मनोनयन का प्रथम वर्ष

मनोनयन का प्रथम वर्ष

साध्वी शुभ्रयशा
आदरणीया साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा एक नाम है तप और जप से भावित चेतना का।
एक नाम है-विनय, समर्पण और गुरुदृष्टि की आराधिका का।
एक नाम है-शुभ अध्यवसाय में रहने वाली साधिका का। आप आचार्य तुलसी के शासनकाल से ही व्यवस्थाओं से जुड़ गए। समण दीक्षा लेते ही आप प्रथम समणी नियोजिका के रूप में समणियों की व्यवस्था संभालते थे। आपने लंबे समय तक मुमुक्षु बहनों की व्यवस्था भी की।
आचार्य महाप्रज्ञ के शासनकाल में आपने संघीय कार्यों में विशेष रूप से अपनी भूमिका निभाई। चाड़वास मर्यादा महोत्सव पर साध्वियों की व्यवस्था का कार्य-भार संभाला। 2017 में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी के साथ साध्वियों की व्यवस्था में योजित कर दिया। आप पूज्यप्रवरों द्वारा प्राप्त कार्यों को करने में अपने समय व शक्ति का नियोजन करते रहे। शासनमाता के कालधर्म को प्राप्त होने के बाद दिल्ली में आचार्य महाश्रमणजी ने अनिश्चित काल के लिए साध्वी समाज की व्यवस्था का निर्देश दिया।
अकल्पित उद्घोषणा: 15 मई, 2022 सरदारशहर, तेरापंथ भवन उषाकाल का समय आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अकल्पित, अनायोजित, अघोषित एक आयोजन की उद्घोषणा की। वह आयोजन था साध्वीप्रमुखा पद की नियुक्ति। किसी ने शायद सोचा भी नहीं था कि आर्यवर इतनी जल्दी साध्वीप्रमुखा पद की नियुक्ति करेंगे। पूज्यप्रवर द्वारा इस अकल्पित उद्घोषणा से सारा संघ हर्षोल्लास से आप्लावित हो गया। लोग अपनी-अपनी दृष्टि से अटकलें लगाने लगे, साध्वी समाज में भी एक ऊहापोह था, प्रश्न था-कौन होगा? उत्तर भी स्पष्ट था। दो में से एक होगा। ऊहापोह वहाँ होता है, जहाँ सामने विकल्प हो, जहाँ कोई विकल्प न हो वहाँ ऊहापोह विराम को प्राप्त हो जाता है। मुख्य नियोजिकाजी भी दो प्रकार के संभाषण का चिंतन करके पधारे थे। साध्वियों ने गीत की पंक्तियाँ भी दो प्रकार की बनाई थीं। पूज्यप्रवर की उद्घोषणा के साथ ही सारा ऊहापोह समाप्त हो गया। अनेक प्रकार की संचार व्यवस्थाओं के माध्यम से देश-विदेशों से बधाई के संदेश आने लगे।
अहोभाव से वर्धापन: कार्यक्रम समाप्त होते ही नव निर्वाचित साध्वीप्रमुखाश्री जी सर्वप्रथम दुगड़ गेस्ट हाउस में पधारे। रत्नाधिक साध्वियों को सविधि वंदना की। साध्वियों ने अत्यधिक हर्ष के साथ आपके हाथों को अपने हाथों में थमा लिया। किसी-किसी ने तो आपके हाथों को सिर पर भी लगा लिया, मानो वे आपको बद्धांजलि वंदना कर रही है। मालू गेस्ट हाउस से अनेक रत्नाधिक व अवमरात्निक साध्वियाँ आपकी अगवानी में दुगड़ गेस्ट हाउस पहुँच गई। वहाँ का दृश्य आनंददायक था, सात्त्विक सुखानुभूति कराने वाला था। साध्वियों के प्रवास में मानो बसंतोत्सव आ गया हो।
आचार्य महाश्रमणजी ने साध्वी समाज को एक बनी-बनाई साध्वीप्रमुखा प्रदान की है। यह पूज्यप्रवर की साध्वी समाज पर विशिष्ट कृपा है। आप एक अनुभव प्रवीण साध्वीप्रमुखा हैं। आपने शासनमाता के साथ रहकर व्यवस्था-कौशल के अनेक गुणों को आत्मसात किया है। आप एक संवेदनशील व करुणाशील साध्वीप्रमुखा हैं।
संवेदना के क्षण: घटना प्रसंग 7 मार्च, 2023 का है। वर्षीतप के उपलक्ष्य में चैन्नई से डागा परिवार श्रीचरणों में उपस्थित हुआ। बड़ोदा में साध्वियों का प्रवास फ्लैटों में रखा हुआ था। उस दिन धूप प्रखर थी। आप लगभग 3 बजे पूज्यप्रवर की सेवा से पधारे। डागा परिवार के सभी लोग सेवा करने के लिए आपका इंतजार कर रहे थे। लोग प्रायः धूप में ही खड़े थे। साध्वियों ने निवेदन किया, आप अभी आधा किलोमीटर से पधारे हैं, गर्मी बहुत है। अतः आप हॉल के अंदर विराजकर लोगों को सेवा कराने की कृपा करें। आपने फरमाया-इतने लोग हॉल में कैसे आ सकेंगे। ये भी तो कितनी देर से धूप में खड़े हैं। ऐसा फरमाते हुए आप भी हॉल से बाहर पधार गए। लोगों को अच्छी तरह सेवा करवाई। आपके ये शब्द-”लोग भी तो कितनी देर से धूप में खड़े हैं, फिर मेरे क्या दिक्कत है?“ लोगों के मानस में अंकित हो गए और सेवा करके जाते-जाते परस्पर बतियाने लगे-ये भी एक संवेदनशील साध्वीप्रमुखा हैं। कुछ व्यवहार व घटना प्रसंग व्यक्ति के भीतर छिपी अर्हता को उजागर कर उसके व्यक्तित्व को उन्नत बनाने में योगभूत बन जाते हैं। उनमें एक ओर प्रसंग है जो साध्वीप्रमुखाश्री जी की विशेषता को व्यक्त करने में अपनी अहम् भूमिका निभाता है।
