मनोनुशासनम्

स्वाध्याय

मनोनुशासनम्

पद्मासन के विविध रूप

लेटकर किए जाने वाले आसन

दण्डायतशयन
विधि-दंड की तरह सीधे लेट जाइए। दोनों पैरों को परस्पर सटा दीजिए तथा दोनों हाथों को पैरों से सटा दीजिए।
समय-कम से कम पाँच मिनट और सुविधानुसार घंटों तक किया जा सकता है।
फल-दैहिक प्रवृत्ति और स्नायविक तनाव का विसर्जन।
आम्रकुब्जिकाशयन
विधि-भूमि पर किसी भी पाश्र्व से लेट जाइए। सिर और पैरों को कुछ आगे की ओर निकालिए। इसमें दोनों ओर से नीचे की ओर झुके हुए आम की भाँति कुछ कुब्ज-आकार हो जाता है।
समय-दीर्घकाल
फल-पाश्र्व के स्नायुओं की शुद्धि।
उत्तानशयन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। सिर से लेकर पैर तक के अवयवों को पहले तानें और फिर क्रमशः उन्हें शिथिल कीजिए। सममात्रा में तथा दीर्घ श्वास-उच्छ्वास लीजिए। मन को श्वास और उच्छ्वास में लगाकर एकाग्र, स्थिर और विचारशून्य हो जाइए। हाथों और पैरों को अलग-अलग रखिए।
समय-दीर्घकाल।
फल-दैहिक प्रवृत्ति और स्नायविक तनाव का विसर्जन।
इसे सुप्त कायोत्सर्ग या शवासन भी कहते हैं।
अवमस्तकशयन
विधि-औंधे मुख लेट जाइए। हाथों और पैरों को उत्तानशयन की भाँति रखिए।
समय-पाँच मिनट।
फल-वायु व उदर दोषों की शुद्धि।
एकपाश्र्वशयन
विधि-बायें या दायें किसी एक पाश्र्व से लेट जाइए और उस पाश्र्व के हाथ को सिर के नीचे रखिए।
समय-दीर्घ काल।
फल-(1) वीर्य की सुरक्षा।
(2) स्वप्नदोष से बचने का सुंदर उपाय।
(3) बायें पाश्र्व सोने से पाचनक्रिया ठीक होती है और सहज ही रात्रिकाल में सूर्यस्वर चालू
रहता है।
(4) दायें पाश्र्व सोने से वायु-शुद्धि होती है।
ऊध्र्वशयन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। नाभि से ऊपर के अथवा नीचे के भाग को ऊँचा उठाइए।
समय-तीन से पाँच मिनट।
फल-(1) कटि भाग तथा उसके नीचे और ऊपर के भागों की पेशियों पर प्रभाव होता है।
(2) शुक्र-गं्रथियाँ प्रभावित होती हैं।
लकुटासन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। लकुट (वक्र काष्ठ) की भाँति एड़ियों और सिर को भूमि से सटाकर शेष शरीर को ऊपर उठाइए।
पीठ को भूमि से सटाकर शेष शरीर को ऊपर उठाकर सोने को भी लकुटासन कहा जाता है।
समय-तीन से पाँच मिनट।
फल-(1) कटि के स्नायुओं की शुद्धि।
(2) उदर-दोषों की शुद्धि।
मत्स्यासन
विधि-पद्मासन लगाकर लेट जाइए। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़िए। सीने को ऊपर की ओर उठाकर सिर को जितना पीछे की ओर ले जा सकें, ले जाकर भूमि पर टिकाइए।
दूसरे प्रकार में जालंधर बंध भी किया जाता है।
समय-एक मिनट में पंद्रह मिनट तक।
फल-पहली विधि: (1) उदर के स्नायुओं पर प्रभाव होता है। (2) कोष्ठबद्धता मिटती है।
(3) गर्दन के स्नायु पुष्ट होते हैं। (4) फेफड़ों का व्यायाम होता है।
दूसरी विधि: गले और मस्तिष्क पर प्रभाव होता है।
पवनमुक्तासन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। बायें पैर को उठाकर उसे मोड़ते हुए उससे बायें वक्ष को दबाइए। फिर उसे सीधा कर दीजिए। दायें पैर से भी उसी क्रिया को दोहराइए। फिर दोनों पैरों से एक साथ वक्ष के दोनों पाश्र्वों को दबाइए। फिर दोनों पैरों को फैला दीजिए। यह बैठकर भी किया जा सकता है।
समय-पाँच से पंद्रह मिनट तक।
फल-(1) अपान वायु की शुद्धि। (2) वायु (गैस) का ऊध्र्वगामी होना बंद हो जाता है।
भुजंगासन
विधि-भूमि पर पेट के बल लेट जाइए। दोनों हाथों के पंजों को पेट के दोनों पाश्र्वों से सटाते हुए भूमि पर टिकाइए। फिर हाथों को वक्ष के पास लाकर पूरक करते हुए नाभि के ऊपर के भाग को ऊपर की ओर उठाते हुए सर्प के फण की मुद्रा में हो जाइए।
समय-उक्त मुद्रा में एक-दो मिनट कुम्भक के साथ रहिए। फिर श्वास का रेचन करते हुए धीमे-धीमे औंधा लेटने की मुद्रा में आ जाइए।
फल-(1) स्वप्न-दोष मिटता है। (2) वीर्य शुद्ध होता है। (3) प्राणायाम से होने वाले लाभ भी सहज प्राप्त हो जाते हैं।
धनुरासन
विधि-भूमि पर पेट के बल लेट जाइए। पैरों को घुटनों के पास मोड़ते हुए पीछे ऊपर की ओर ले जाइए। दोनों हाथों को पीछे की ओर फैलाते हुए उनसे पैरों के टखनों के पास का भाग पकड़िए। भुजंगासन की भाँति नाभि से ऊपर के भाग को ऊपर की ओर उठाइए।
समय-एक से पाँच मिनट।
फल-यकृत, प्लीहा और उदर के रोग शांत होते हैं।

