अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
प्रकृति व करण
प्रश्न 1 : कर्म किसे कहते है।?
उत्तर : शुभ-अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा आत्मा के चिपकने वाले तथा अच्छे-बुरे का परिणाम देने वाले पुद्गलों को कर्म कहते हैं।
प्रश्न 2 : कर्म की कितनी प्रकृतियाँ (प्रकार) हैं?
उत्तर : कर्म की आठ प्रकृतियाँ हैं- (1) ज्ञानावरणीय, (2) दर्शनावरणीय, (3) वेदनीय, (4) मोहनीय, (5) आयुष्य, (6) नाम, (7) गोत्र, (8) अंतराय।
इसके और भी प्रकार हो सकते हैं। कर्म के ये आठ प्रकार स्थूल रूप से हैं। इनमें लगभग सभी प्रवृत्तियों से आकर्षित होने वाली कर्म वर्गणाओं का समाहार हो गया है।
प्रश्न 3 : कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ कितनी हैं?
उत्तर : कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ निम्नोक्त हैं-
ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृतियाँ हैं-(1) मति ज्ञानावरण, (2) श्रुत ज्ञानावरण, (3) अवधि ज्ञानावरण, (4) मन:पर्यव ज्ञानावरण, (5) केवल ज्ञानावरण।
दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियाँ हैं-(1) चक्षु दर्शनावरण, (2) अचक्षु दर्शनावरण, (3) अवधि दर्शनावरण, (4) केवल दर्शनावरण, (5) निद्रा, (6) निद्रा निद्रा, (7) प्रचला, (8) प्रचला प्रचला, (9) स्त्यानर्द्धि।
वेदनीय कर्म की दो प्रकृतियाँ हैं-(1) सात (सुख) वेदनीय, (2) असात (दु:ख) वेदनीय।
मोहनीय कर्म की दो प्रकृतियाँ है।-(1) दर्शन मोहनीय, (2) चारित्र मोहनीय।
दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियाँ हैं-(1) सम्यक्त्व मोहनीय, (2) मिथ्यात्व मोहनीय, (3) मिश्र मोहनीय।
चारित्र मोहनीय की पचीस प्रकृतियाँ हैं-
1 - 4 अनंतानुबंधी कषाय चतुष्क - क्रोध, मान, माया, लोभ
5 - 8 अप्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क - क्रोध, मान, माया, लोभ
9 - 12 प्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क - क्रोध, मान, माया, लोभ
13 - 16 संज्वलन कषाय चतुष्क - क्रोध, मान, माया, लोभ
नौ कषाय-हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्सा (घृणा), स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद।
आयुष्य कर्म की चार प्रकृतियाँ हैं-(1) नरक आयुष्य, (2) तिर्यंच आयुष्य, (3) मनुष्य आयुष्य, (4) देव आयुष्य।
नाम कर्म की दो प्रकृतियाँ हैं-(1) शुभ नाम, (2) अशुभ नाम।
गोत्र कर्म की दो प्रकृतियाँ हैं- (1) उच्च गोत्र, (2) नीच गोत्र।
अंतराय कर्म की पाँच प्रकृतियाँ हैं-(1) दानान्तराय, (2) लाभान्तराय, (3) भोगांतराय, (4) उपभोगांतराय, (5) वीर्यान्तराय। (क्रमश:)