मुनि महेंद्र कुमार जी के प्रति उद्गार
मुनि कमल कुमार, मुनि अमन कुमार, मुनि नमि कुमार
बहुश्रुत परिषद् के संयोजक प्रेक्षाध्यापक प्रोफेसर मुनि महेंद्र कुमार जी स्वामी बी0एस0सी0 से उत्तीर्ण होकर दीक्षा लेने वाले प्रथम संत थे। आपकी दीक्षा पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के करकमलों से हुई। दीक्षा के पश्चात आप अध्ययन और साधना की गहराई में गहरे उतरे, आपके द्वारा लिखित, संपादित ग्रंथ सबके लिए पठनीय और संग्रहणीय हैं। आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी, आचार्यश्री महाश्रमण जी की आप पर निरंतर कृपा, करुणा बरसती रही। आपने अपनी कर्मजा शक्ति का भरपूर प्रयास करके संघीय आयामों को जो गति प्रदान की है वह चिरस्मरणीय रहेगी। आपको अनेक भाषाओं का तलस्पर्शी ज्ञान था। आपका वक्तव्य, लेखन अपने आपमें प्रशंसनीय ही नहीं हम सभी के लिए अनुकरणीय है। स्वाध्याय, ध्यान, जाप, कायोत्सर्ग का निरंतर अभ्यास प्रयोग चलता रहता था आपने इस अवस्था में भी अपने को पूर्ण सक्रिय और हर तरह से सक्षम बना रखा था। पूज्यप्रवर के स्वागत की तैयारी में अहर्निश लगे हुए थे। ऐसा मुंबई से आने वाले बता रहे थे। परंतु आयुष्य के आगे किसी का अब तक जोर नहीं चला है। हम काठमांडू से दिल्ली आए तब आपने हमें द्वारका तक 25 किलोमीटर स्वयम् संतों सहित पहुँचाया। कोलकाता जाते समय सूर्यनगर तक अजित मुनि को भेजा। मुंबई चातुर्मास एवं प्रवास में आठ बार मिलन हुआ।
आपकी सत् शिक्षा, प्रमोद भावना हमें सदा आपकी स्मृति दिलाती रहेगी। मुनि अजित कुमार जी को लंबे समय तक आपकी सेवा-उपासना, सुश्रुसा का अवसर मिला, यह उनके सौभाग्य की बात है। डॉ0 मुनि अभिजीत कुमार जी को आपने विशेष रूप से तैयार किया है, यह गौरव का विषय है। मुनि जंबू कुमार जी को भी उत्तम अवसर मिल गया। मुनि जागृत कुमार जी, मुनि सिद्ध कुमार जी भी संस्कृतज्ञ बन गए। यह सब आपकी कृपा का फल मानता हूँ। स्मृति सभा में उपस्थित दिल्ली के श्रद्धालु भी आपकी कृपा को सदैव याद रखते हैं। आपके अनेक चातुर्मास प्रवास स्वतंत्र और तीनों ही आचार्यों के साथ हो चुके हैं। आपकी क्षतिपूर्ति करने वाले अनेक संत हों जिससे धर्मसंघ उत्तरोत्तर विकास करता रहे एवं आपके लिए भी हम यह मंगलकामना करते हैं कि आप भी अपने चरम लक्ष्य को अति शीघ्र प्राप्त करें।