विपरीत क्रिया

सर्वांगासन
विधि-भूमि पर सीधे लेट जाइए। फिर धीमे-धीमे दोनों पैरों, सक्थियों (ऊरुओं) तथा गर्दन तक के शरीर को ऊपर की ओर ले जाइए। दोनों हथेलियों से कमर को हल्का-सा सहारा दीजिए।
समय-दो मिनट से आधा घंटा।
फल-(1) मस्तिष्क और हृदय के स्नायुओं की शुद्धि। (2) उदर रोगों का शमन। (3) वीर्य-दोषों की शुद्धि। (4) कंठमणि पर दबाव पड़ने के कारण उसका समुचित स्राव होता है।
सर्वांगासन में पैरों को पीछे की ओर मोड़कर भूमि से सटा देने पर हलासन हो जाता है।
समय-एक मिनट से पंद्रह मिनट।
फल-(1) पृष्ठरज्जु लचीला होता है। (2) अग्नि प्रदीप्त होती है।
सर्वांगासन में पैरों को मोड़कर दोनों कानों के पास सटा देने पर कर्णपीड़नासन हो जाता है।
समय-सुविधानुसार।
कर्णपीड़नासन का उपयोग ध्यान के लिए भी किया जा सकता है।
शीर्षासन
विधि-दोनों घुटनों के बल बैठकर दोनों हथेलियों को एक-दूसरे से बाँधकर उन्हें भूमि पर टिकाइए। अथवा किसी मोटे कपड़े को नीचे रखिए। उन पर सिर को रखकर समूचे शरीर को ऊपर की ओर ले जाकर टिका दीजिए। प्रारंभ में यह भींत आदि के सहारे किया जा सकता हैं अभ्यास होने पर सहारे की अपेक्षा नहीं होती।
समय-एक-दो मिनट से आधा घंटा।
फल-समूचे शरीर पर प्रभाव होता है। मस्तिष्क, वीर्य और पाचन संस्थान पर विशेष प्रभाव
होता है।
पित्त-प्रधान प्रकृति वालों के लिए यह आसन हितकर नहीं होता। उसने नेत्र-विकार होने की संभावना रहती है।
ध्यानासन
ध्यानासन मुख्य पाँच हैं-(1) गोदोहिका, (2) सिद्धासन, (3) पद्मासन, (4) सुखासन,
(5) कायोत्सर्ग।
इनके अतिरिक्त शेष सब मुख्य रूप से शरीरासन हैं।
शरीरासन
शरीरासन शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य तथा कष्ट-सहिष्णुता आदि की शक्ति को विकसित करने के लिए किए जाते हैं।
(क्रमशः)