास न हुआ। इसलिए तुम्हारी दृढ़ता की परीक्षा लेने आया और तुम्हें उपसर्ग दिए। तेरी दृढ़ता वैसी ही है जैसी इंद्र ने बताई थी। मैं तुमसे क्षमायाचना करता हूँ।’ यों कहकर देवता अपने स्थान को चला गया।
प्रातःकाल जब पौषधशाला में कामदेव ने प्रभु महावीर ने आगमन का संवाद सुना तब पौषध में ही दर्शनार्थ चल पड़ा। भगवान् महावीर ने कामदेव के उपसर्गों की चर्चा करते हुए, उसकी दृढ़ता को सराहते हुए साधु-सतियों को संबोधित करते हुए कहाµ‘आर्यो! गृहस्थवास में रहने वाला श्रमणोपासक भी देवकृत उपसर्गों में यों दृढ़ रह सकता है तब तुम लोगों को तो अविचल रहना ही चाहिए। कामदेव श्रावक ने धर्म-श्रद्धा का आदर्श उपस्थित किया है।’
कामदेव की दृढ़ता की चारों ओर प्रशंसा हुई।
कामदेव ने अपने पौषध को पूरा किया तथा वह अपने श्रावकधर्म में और भी दृढ़ रहने लगा। उसने क्रमशः श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की आराधना की। अपने व्रतों का निरतिचार पालन करके अनशनपूर्वक समाधिमरण प्राप्त किया। सौधर्म स्वर्ग (प्रथम स्वर्ग) के अरुणाभ विमान में दिव्य-ऋद्धि वाला देव बना। वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर मोक्ष प्राप्त करेगा।

श्रावक श्री बहादुरमलजी भंडारी

बहादुनमलजी भंडारी जोधपुर के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक थे। जयाचार्य के समय में उन्होंने शासन की अनेक विशिष्ट सेवाएँ की थीं। वे जहाँ एक श्रावक थे, वहाँ प्रसिद्ध राज्य-कर्मचारी भी थे। कुछ समय के लिए वे जोधपुर-राज्य के दीवान भी रहे। वे जहाँ भी जिस कार्य के लिए नियुक्त किए गए, उन्होंने अपनी विशेष योग्यता की छाप छोड़ी। ऐसे निपुण व्यक्ति बहुत कम ही मिला करते हैं।
उनका जन्म अपने ननिहाल बोरावड़ में सं0 1872 मिगसर कृष्णा द्वितीया को हुआ। उनके पिता भैरूंदासजी डीडवाना तहसील के दौलतपुरा ग्राम के निवासी थे। बाल्यकाल में बहादुरमलजी ने तत्कालीन शिक्षा पद्धति के अनुसार अक्षर-ज्ञान के अतिरिक्त प्रारंभिक गणित का भी थोड़ा-बहुत अध्ययन किया था।

(क्रमशः)