भक्ति में समर्पण व सम्मान का भाव होना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भक्ति में समर्पण व सम्मान का भाव होना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण

भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, वेसु-सूरत, 22 अप्रैल, 2023
डायमंड नगरी एवं सिल्क सिटी के नाम से विख्यात गुजरात की व्यावसायिक राजधानी सूरत में शनिवार प्रातः से एक अलग ही अंदाज नजर आ रहा था। जहाँ तक नजर जा रही थी वहाँ तक तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अधिशास्ता की जय-जयकार हो रही थी। लगभग 20 वर्ष बाद तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में विशाल कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा था। अक्षय तृतीया कार्यक्रम के लिए आचार्यप्रवर ने प्रातः पर्वत पाटिया से विहार किया। उससे पूर्व हजारों श्रद्धालु अपने आराध्य के स्वागत में पहुँच चुके थे। समय के साथ जनता का सैलाब सूरत की चौड़ी सड़कों को आप्लावित बनाए हुए था। बुलंद जयघोषों के के साथ हर व्यक्ति महामहिम आचार्यप्रवर को निहार रहा था। जन-जन पर अपने दोनों हाथों से आचार्यप्रवर आशीष वृष्टि करते हुए अपने गंतव्य की ओर गतिमान थे। ग्यारह किलोमीटर के प्रलंब विहार को पूर्ण कर आचार्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ अष्टदिवसीय प्रवास हेतु भगवान महावीर यूनिवर्सिटी परिसर में बने भगवान महावीर इंटरनेशनल स्कूल के भवन में पधारे।
भक्तजनों के त्राता, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमणजी प्रातः अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव हेतु विशाल जनमेदिनी के साथ सूरत के वेसु क्षेत्र में स्थित भगवान महावीर यूनिवर्सिटी में अष्ट दिवसीय प्रवास हेतु पधारे। जहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य के स्वागत में साथ चल रहे थे तो वहीं सड़कों के दोनों किनारों पर मार्ग में आचार्यश्री के दर्शन के लिए आतुर भी हो रहे थे।
पूज्यप्रवर पर्वत पाटिया से विहार कर जब सिटीलाइट सभा भवन पधार रहे थे तो मुनि उदित कुमार जी एवं मुनि मोहजीत कुमार जी आदि संतों ने पूज्यप्रवर की अगवानी की। साध्वी मधुबाला जी एवं साध्वी लब्धिश्रीजी ने भी पूज्यप्रवर के मार्ग में दर्शन कर धन्यता का अनुभव किया। अनेक समणियों ने भी पूज्यप्रवर के दर्शन किए। अणुव्रत द्वार से रैली के रूप में पूज्यप्रवर की यात्रा आगे बढ़ी और भगवान महावीर यूनिवर्सिटी पहुँचने पर यात्रा संपन्न हुई। चारों ओर श्रावक समाज हजारों की संख्या में नजर आ रहा था।
मानवता के मसीहा परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म की साधना में भक्ति का भी महत्त्व है। शुद्ध भाव से अपने आराध्य के प्रति जो निर्मल भक्ति होती है, वह शक्तिदायिनी बन सकती है। भक्ति में समर्पण और सम्मान का भाव हो, दिखावा न हो। भीतर से जो भक्ति होती है, वह मूल भक्ति का प्राण तत्त्व होता है। शास्त्रों में चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है-ऋषभ से लेकर महावीर तक। भक्ति अभिव्यक्त उनके प्रति की गई है। साथ में निर्ग्रन्थ प्रवचन के प्रति भी कहा गया है कि यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य और निरुत्तर है, सब दुखों से मुक्ति का मार्ग है। इन वाक्यों में विनय, भक्ति, समर्पण-ये ऐसे तत्त्व हैं कि इन तत्त्वों की जितनी निःस्वार्थता और निष्कामता हो, वह निर्मलता को पुष्ट करने वाली बात हो सकती है।