नीर एक भाव दो: छापर में उपासिका प्रशिक्षण शिविर था। एक बहन आपके पास आई और कहने लगी कल मेरा ऑरल पेपर है। 20 मिनट तक एक विषय पर ही बोलना है। मुझे बहुत भय लगता है। मैं कैसे बोल सकूँगी। साध्वीश्री जी आप मेरा मार्गदर्शन करें, कहते-कहते उसकी आँखें सजल हो गईं। आपने कहा-आचार्यवर के दर्शन करके, दर्शन केंद्र पर ध्यान करो। श्वास के साथ यह अनुचिंतन करो-भय का भाव दूर हो रहा है, मैं धारा प्रवाह भाषण बोल रही हूँ। आप द्वारा निर्दिष्ट प्रयोग सफल रहा। उसने आपके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए सजल नेत्रों से निवेदन किया-मैं निर्भय होकर धारा प्रवाह भाषण दे सकी, यह आपकी कृपा का परिणाम है। नयनों के नीर में भावों का बड़ा अंतर था। पहले असफलता के भय से नयन सजल थे अब सफलता की खुशी से नयन नम थे।
मृदु अनुशासन शैली: समस्या समाधान के संदर्भ में ऐसे एक नहीं अनेक घटना प्रसंग हैं, यात्रा के दौरान अनुभव हुआ। आप रत्नाधिक साध्वियों के चिंतन को सम्यक् प्रकार से ग्रहण कर उसे क्रियान्वित भी करते हैं तो शेष- अवमरत्नाधिक साध्वियों पर इतना मृदु अनुशासन करते हैं कि उन्हें अनुशासन भार नहीं, उपहार लगने लगता है। कभी कोई नई व्यवस्था का प्रसंग आता है तो आप अग्रगामी (साँझपति) साध्वियों की एक छोटी संगोष्ठी आहूत करते हैं। सहचिंतन से सर्वजन कल्याण कार्य करते हैं। कभी कोई छोटी साध्वी प्रतिक्रमण, अर्हत् वंदना में पंक्तिबद्ध नहीं बैठती तब आप कहते हैं-”क्या आप पंक्ति बनाने में सहयोग कर सकते हैं? अनुशासन की इस शब्दावली को सुनकर साध्वियाँ गद्-गद् हो जाती हैं और पंक्ति कुछ ही सैकेंडों में व्यवस्थित हो जाती है।
प्रमुखा पद नवम् होकर भी प्रथम: आपका यह प्रथम मनोनयन दिवस है। आप एक ऐसी साध्वीप्रमुखा हैं जो नवम् प्रमुखा पद पर आसीन होकर भी कुछ बातों में प्रथम हैं।
(1) आचार्यों के दीक्षा दिवस पर साध्वीप्रमुखा पद की नियुक्ति प्रथम बार।
(2) आचार्यों द्वारा नियुक्ति पत्र के साथ रजोहरण व प्रमार्जनी प्रदान करना, प्रथम बार।
(3) पूर्ववर्ती साध्वीप्रमुखा के साथ रहकर प्रशिक्षण व अनुभव प्राप्त करने वाली साध्वीप्रमुखा पर नियुक्ति, प्रथम बार।
(4) समण श्रेणी की प्रथम नियोजिका प्रमुखा पर पर नियुक्त, प्रथम बार।
(5) अंग्रेजी भाषा में संभाषण, आलेखन करने वाली साध्वीप्रमुखा पद पर नियुक्त, प्रथम बार।
(6) विशेष यात्रा करके साध्वीप्रमुखा बनने वाली साध्वी, प्रथम बार।
(7) जैन विश्व भारती संस्थान से एम0ए0 करके साध्वीप्रमुखा बनने वाली साध्वी प्रथम बार।
आपका व्यक्तित्व-कर्तृत्व असीम है। बहुत से ऐसे अनछूए प्रसंग हैं जो आपकी महानता को उजागर करते हैं। उन सबको अपने मस्तिष्क में संरक्षित, सुरक्षित रखती हुई मैं आपके प्रथम मनोनयन दिवस पर अभिनंदन कर गौरव का अनुभव कर रही हूँ। आप साध्वियों की चित्त समाधि में व संघीय व्यवस्थाओं में अपने समय व शक्ति का नियोजन कर पूज्यप्रवर के श्रम को हल्का कर रहे हैं। यही अंतःतोष का विषय है। आपकी गुरु निष्ठा, गुरु भक्ति व संघनिष्ठा के संस्कार हमारे भीतर भी उद्भुत हों। आपके नेतृत्व में साध्वी समाज अनवरत विकास की राह पर गतिशील बने। चाहत के अनुसार विकास की हर ‘खिड़क’ (छोटा दरवाजा) से आलोक प्राप्त कर सके, यही हमारी आपके प्रति विनीत भाव से करणीय कर्तव्य है। आपका ईशारा प्राप्त कर पथ पर अग्रसर होते रहें।