अभिनंदन अमृत पल का

अभिनंदन अमृत पल का

साध्वी प्रबुद्धयशा
प्रश्न उपस्थित किया गया-भक्त और शिष्य में क्या फर्क है? समाधान उपलब्ध हुआ-जो गुरु को चाहे वह भक्त है और जिसे गुरु चाहे वह शिष्य है। भक्त बनना जितना आसान है शिष्य बनना उतना ही कठिन है। समर्पण की महान साधना करके ही शिष्यत्व की कसौटी पर खरा उतरा जा सकता है। आध्यात्मिक संस्कृति वाले भारत देश में अनेक व्यक्तित्व इस तुला में उत्तीर्ण हुए। वे महान शिष्य कालांतर में महान गुरु की भूमिका में प्रतिष्ठित हो गए। आचार्य महाश्रमण भी अपने धर्मगुरु आचार्य तुलसी के प्रियतम शिष्यों में से एक हैं। समय-समय पर गुरु तुलसी द्वारा प्रदत्त कृपाप्रसाद इस तथ्य के प्रमाणभूत साक्ष्य है कि मुनि मुदित (आचार्य महाश्रमण) का गुरु तुलसी के हृदय में विशेष स्थान था। आचार्य तुलसी के शब्दों में ”साधु हो तो मुदित मुनि जैसा हो। महाश्रमण बहुत भला है, बहुत विनीत है। कुछ भी कह दो इतना सरल है कि कुछ कहा नहीं जा सकता मैं कहता हूँ कि साधु हो तो ऐसा हो।“
1 फरवरी, 1994 सुजानगढ़ में गुरुदेव तुलसी ने अपनी डायरी में लिखा-”महाश्रमण मुदित कुमार मेरा सहज सेवाभावी शिष्य है। मैं भविष्य के लिए निश्चिंत हूँ।“ इस प्रकार गुरुदेव तुलसी को निश्चिंत बनाने वाले मुनि मुदित कुमार जी आचार्य महाप्रज्ञ के सक्षम उत्तराधिकारी बन गए आचार्य महाश्रमण उस व्यक्तित्व का नाम है-
जहाँ शक्ति और शांति का साहचर्य है
संकल्प और समर्पण का समवाय है
अनुशासन और वात्सल्य का संगम है
श्रद्धा और तर्क की समन्विति है।
निश्चय और व्यवहार का संतुलन है।
आचार्यश्री महाश्रमण का दीक्षा के 50वें वर्ष में प्रवेश धर्मसंघ के लिए आध्यात्मिक उल्लास का उत्सव है। संपूर्ण धर्मसंघ उन अमृत पलों की अभिवंदना करता है-
जब तुलसी महाप्रज्ञ जैसे शास्ता की निगाहें इस महान् व्यक्तित्व पर टिकी।
जब तुलसी महाप्रज्ञ की प्रज्ञा तरंगों ने इस विरल व्यक्तित्व को पढ़ना प्रारंभ किया।
जब तुलसी महाप्रज्ञ जैसे योगीराजों के मानस मंदिर में इस अनुत्तर योगी ने अपना स्थान बनाया।
जब तुलसी महाप्रज्ञ जैसे सिद्धपुरुषों के सृजनशील हाथों से तेरापंथ के भावी सम्राट का निर्माण शुरू हुआ।
जब तुलसी महाप्रज्ञ द्वारा प्रदत्त दायित्व की अमल चादर इन सक्षम कंधों ने ओढ़ी।
परमपूज्य युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी का आध्यात्मिक नेतृत्व और दीक्षा कल्याणक अमृत वर्ष धर्मसंघ को रत्नत्रयी की आराधना में अभिस्नात कराता रहे, इसी शुभाशंसा के साथ----