सशक्त समर्पण में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए। समर्पण दो प्रकार का होता है-व्यक्तिपरक समर्पण और आदर्शपरक समर्पण। महान और वीर व्यक्ति महान पथ के प्रति समर्पित हो जाते हैं। समर्पण और भक्ति में शक्ति होती है। जहाँ अहंकार है, वहाँ भक्ति से विपरीत बात हो सकती है। अपने आराध्य के प्रति भीतरी भक्ति, निश्छल भक्ति, बिना कोई दिखावे की भक्ति होती है, उसका महत्त्व होता है। कल अक्षय तृतीया भगवान ऋषभ से जुड़ा दिन है। तपस्या, वर्षीतप के साथ जुड़ा दिन है। वीतराग आत्मा, अर्हतों के प्रति हमारी भक्ति हो। जैन शासन में नमस्कार महामंत्र अत्यंत प्रचलित है। नमस्कार महामंत्र भक्ति का ही एक रूप है। प्रत्येक पद का प्रारंभ नमो-नमो से होता है। हमारा उत्तमांग मस्तिष्क वीतराग परमात्मा के प्रति झुक जाता है। राजा और देवता भी नमस्कार करते हैं। त्याग-संयम के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति होती है।
नमस्कार महामंत्र का उच्चारण श्रद्धा-भक्ति के साथ हो तो वह महान निर्जरा का कारण बन सकता है। भगवान ऋषभ से लेकर महावीर तक का नाम जो एक बार ले लेता है, तो वह संसार सागर से तारने वाला हो सकता है। भक्ति में शक्ति और चमत्कार हो सकता है। आत्मा परमात्मा पद को प्राप्त कर सकती है। निर्मलता की पराकाष्ठा का विकास हो जाता है।
वर्षीतप करना एक अच्छी साधना है। यह भी भगवान ऋषभ के प्रति भक्ति का प्रयोग है। वर्षीतप (एकांतर तप) का रास्ता भी बढ़िया रास्ता है। हमारा आराध्यों के प्रति भक्ति का भाव हो, नियमों के प्रति समर्पण का भाव हो। आचार्य भिक्षु ने शांति रखते हुए एक क्रांति की थी। लीक से हटकर कार्य किया था। समर्पण का भाव भी था। आचार्य तुलसी के कितने भक्तिपरक गीत हैं। साथ में सिद्धांत भी बताए हैं। जयाचार्य की चौबीसी भी भक्तिपरक है, साथ में तत्त्व ज्ञान भी भरा पड़ा है। साथ में साधना की भी बात है। इस तरह की भक्ति से हम निर्जरा के पात्र भी बन सकते हैं। हमारे में आध्यात्मिक भक्ति का विकास हो।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि वर्तमान की दुनिया में विष तो बहुत है, पर अमृत नहीं है। वृक्ष तो बहुत हैं, पर कल्पवृक्ष नहीं हैं। आज सूरत में एक ऐसा कल्पवृक्ष आचार्यप्रवर के रूप में आया है, जो आध्यात्मिक उद्देश्यों को पूर्ण करने वाला है। कल्पवृक्ष लोगों की चेतना को झंकृत करता है। आचार्यप्रवर लोगों की ज्ञान चेतना, विवेक चेतना को जागृत करने आए हैं। उपशम की चेतना जगाने आए हैं। गुरुदेव रत्नों के भंडार हैं। मुनि उदित कुमार जी, मुनि मोहजीत कुमार जी, साध्वी मधुबाला जी, साध्वी लब्धिश्री जी ने अपनी-अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर के स्वागत में व्यवस्था समिति अध्यक्ष संजय सुराणा, वेसु के कॉर्पोरेटर हिमांशु भाई राउल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। रमेश चोरड़िया ने 31 की तपस्या एवं अन्य तपस्वियों व वर्षीतप के अंतिम उपवास के तपस्वियों ने पूज्यप्रवर से प्रत्याख्यान लिया। मिलन व संयम आंचलिया, किशोर मंडल ने भी अपनी-अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ समाज ने समूह गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला की सुंदर प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।